कड़ी सुरक्षा व्यवस्था को धता बताकर वह जेल काटकर निकले और अंग्रेज माथा पीटते रह गए
शिवकृष्ण अग्रवाल को जमींदारी न आई थी रास मातृभूमि को दासता से मुक्त कराने के लिए बने क्रांतिकारी।
आशुतोष मिश्र, लखनऊ। मातृवेदी के बलिदानियों में एक नाम ऐसा भी है, जिसे जमींदारी का ऐश्वर्य रास न आया। मातृभूमि को दासता की बेड़ियों से आजाद कराने के लिए शिवकृष्ण अग्रवाल ठाठ-बाट को त्याग क्रांतिकारी बन गए। मैनपुरी योजना (12 जिलों के डीएम और एसपी की हत्या की तैयारी) का राजफाश होने के बाद जारी छापेमारी के दौरान अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार तो कर लिया, लेकिन जंग-ए-आजादी के इस दीवाने के आगे जेल भी हार गई। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था को धता बताकर वह जेल काटकर निकले तो फिर अंग्रेज बस माथा पीटते ही रह गए।
मातृभूमि के इस लाडले ने उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर बरनाहल कस्बे में जन्म लिया था। पिता भगवान दास वैश्य इलाके के जमींदार थे। मैनपुरी मिशन स्कूल में पढ़ाई के दौरान शिवकृष्ण अग्रवाल मातृवेदी के सिपाही बन गए। तेज दिमाग के चलते वह अपने ब्रांच के नेता बने। उन्हें दल के सदस्य कलक्टर कहकर पुकारते थे। क्रांतिकारी दम्मीलाल पांडेय और उनके शांति भवन पुस्तकालय के प्रभाव में युवा तेजी से मातृवेदी संगठन की ओर आकर्षित हो रहे थे। ऐसे में उन दिनों मैनपुरी मिशन स्कूल अंग्रेजों के रडार पर था। इसी कड़ी में एक गुप्तचर वहां संन्यासी के भेष में पहुंचा। शक होने पर युवाओं ने उसे जमकर पीटा।
जयपुर के सीआइडी अधिकारी श्रीपद बनर्जी ने इसकी रिपोर्ट डिप्टी सुपरिटेंडेंट को दी। इस पर तत्काल छापेमारी हुई। तलाशी में शिवकृष्ण अग्रवाल के पास से एक पत्र मिला। इस पर क्लोरोफार्म बनाने का फार्मूला लिखा था। उन्हें रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार करके मैनपुरी जेल भेज दिया गया। उनके साथ कुछ और क्रांतिवीर गिरफ्तार किए गए थे। दूसरे दिन श्रीपद बनर्जी आया और क्रांतिकारियों पर जुल्म ढाने का आदेश दिया। नारकीय यातना की इंतहा करते हुए अंग्रेजों ने 10 माह बाद क्रांतिकारियों के खिलाफ मुकदमा शुरू किया। इधर, मातृवेदी के कमांडर इन चीफ गेंदालाल दीक्षित हवालात से फरार हो चुके थे।
ऐसे में क्रांतिकारियों ने मंसूबा बनाया कि अगर शिवकृष्ण अग्रवाल भी जेल से निकल भागें तो केस कमजोर हो जाएगा। मुकदमा शुरू हुआ तो शिवकृष्ण अग्रवाल ने भतीजे से आरी और डामर मंगाया। रात के अंधेरे में वह सींखचे काटते और ऊपर से डामर चिपका देते। तीसरी रात को बरसात के बीच वह काल कोठरी के सींखचे काटकर फरार हो गए। योजना के मुताबिक शिवकृष्ण के बड़े भाई हरिकृष्ण क्रांतिकारी साथियों के साथ जेल की दीवार के पास हथियार लेकर डटे थे। शिवकृष्ण जेल से निकल सकें, इसके लिए दीवार से सटाकर ऊंट खड़ा किया गया था। क्रांतिकारियों ने उन्हें शिकोहाबाद के किशन मुरारी कपड़े वाले के पास पहुंचाया। इसके बाद शिवकृष्ण का किसी को पता नहीं चला।
बैरक को संरक्षित करने की मांग
मातृवेदी के सिपाहियों की जानकारी जुटाते हुए लघु फिल्म निर्माता शाह आलम बरनाहल पहुंचे। यहां हरिकृष्ण के बड़े पौत्र बड़कन अग्रवाल के साथ उन्होंने शिवकृष्ण की उस पैतृक हवेली के अवशेष देखे, जिसमें क्रांतिकारी किसी घटना को अंजाम देने के बाद भूमिगत हो जाते थे। इसके साथ ही उन्होंने मैनपुरी जेल अधीक्षक से मिलकर उन सभी बैरक को संरक्षित करने की मांग की, जिसमें शिवकृष्ण अग्रवाल और मातृवेदी के अन्य क्रांतिकारी कैद रखे गए थे।
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