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नेता विरोधी दल चयन पर बढ़ा विवाद, राज्यपाल ने फिर लिखा पत्र

नेता विरोधी दल के रूप में राम गोविंद चौधरी के चयन प्रक्रिया पर राज्यपाल राम नाईक ने आज एक और संदेश पत्र विधानसभा को भेजा है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Thu, 30 Mar 2017 11:34 PM (IST)Updated: Thu, 30 Mar 2017 11:41 PM (IST)
नेता विरोधी दल चयन पर बढ़ा विवाद, राज्यपाल ने फिर लिखा पत्र
नेता विरोधी दल चयन पर बढ़ा विवाद, राज्यपाल ने फिर लिखा पत्र

लखनऊ (जेएनएन)। नेता विरोधी दल के रूप में राम गोविंद चौधरी के चयन प्रक्रिया को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय द्वारा विधि सम्मत बताए जाने को गंभीरता से लेते हुए राज्यपाल राम नाईक ने गुरुवार को एक और संदेश पत्र विधानसभा को भेजा है। पत्र में नाईक ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि दो गलत निर्णय मिलकर भी एक उचित फैसला नहीं कर सकते हैं। राज्यपाल का कहना है कि इस संबंध में पूर्व में भेजे गए पत्र के साथ ही इस पत्र पर भी विधानसभा द्वारा विचार किया जाए। 

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दरअसल, राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 175(2) के तहत 28 मार्च को विधान सभा को संदेश भेज कर नेता विरोधी दल के रूप में राम गोविंद चौधरी के चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाया था। इस पर 29 मार्च को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद ने परंपरा और नियमों का हवाला देते हुए कहा था कि नेता विरोधी दल के चयन संबंधी उनका आदेश विधि सम्मत हैं। पाण्डेय का कहना था कि संविधान में यह प्रावधान है कि विधानसभा का विघटन होने के बाद विधानसभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद को रिक्त नहीं करेगा। अध्यक्ष तब तक अपने प्रशासनिक दायित्वों का निर्वहन कर सकेगा, जब तक कि नए अध्यक्ष का चुनाव न हो जाए। इन्हीं अधिकारों के अधीन 2007 और 2012 एवं विगत दो दशकों से निवर्तमान अध्यक्ष द्वारा नेता विरोधी दल के लिए पार्टी से प्राप्त प्रस्ताव पर विचार करते हुए पद पर तैनाती के लिए निर्देश दिए गए थे। यह व्यवस्था परंपरागत एवं नियमानुकूल है। 

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माता प्रसाद के इस रुख का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए गुरुवार को राज्यपाल ने विधानसभा को दोबारा संदेश भेजा। पत्र में विधानसभा के सदस्यों का ध्यान विभिन्न मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए सांविधानिक विधि संबंधी फैसलों की ओर दिलाते हुए कहा गया है कि 'यदि पूर्व में कतिपय प्रकरणों में कुछ निर्णय संविधान या विधि के प्रतिकूल लिया गया हो तो इस प्रकार के आसंविधानिक/अविधिक निर्णय को फिर आसांविधानिक/अविधिक निर्णय लेने के लिए न तो अनुसरणीय दृष्टांत के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है और न ही ऐसे दृष्टांत को संविधान/विधि की भावना के विपरीत लिये गये निर्णय को वैध ठहराने के लिए ही प्रयुक्त किया जा सकता है। मतलब यह है कि पूर्व के दो गलत निर्णय मिलकर भी एक उचित निर्णय नहीं कर सकते हैं। संविधान या विधि के तहत जो कार्य या निर्णय प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता है उसे परोक्ष रूप से भी नहीं किया जा सकता है। 

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