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धारणा बदल रहे सरकारी प्राथमिक विद्यालय, अपनी कला प्रतिभा दिखाते हुए बच्चे

Government primary school बहरहाल मुसलिम आबादी की बहुलता वाले इस गांव में शिक्षा का उजियारा फैलता देखकर लगता है कि सरकार के प्रयास तेजी से रंग ला रहे हैं। यह विद्यालय पूरे जिले में रोल माडल बनकर उभरा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 16 May 2022 12:34 PM (IST)Updated: Mon, 16 May 2022 12:34 PM (IST)
धारणा बदल रहे सरकारी प्राथमिक विद्यालय, अपनी कला प्रतिभा दिखाते हुए बच्चे
सहारनपुर के एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में अपनी कला प्रतिभा दिखाते हुए बच्चे। जागरण

लखनऊ, राजू मिश्र। प्राथमिक सरकारी विद्यालयों की बात आते ही पढ़ाई के नाम पर अध्यापकों की अनुपस्थिति, छात्रों की घटती संख्या और दीनहीन भवन की छवि उभरती है, परंतु अब ऐसा नहीं है। समय के साथ ही स्थितियां सुधरी ही नहीं, बल्कि कायाकल्प सा हुआ है। केवल बेहतर भवन, सुंदर फर्नीचर या सजावटी सामान ही नहीं, शिक्षकों की कार्य के प्रति लगन, समर्पण, बच्चों के प्रति स्नेह की भावना तथा कुछ नया कर दिखाने की जिजीविषा भी बढ़ी है। सहारनपुर जिले के 11 ब्लाकों में से एक साढौली कदीम में माडल प्राथमिक विद्यालय बेहट नंबर एक में कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला जो सरकारी स्कूलों के प्रति तमाम प्रकार की धारणा को तोड़ता है। इस विद्यालय में कुल 311 बच्चे पढ़ते हैं। छोटे से इस विद्यालय में लगभग सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। प्रत्येक कक्षा को कक्षाध्यापिका ने पूरे मनोयोग से सजाया है।

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एक कक्ष में स्मार्ट क्लास भी संचालित है। स्कूल की गुणवत्ता को बढ़ाती है यहां चलने वाली कक्षा एक। कक्षा एक की कक्षाध्यापिका रीता गुप्ता तथा सहयोगी शिक्षामित्र शबनम परवीन ने क्लास को एक विशेष थीम पर सजाया है। कक्षा में लगे हर चित्र के नीचे उसका नाम लिखा है। चित्र को पहचान कर बच्चे नीचे लिखे उसके नाम को भी चित्र के साथ मन में बैठा लेते हैं। जब वह नाम/ शब्द बोर्ड पर लिखा जाता है तो बच्चे उस शब्द को पहचानकर बता देते हैं। हैरानी यह कि अभी इन बच्चों को वर्णमाला का ज्ञान नहीं है और दाखिला हुए एक महीना ही बीता है। लेकिन बच्चे आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम हो चुके हैं।

बाल वाटिका के बच्चों के लिए बोलता बचपन नामक एक कविता संग्रह भी तैयार किया गया है। उनकी कक्षा के बच्चे 20 में से आठ कविताएं याद कर चुके हैं और पूरी तरह हाव भाव के साथ वह कविता सुनाते हैं। शिक्षा विभाग की सामग्री भी बच्चों को खासी लुभा रही है। लगभग सभी बच्चे लिखने लगे हैं। बच्चों के क्रियाकलापों की प्रोफाइल देखने पर पता चला कि बच्चे सुंदर ड्राइंग भी बनाते हैं। कुछ बच्चे हाव भाव के साथ कहानी कह पाने तो कुछ बच्चे टीएलएम (टीचिंग लर्निग मैटीरियल) की सहायता से अपने साथियों को पढ़ा पाने में सक्षम हैं।

असदुल्ला, इलमा, उमरा, फायजा, अहमद, आहिल, करीम, सनाया, कैफ, राघव और तनुज ने भी बहुत सुंदर गतिविधियां कक्षा में करके दिखाईं। चर्चा में भी बच्चे खुलकर भाग लेते हैं और मन की बात कहते हैं। अध्यापिकाओं के स्नेहभाव के कारण बच्चे रोज स्कूल आना चाहते हैं। उनके लिए उनका स्कूल उनकी सबसे पसंदीदा जगह है। विद्यालय के प्रधानाध्यापक सुधांशु पांडेय का कहना है कि यद्यपि संसाधन उपलब्ध कराकर प्रशासन पूरी मदद करता है, किंतु ऐसी भी बहुत सी छोटी-छोटी चीजें हैं जिसके लिए अध्यापिकाएं अपने संसाधनों से कक्षा की जरूरतों को पूरा करने का काम करती हैं। अध्यापिकाएं चाहती हैं कि विद्यालय में एक एलईडी टीवी भी हो, ताकि वह दृश्य और श्रव्य माध्यम से बच्चों को और अच्छी तरह से शिक्षा दे सके।

इतना ही नहीं, यहां वाट्सएप ग्रुप में बच्चों की दैनंदिन गतिविधियों के वीडियो और चित्र भेजे जाते हैं, इससे अभिभावकों को प्रतिदिन बच्चों के क्रियाकलापों की जानकारी मिलती रहती है। अभिभावक भी सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों से बेहतर बताते हैं। अध्यापिका रीता गुप्ता स्कूल की गतिविधियों को केवल वाट्सएप ग्रुप तक ही सीमित नहीं रखतीं, बल्कि फेसबुक तथा ट्विटर के जरिये भी लोगों तक पहुंचाती हैं। अन्य प्रदेशों से भी अनेक शिक्षक ऐसी गतिविधियों से प्रेरित होकर यहां के नवाचारों को अपने शिक्षण में शामिल करते हैं। सहारनपुर में प्राथमिक विद्यालय बेहट नंबर एक जैसे अनेक स्कूल हैं जहां के शिक्षक और शिक्षिका अपने शैक्षिक परिवेश से बच्चों के भविष्य को संवार रहे हैं। अध्यापिका रीता गुप्ता जिला स्तर पर यद्यपि कई बार सम्मानित एवं पुरस्कृत की जा चुकी हैं। अभिभावक भी विद्यालय के शैक्षिक वातावरण से खुश नजर आते हैं। 


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