COVID-19 Situation in Lucknow: लखनऊ के सरकारी अस्पताल कोरोना मरीजों के शव को नहीं दे रहे एंबुलेंस, CMO नहीं उठा रहे फोन
पिछले साल भी शवों को पहुंचाने का जिम्मा सीएमओ का था लेकिन अब सीएमओ और उनके अधिकारी नहीं उठाते हैं फोन। सरकारी अस्पतालों के एंबुलेंस चालकों की मनमानी से परेशान हैं और उन्हें दस से पंद्रह हजार खर्च कर निजी वाहन से शव को ले जाना पड़ रहा है।
लखनऊ, जेएनएन। कोरोना संक्रमण से बचाव के नियमों की धज्जियां सरकारी अस्पतालों से ही उड़ाई जा रही है। किसी का निधन होने के बाद एंबुलेंस नहीं मिल रही है और बहुत जुगाड़ के बाद ही एंबुलेंस संभव हो पा रही है। इसमें सरकारी अस्पतालों के एंबुलेंस चालकों की मनमानी से भी शोकाकुल परिवार परेशान हैं और उन्हें दस से पंद्रह हजार की रकम खर्च कर निजी वाहन से शव को ले जाना पड़ रहा है।
शनिवार की रात आलमबाग निवासी की मौत कोविड संक्रमण से हो गई थी। अब शव को भैंसाकुंड श्मशानघाट कैसे ले जाया जाए? यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया था। अस्पताल के चिकित्सक और अन्य कर्मचारियों ने शव श्मशानघाट भिजवाने से साफ मना कर दिया, जबकि नियम है कि अस्पताल प्रशासन की कोविड संक्रमित शव को श्मशानघाट तक पहुंचाएगा। चालक की पीपीइ किट में होगा और श्मशानघाट पर दो या चार परिजनों को पीपीइ किट उपलब्ध कराई जाएगी। ऐसा पिछले साल भी हो रहा था लेकिन इस बार जब कोविड संक्रमण का प्रभाव अधिक है तो सरकारी अस्पताल प्रशासन ने खुद से हाथ खड़ा कर लिए हैं और कोविड संक्रमित शवों को खुद से ले जाने की सलाह शोकाकुल परिजनों को दे रहे हैं।
मंगलवार को जानकीपुरम निवासी शालिनी मिश्र का निधन केजीएमयू के लिंब सेंटर में कोविड संक्रमण से हो गया था लेकिन अस्पताल प्रशासन ने खुद से शव ले जाने को कहा। अब परिवार वाले परेशान कि कहां से वाहन का इंतजाम किया जाए। किसी तरह जुगाड़ लगाने पर ही अस्पताल की एंबुलेंस मिल सकी। परिवार वालों ने भैंसाकुंड विद्युत शवदाह गृह पर अंतिम संस्कार कराने के लिए नंबर ले लिया था लेकिन एंबुलेंस चालक ने कहा कि यहां से शव गुलाला श्मशानघाट ही जाते हैं।