कर्मचारियों का आंदोलन रंग लाया, सरकार ने वापस लिया बिजली वितरण में निजीकरण का फैसला
पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने लिखित वादा किया है कि बिजली अभियंताओं व कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना अब प्रदेश में कहीं भी कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा।
लखनऊ (जेएनएन)। बिजली अभियंताओं व कर्मचारियों के प्रदेशव्यापी आंदोलन के मद्देनजर राज्य सरकार को विद्युत वितरण के क्षेत्र में निजीकरण के फैसले को फिलहाल टालने के लिए मजबूर होना पड़ा है। पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने सात जिलों (उरई, इटावा, कन्नौज, रायबरेली, सहारनपुर, बलिया व मऊ) की बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में देने के लिए जारी इंटीग्रेटेड सर्विस प्रोवाइडर के टेंडर (निविदा पत्र) जहां वापस ले लिया है। वहीं लखनऊ, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर व मुरादाबाद शहर के विद्युत वितरण के फ्रेंचाइजीकरण की प्रक्रिया भी अब लटक गई है। पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने लिखित वादा किया है कि बिजली अभियंताओं व कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना अब प्रदेश में कहीं भी कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा।
दरअसल, विद्युत वितरण की व्यवस्था सुधारने के नाम पर आगरा शहर के बाद राज्य सरकार कई और जिलों व शहरों के विद्युत वितरण को निजी हाथों में देने का फैसला किया है। निजीकरण के फैसले के विरोध में बिजली अभियंताओं व कर्मचारियों द्वारा विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले पिछले 19 दिनों से प्रदेशभर में आंदोलन किया जा रहा था जिससे बिजली आपूर्ति व्यवस्था प्रभावित हो रही थी। समिति ने कारपोरेशन प्रबंधन को नोटिस देकर हड़ताल तक की बात कही थी। ऐसे में आंदोलन खत्म कराने के लिए प्रबंधन ने गुरुवार को संघर्ष समिति के पदाधिकारियों से वार्ता की।
दोपहर 12 बजे प्रमुख सचिव ऊर्जा व पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष आलोक कुमार और संघर्ष समिति के पदाधिकारियों के बीच शुरू हुई मैराथन बैठक में रात आठ बजे तक चले मंथन के बाद निजीकरण के फैसले को वापस लेने सहित अन्य संबंधित बिंदुओं पर सहमति बन सकी। ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की मौजूदगी में दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते पर हस्ताक्षर हुए। आठ घंटे चली वार्ता के बाद संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि सात जिलों के निजीकरण संबंधी टेंडर वापस लेने और हमें विश्वास में लिए बिना निजीकरण न किए जाने सहित कई बिंदुओं पर सहमति बनी है। दुबे ने बताया कि लिखित समझौते के मद्देनजर समिति ने आंदोलन वापस लेने का निर्णय किया है।
वार्ता में प्रमुख सचिव ऊर्जा के साथ पावर कारपोरेशन की प्रबंध निदेशक व निदेशक कार्मिक प्रबंधन व प्रशासन भी शामिल रहे। समिति की ओर से संयोजक शैलेंद्र दुबे के अलावा अभियंता संघ के अध्यक्ष जीके मिश्रा, महासचिव राजीव सिंह, पूर्व अध्यक्ष अखिलेश कुमार सिंह व अन्य संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद थे। विद्युत कर्मचारी मोर्चा संगठन भी अब शुक्रवार से आंदोलन नहीं करेगा।
इन बिंदुओं पर बनी सहमति
1- ग्रामीण क्षेत्रों में राजस्व वसूली व उपभोक्ता सेवाओं में सुधार के लिए प्राप्त सुझावों व अन्य प्रदेशों के अनुभवों के आधार पर कार्यवाही की जाएगी।
2- विद्युत वितरण निगमों में सुधार के लिए कर्मचारियों व अभियंताओं को विश्वास में लेकर ही कार्यवाही की जाएगी। कार्मिकों को विश्वास में लिए बिना प्रदेश में किसी भी स्थान पर कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा।
3- संघर्ष समिति की लंबित विभिन्न समस्याओं का द्विपक्षीय वार्ता से समाधान किया जाएगा।
4- वर्तमान आंदोलन के कारण किसी भी बिजली कर्मचारी या अभियंता के विरुद्ध किसी भी प्रकार के उत्पीडऩ की कार्रवाई नहीं की जाएगी।
मुख्य सचिव के निर्देशों पर आया था उबाल : कैबिनेट से निजीकरण का प्रस्ताव पास होने के बाद बिजली कर्मचारियों के संगठनों ने आंदोलन पर विचार करना शुरू ही किया था कि 21 मार्च को मुख्य सचिव राजीव कुमार के निर्देशों ने उन्हें और भड़का दिया था। मुख्य सचिव ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों व मंडलायुक्तों को बिजलीकर्मियों के आंदोलन से सख्ती से निपटने के निर्देश दिए थे, जिस पर अभियंताओं व कर्मचारियों ने आंदोलन को और तेज करते हुए प्रतिक्रिया में पूरी तरह काम ठप करने की चेतावनी दी थी।
बिजली कर्मियों की संघर्ष समिति ने नौ अप्रैल से 72 घंटे के कार्य बहिष्कार की चेतावनी दी थी, जबकि इससे पहले छह अप्रैल को लखनऊ में मोटरसाइकिल रैली और आठ अप्रैल को प्रदेश भर में मशाल जुलूस निकालने की भी योजना थी। वर्क टू रूल के तहत अभियंताओं का सीमित काम भी कारपोरेशन के लिए मुसीबत बन रहा था। मार्च महीने के आखिरी दिनों में अवकाश के दौरान आए आंधी-तूफान ने भी प्रदेश में बिजली संकट खड़ा कर दिया था।
लोकसभा चुनाव तक बनी रहेगी यथास्थिति : निजीकरण के फैसले पर गुरुवार को यू-टर्न के बाद माना जा रहा है कि इस दिशा में अब सरकार कोई भी कदम लोकसभा चुनाव के बाद ही उठाएगी। बिजली अभियंताओं व कर्मचारियों के जबरदस्त आंदोलन के बाद भी शायद सरकार निजीकरण के फैसले को लेकर पीछे न हटती यदि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव न होते। जानकारों का कहना है पर्याप्त बिजली की उपलब्धता होने के बावजूद आंदोलन के चलते विद्युत वितरण की व्यवस्था प्रभावित हो रही थी। बढ़ती गर्मी में घंटों बिजली की आपूर्ति न होने से प्रदेशवासियों में भी सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ रही थी।
जनता की नाराजगी चुनाव में कहीं भारी न पड़ जाए इसलिए सरकार गर्मी में भरपूर बिजली आपूर्ति बनाए रखना चाहती है। सूत्र बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद सरकार निजीकरण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेगी क्योंकि उससे लगभग तीन वर्ष बाद ही विधानसभा के चुनाव होंगे। हालांकि, ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा का कहना है कि ईमानदार विद्युत उपभोक्ताओं के लिए सरकार बिजली आपूर्ति व्यवस्था को सुधारने की दिशा में ही काम कर रही है।