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गंगा को स्वच्छ रखने के लिए समग्र रूप से समझना जरूरी Lucknow News

लखनऊ के पर्यावरणविद का दावा भूगर्भीय जल धाराओं जलाशयों सहायक नदियों को नजरअंदाज करना गंगा सफाई योजना में सबसे बड़ा रोड़ा।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 26 Dec 2019 09:07 AM (IST)Updated: Thu, 26 Dec 2019 09:07 AM (IST)
गंगा को स्वच्छ रखने के लिए समग्र रूप से समझना जरूरी Lucknow News
गंगा को स्वच्छ रखने के लिए समग्र रूप से समझना जरूरी Lucknow News

लखनऊ [रूमा सिन्हा]। गंगा केवल वही नहीं है जो आंखों से दिखती है। बेशक इसकी धारा गोमुख से फूटती है मगर, जीवन भूगर्भीय जलधाराओं, जलाशयों और सहायक नदियों से ही मिलता है। यही वजह है, पर्यावरणविद गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के लिए पूरे बेसिन (घाटी) की चिंता पर जोर दे रहे हैं। अध्ययन में दावा किया है कि सिर्फ गंगा पर अरबों रुपये बहाने से कुछ नहीं होगा। इसे समग्र रूप से देखने और समझने का वक्त आ गया है। गंगा को बचाने के लिए सबसे पहले उसकी सहायक नदियों को जीवंत रखना होगा।  नदियों की स्थिति पर लगातार नजर रखने वाले डॉ. बीआर अंबेडकर यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने गंगा व उसकी सहायक नदियों पर भी विस्तृत अध्ययन कर रहे हैं। यह जानने के उद्देश्य से कि आखिर इसकी सफाई और अविरलता में बाधा कहां हैं? उनके अध्ययन में वही बातें सामने आई हैं, जिसकी चिंता लगातार जताई जाती रही है। उनके मुताबिक, भले ही हम पानी की तरह पैसा बहा लें मगर, देश के 26 फीसद भूभाग में फैले गंगा बेसिन के समूचे जलतंत्र और इससे जुड़े इकोसिस्टम को समझे बिना गंगा को प्रदूषण मुक्त कर पाना असंभव है। सिर्फ सीवेज व औद्योगिक प्रदूषण की रोकथाम से काम नहीं चलेगा। प्रोफेसर दत्ता के मुताबिक, गंगा को अविरल व निर्मल रखने में भूमिगत एक्यूफर्स, सहायक और छोटी नदियों की मुख्य भूमिका है। यह जानते हुए भी योजना में इन्हें स्थान नहीं दिया गया है। 

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40 फीसद तक घटा जलप्रवाह 
भूवैज्ञानिकों के अनुसार, गंगा व सहायक नदियों का जलप्रवाह भूजल स्रोतों से निरंतर पोषित होता है। अदृश्य भूजल भंडारों से समूचे गंगा बेसिन के नदी तंत्रों को करीब 15 अरब घन मीटर पानी प्राकृतिक रिसाव (बेस फ्लो) के रूप में मिलता है। बढ़ते भूजल दोहन से बीते दशकों में गंगा व सहायक नदियों के जलप्रवाह (ई-फ्लो) में 25 से 40 फीसद तक की कमी आई है। सीवेज के साथ गंगा में प्रदूषण की एक प्रमुख वजह यह भी है। पर्यावरणविद कहते हैैं, जब तक भूजल स्रोत का अत्यधिक दोहन नहीं रुकेगा, सहायक नदियों की जलधाराएं नहीं सहेजेंगे तब तक गंगा वास्तविक स्वरूप खोती रहेगी। 
इसकी भी अनदेखी 
गंगा बेसिन के तमाम जल स्रोतों में घातक भारी धातुएं जैसे आर्सेनिक, आयरन, कैडमियम, क्रोमियम, मैंगनीज खतरनाक सीमा में पाए गए हैं। ये गंगा के साथ-साथ फूड चेन के जरिए शरीर में पहुंच कर मानव स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डाल रहे हैैं।
 
गंगा से कुछ तथ्य 
43 फीसद आबादी का पोषण करने वाला देश सबसे बड़ा नदी बेसिन
10 सहायक नदियां गंगा बेसिन में शामिल। रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी, महानंदा, यमुना, तमसा, सोन, पुनपुन आदि
11 राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, मध्यप्रदेश में फैला  बेसिन 
01 वृक्ष की शाखाओं की तरह बेसिन का समूचा नदी जलतंत्र व जलधाराएं फैलीं
 
 बेसिन में भूजल के प्राकृतिक प्रवाह की स्थिति
- गंगा बेसिन में भूजल का कुल प्राकृतिक प्रवाह (बेस फ्लो)- 15 अरब घन मीटर प्रति वर्ष
- उत्तर प्रदेश- 4.60 अरब घन मी.
- बिहार- 2.43 अरब घन मी.
- पश्चिम बंगाल- 2.77 अरब घन मीटर
- मध्यप्रदेश- 1.95 अरब घन मी.
(शेष बेस फ्लों बचे सात राज्यों से आता है) 
 
गंगा सफाई पर खर्च 
राज्यसभा में पेश केंद्र सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2014 से जून 2018 तक गंगा नदी की सफाई पर 3,867 करोड़ रुपये से अधिक रुपये खर्च हुए हैैं। बताया कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के तहत राज्य सरकारों को भी वित्तीय सहायता दी गई। करीब 17484.97 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से गंगा की घाटी वाले राज्यों में 105 परियोजनाएं मंजूर की गई हैैं।

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