Friendship Day 2020: वैश्विक महामारी कोरोनावायरस ने कराई फ्रंटलाइन वॉरियर्स से दोस्ती
Friendship Day 2020 दो अगस्त को फ्रेंडशिप डे के मौके पर ऐसे ही कुछ फ्रंटलाइन वॉरियर्स और कोरोना से जंग जीत चुके मरीजों की इलाज के दौरान कायम हुई दोस्ती पर एक रिपोर्ट...
लखनऊ, (कुसुम भारती)। कोरोना काल में एक ओर जहां अपने ही दूर भाग रहे हैं और मरीजों का साथ छोड़ रहे हैं। वहीं, कोविड मरीजों को इस बीमारी से लड़ने में फ्रंटलाइन वॉरियर्स बने डॉक्टरों व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों ने न सिर्फ बीमारी से बाहर निकालने में मदद की बल्कि मरीजों को अपनेपन का अहसास भी कराया। ऐसे में, कोविड वार्ड में भर्ती मरीजों की इलाज के दौरान बहुत से फ्रंटलाइन वॉरियर्स से दोस्ती भी करा दी। शहर के कोविड हॉस्पिटल में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं।
मरीजों संग डांस कर हो गई दोस्ती :
जब पहली बार कोविड वार्ड में मरीजों की परेशानी और घबराहट देखी तो बड़ा खराब लगा। सोचा, ऐसे तो यह जल्दी ठीक नहीं हो सकेंगे। फिर मैंने इलाज के साथ ही उनका मनोरंजन करना भी शुरू किया। जिसका परिणाम यह निकला कि मरीजों में बहुत तेजी से सुधार होने लगा। डॉ. राममनोहर लोहिया संस्थान में जनरल सर्जरी विभाग में रेजिडेंट डॉक्टर शिवा कहती हैं, वार्ड के पास बने नर्सिंग स्टेशन एरिया में हम म्यूज़िक लगाकर डांस करते थे। जिसे देखकर मरीज बहुत खुश होते थे। गोमतीनगर की एक करीब 56 वर्षीय कोविड मरीज अमिता मिश्रा और उनका पूरा परिवार कोविड वार्ड में भर्ती था जो अब ठीक होकर घर चले गए हैं, मगर आज भी हमसे जुड़े हैं। वह व्हाट्सएप पर अभी भी मैसेज करती हैं, फोन पर बात करती हैं।
मरीज ने फेसबुक पर भेजी फ्रेंड रिक्वेस्ट
कोविड हॉस्पिटल में जब मेरी ड्यूटी लगाई गई तो उस दौरान बहुत से मरीजों को देखा। इलाज के दौरान हमारी सेवा देखकर मरीज बहुत खुश होते थे। आरएमएल इंस्टीटयूट में नर्सिंग ऑफीसर पुनीत यादव कहते हैं, एक मरीज जब ठीक होकर घर जाने लगा तो बोला, 'भैया मैंने आपको फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी है, एक्सेप्ट कर लीजियेगा।' उसकी मासूमियत और भावनाओं की कद्र करते हुए मैंने उसकी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली। हालांकि, हमें मना किया जाता है कि हम अपना नंबर किसी को न दें, मगर कभी-कभी भावनाओं के सामने कुछ बातों को अनदेखा भी कर दिया जाता है। वह मरीज अब मेरा बहुत अच्छा एफबी फ्रेंड बन गया है।
परिवार ने छोड़ा, हमने संभाला :
कोरोना महामारी के चलते बहुत सारे लोग हैं जो अपनों का साथ छोड़ रहे हैं, ऐसे में सिर्फ यही कहना है कि यह बीमारी ठीक हो सकती है। इसके डर से किसी अपने को मरने के लिए छोड़ देना सही नहीं है। जनरल फिजीशियन डॉ. श्वेता साधवानी कहती हैं, करीब एक महीना पहले 86 वर्षीय बुजुर्ग को उनके परिवार ने सिर्फ कोविड सस्पेक्ट होने पर घर से अलग एक फ्लैट में छोड़ दिया था। जब वह अकेले ही मेरे पास इलाज कराने आए और अपनी हिस्ट्री बताई तो सुनकर बहुत दुख हुआ। फिर मैंने उनका इलाज शुरू किया। हालांकि, उनको सिर्फ लक्षण थे जिनके आधार पर इलाज किया और वह ठीक हो गए। फिर एक दिन मैंने उनके परिवार को फोन करके अपने पास बुलाया और समझाया कि आपके पिता अब पूरी तरह ठीक हो चुके हैं, इनको आई उम्र में आपके सहारे की जरूरत है। उस परिवार को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे अपने साथ उनको वापस ले गए। इस बात से बुजुर्ग बहुत खुश हुए और मुझे खूब दुआएं दीं। आज भी वह फोन से संपर्क में रहते हैं। उनके साथ अब एक अच्छी बॉडिंग हो गई है।
जुड़ गया भावनात्मक रिश्ता:
मरीज और डॉक्टर के बीच भावनात्मक रिश्ता जुड़ जाता है। जब वह अस्पताल में रहता है तो मरीज के प्रति जिम्मेदारी का भाव तो रहता ही है। बस यही कोशिश होती है कि मरीज ठीक होकर घर जाए। जब मरीज ठीक हो कर जाते हैं तो खुशी होती है। वहीं, कई मरीजों के साथ रिश्ता हमेशा के लिए हो जाता है। संजय गांधी पीजीआइ के कोरोना आइसीयू वन के इंचार्ज और पल्मोनरी मेडिसिन के प्रो. जिया हाशिम कहते हैं, अभी चंद दिनों पहले कोरोना संक्रमित 75 वर्षीय प्रेम प्रकाश जो आइसीयू में वेंटीलेटर पर थे ठीक हो कर गए है। वह फोन पर लगातार संपर्क में रहते हैं। प्रेम प्रकाश जी से दोस्ती कहें या कुछ और लेकिन एक रिश्ता जुड़ गया है। इसी तरह दूसरे मरीज भी हैं जो ठीक होकर जाने के बाद दोस्ती के ग्रुप में जुड़े हैं।