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अटल यादें : मुस्लिम सम्मेलन में जुगाड़ से जाकर की थी रिपोर्टिंग

अटलजी की जयंती (25 दिसंबर) पर विशेष: एक नेता से पहले एक परिश्रमी पत्रकार थे अटल बिहारी वाजपेयी। स्वदेश, पांचजन्य और राष्ट्रधर्म जैसे पत्रों के जरिये पत्रकारिता में संघर्ष किया।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 24 Dec 2018 09:24 AM (IST)Updated: Mon, 24 Dec 2018 09:24 AM (IST)
अटल यादें : मुस्लिम सम्मेलन में जुगाड़ से जाकर की थी रिपोर्टिंग
अटल यादें : मुस्लिम सम्मेलन में जुगाड़ से जाकर की थी रिपोर्टिंग

लखनऊ, (ऋषि मिश्र)। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का लखनऊ से नाता एक नेता से पहले एक परिश्रमी पत्रकार का था। उन्होंने स्वदेश, पांचजन्य और राष्ट्रधर्म जैसे पत्रों के जरिये पत्रकारिता में संघर्ष किया था। उनकी निष्पक्षता का आलम ये था कि शहर में कम्युनिस्टों की ओर से आयोजित कराए गए बड़े मुस्लिम सम्मेलन में प्रवेश न मिलने पर जुगाड़ से पास लेकर अंदर गए और रिपोर्टिंग की। उनकी ये रिपोर्ट पांचजन्य के प्रथम पर पृष्ठ पर प्रकाशित की गई, जिसकी तटस्थता चर्चा में रही थी।

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राष्ट्रधर्म के वर्तमान संपादक पवनपुत्र 'बादल' बताते हैं कि अटल जी 15 अगस्त को आजादी के बाद लखनऊ आए। इससे पहले कुछ समय संडीला में रहे थे। लखनऊ आकर वे राष्ट्रधर्म के संपादक बने। 31 अगस्त 1947 में रक्षाबंधन के दिन पहले अंक के प्रथम पृष्ठ पर उनकी कविता 'हिंदू जीवन हिंदू तन मन, रग रग हिंदू मेरा परिचय' प्रकाशित थी। तीन साल में उन्होंने स्वदेश और पांचजन्य का भी संपादन किया। 1951 में वे जनसंघ का कार्यभार संभालने के लिए दिल्ली चले गए। राष्ट्रधर्म के प्रथम अंक का साहित्य जगत में स्वागत हुआ। उस वक्त आठ हजार प्रतियों का प्रकाशन किया गया था।

पूर्व महापौर डॉ. दाऊ जी गुप्ता बताते हैं कि लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी का शुरुआती संघर्ष बतौर पत्रकार ही रहा। उन्होंने न केवल संपादन और प्रकाशन किया बल्कि खुद ही साइकिल से वितरण तक की जिम्मेदारी उठाई थी। मैंने उनको बंडल बंधी साइकिल का पंचर जुड़वाते और चप्पल को जुड़वाते हुए देखा है। एक एक समय का भोजन कर के भी उन्होंने अखबारों का प्रकाशन कभी नहीं रुकने दिया था।

राष्ट्रधर्म की कामयाबी से शुरू किया पांचजन्य

राष्ट्रधर्म ने शीघ्र ही एक अच्‍छे मासिक पत्रिका के रूप में अपनी पहचान बना ली थी। उनकी सम्पादन कुशलता और पत्र की सफलता को देखकर साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू करने की योजना बनाई गई। पांचजन्य का प्रकाशन करने का फैसला लिया गया। उस समय राष्ट्रधर्म और पांचजन्य दोनों पत्रों को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ता था। लखनऊ में कम्युनिस्टों द्वारा मुसलमानों को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। अटल उन दिनों राष्ट्रधर्म में पत्रकार थे। उस कांफ्रेंस में कम्युनिस्ट पार्टी के पसंदीदा पत्रकारों के अलावा किसी अन्य पत्रकार का प्रवेश वर्जित था। पास मिलना मुश्किल था। वरिष्ठ पत्रकार बजरंग शरण तिवारी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे और उनकी अच्‍छी पैठ थी। उन्होंने पास लेकर अटल विहारी वाजपेई को दे दिया। अटल ने उस कांफ्रेंस को बहुत अच्‍छी तरह से कवर किया और उस रिपोर्ट को पांचजन्य के प्रथम अंक में प्रथम पृष्ठ पर छापा, जिसको हमेशा याद किया गया।


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