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ब्रेन टीबी की नई दवा से मरीजों में दिखी आशा की किरण

फ्लोरोक्यूनोलोंस दवा पर रिसर्च एनालिसिस में डॉ.इमरान रिजवी को मिला सम्मान। केजीएमयू में आयोजित हुआ रिसर्च शोकेस कार्यक्रम।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 09 Feb 2019 09:06 PM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2019 09:06 PM (IST)
ब्रेन टीबी की नई दवा से मरीजों में दिखी आशा की किरण
ब्रेन टीबी की नई दवा से मरीजों में दिखी आशा की किरण

लखनऊ, जेएनएन। ब्रेन टीबी के मरीजों में इलाज के लिए अब तक केवल चार तरह की दवा आती है जो कि ज्यादा प्रभावी नहीं है। वहीं फ्लोरोक्यूनोलोंस दवा पर दुनिया भर में रिसर्च की जा रही है, जिसे लेकर केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.इमरान रिजवी ने रिसर्च एनालिसिस की। जिसमें निकलकर आया कि फ्लोरोक्यूनोलोंस दवा ब्रेन टीबी में ज्यादा कारगर है। इसे आगे एक फ्यूचर मेडिसिन के रूप में देखा जा सकता है। डॉ.इमरान समेत 11 चिकित्सकों को केजीएमयू के ब्राउन हॉल में आयोजित रिसर्च शोकेस कार्यक्रम में एक्सीलेंस इन रिसर्च अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

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आंखों और गुर्दे के लिए सुरक्षित है दवा

डॉ.रिजवी ने बताया कि अब तक ब्रेन टीबी में मरीजों को जो दवाएं दी जा रही हैं। वो पल्मोनरी टीबी की ही दवाएं हैं जो ज्यादा असरदार नहीं हैं। फ्लोरोक्यूनोलोंस दवा पर अब तक वियतनाम, चीन में और राजधानी के एसजीपीजीआइ में शोध किया गया है। इन सभी शोध को इकठ्ठा करके एनालिसिस किया। इन दवा के साइड इफेक्ट भी कम है और आंखों, लिवर और गुर्दे पर वितरित प्रभाव नहीं डालती है।

ऑप्टिक कोरेंस टोमोग्राफी जांच से देखी जा सकती है आंखों की खराबी
प्रो.राजेश वर्मा ने बताया कि ब्रेन टीबी में 10 से 30 प्रतिशत लोगों की मौत हो जाती है। टीबी में दी जाने वाली दवाएं ऑप्टिक नर्व पर असर करती हैं, जिससे आंखों की रोशनी पर असर होता है। केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग में 101 मरीजों पर शोध किया गया। इसमें पता चला कि लगभग 24 प्रतिशत लोगों की आंखों में समस्या हो जाती है। रेटिना की लेयर पतली हो जाती है। ऑप्टिक कोरेंस टोमोग्राफी जांच से आंख की खराबी का शुरुआती स्टेज में पता चल जाता है।

लेप्टिन -एडिपोलेप्टिन अनुपात से महिलाओं में मेजर होता है हृदयरोग
फिजियोलॉजी विभाग की डॉ.वाणी गुप्ता ने बताया कि गायनी विभाग की लगभग 253 महिलाओं में लेप्टिन और एडिपोलेप्टिन के अनुपात को देखा गया, जिसमें लगभग 40 फीसद महिलाओं में कार्डियक डिजीज की संभावना का पता चला। इन महिलाओं में लेप्टिन और एडिपोलेप्टिन का अनुपात एक से ज्यादा निकला। रिसर्च में शामिल स्त्री एवं प्रसूति विभाग की डॉ.रेखा सचान ने बताया कि मीनोपॉज के बाद लगभग 50 फीसद महिलाओं को कार्डियक समस्या हो जाती है।

इन्हें मिला सम्मान
डॉ.इमरान रिजवी, प्रो.अमिता जैन, प्रो.अभिजीत चंद्रा, डॉ.ऋषि पाल, डॉ.शिवानी पांडेय, डॉ.सीमा नायक, डॉ.एमएलबी भट्ट, डॉ.हरदीप सिंह मलहोत्रा, प्रो.श्रद्धा सिंह, डॉ..वानी गुप्ता, डॉ.विशाल गुप्ता, डॉ.अक्षय आनंद, डॉ.नीतू सिंह, डॉ.सत्येंद्र कुमार सिंह, डॉ.सारिका गुप्ता, डॉ.एम कलीम अहमद, प्रो.आरएन श्रीवास्तव, डॉ.राजेश वर्मा, डॉ.नीरज कुमार, डॉ.रश्मि कुमार, डॉ.रवि उनियाल, डॉ.प्रवीण कुमार शर्मा, प्रो.अजय सिंह, डॉ.श्वेता पांडेय।

इम्पैक्ट पेपर पर मिलेगा पुरस्कार
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर  मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश अनूप चंद्र पांडेय मौजूद रहे। कुलपति प्रो. एमएलबी भटट् ने बताया कि संस्थान की रिसर्च सेल को 26 करोड़ की एकस्ट्रा यूरल वित्त प्रोषण प्राप्त हुआ है, जबकि 200 से अधिक रिसर्च प्रोजेक्ट प्रकिया में हैं। उन्होंने बताया कि अगले वर्ष से पांच इम्पेक्ट फैक्टर से शोध पत्रों को पांच हजार रुपये एवं 10 इम्पैक्ट फैक्टर से शोधपत्रों को रुपये 10 हजार रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा। कार्यक्रम में एरा मेडिकल कॉलेज के कुलपति प्रो.अब्बास अली मेहंदी समेत कई चिकित्सक मौजूद रहे।

एनल स्फिंक्टर के रिकंस्ट्रक्शन के लिए सम्मान
सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के हेड प्रो.अभिजीत चंद्रा को उनके एनल स्फिंक्टर के रिकंस्ट्रक्शन के लिए अमेरिकन सोसाइटी ऑफ कोलोरेक्टल सर्जरी जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र के लिए सम्मानित किया गया। इस शोध को अमेरिकन कोलोरेक्टल सोसाइटी द्वारा भी सम्मानित किया गया है। सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग को लगातार पांच वर्षों से शोध के लिए सम्मानित किया जा रहा है। 


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