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दलहन फसलों से किसानों का घट रहा मोह, खरीफ सीजन में क्षेत्रफल घटा; सरकार की योजनाएं भी बेअसर

किसान विजयपाल सिंह का कहना है कि दलहन फसलों की बोआई ज्यादा जोखिम भरी है। अच्छे किस्म के उन्नत बीजों को उपलब्ध कराने में सरकार नाकाम रही है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Mon, 26 Aug 2019 10:26 AM (IST)Updated: Mon, 26 Aug 2019 10:26 AM (IST)
दलहन फसलों से किसानों का घट रहा मोह, खरीफ सीजन में क्षेत्रफल घटा; सरकार की योजनाएं भी बेअसर
दलहन फसलों से किसानों का घट रहा मोह, खरीफ सीजन में क्षेत्रफल घटा; सरकार की योजनाएं भी बेअसर

लखनऊ [अवनीश त्यागी]। दालों की महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए दलहन फसलों की उपज बढ़ाने के लिए बनी विभिन्न योजनाओं के अनुकूल नतीजे नहीं मिल रहे हैं। दालों में आत्मनिर्भरता के बजाय आयात बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है। इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में गत वर्ष की अपेक्षा 712 करोड़ रुपये ज्यादा रकम की दालें आयात करनी पड़ीं। दालें महंगी होने के बाद भी किसानों में दलहन फसलों की ओर रुझान बढ़ नहीं पा रहा। इस खरीफ सीजन में मूंग को छोड़ अन्य दलहन फसलों की बोआई करने में किसानों ने अधिक रुचि नहीं दिखाई। गत वर्ष से कम क्षेत्रफल में दलहन की बोआई हुई, इसके चलते उत्पादन भी प्रभावित होने की आशंका बनी है। 

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दलहन उत्पादन बढ़ाना कृषि विभाग के लिए चुनौती बनी हुई है। पूर्ववर्ती सरकार ने दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष अभियान की शुरुआत की थी। विशेषकर बुंदेलखंड क्षेत्र को केंद्रित करके दलहन अभियान चला था परंतु ठोस नतीजे नहीं निकल पाए। सरकार ने दलहन फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर किसानों को लुभाने की कोशिश की। खरीफ सीजन में उर्द, मूंग और अरहर की बोआई के आंकड़ों पर गौर करें तो गत वर्ष की तुलना में उनका क्षेत्रफल घटा है। अरहर की बोआई नौ हजार हेक्टेयर और उर्द का क्षेत्रफल 34 हजार हेक्टेयर कम रहा। मूंग का क्षेत्र भले ही कुछ अधिक रहा परंतु इस वर्ष के लक्ष्य से पीछे ही रहा।

किसान विजयपाल सिंह का कहना है कि दलहन फसलों की बोआई ज्यादा जोखिम भरी है। अच्छे किस्म के उन्नत बीजों को उपलब्ध कराने में सरकार नाकाम रही है। निजी कंपनियों के मंहगे बीज खरीदने से किसानों की लागत दोगुना से अधिक हो जाती है।

निराश्रित पशुओं से नुकसान अधिक

दलहन फसलों को सर्वाधिक नुकसान निराश्रित पशुओं से होता है। तमाम प्रयास के बावजूद आवारा पशुओं की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। बुंदेलखंड के उमाशंकर का कहना है कि दलहन फसलों को पशुओं से बचा पाना असंभव होता है। इसके अलावा बीमारियों को खतरा भी लगातार बना रहता है। पैदावार कम होने के अलावा सरकारी खरीद के उचित प्रबंध न होने के कारण किसान बिचौलियों के हाथों लुट जाता है।

दालों का आयात बना मजबूरी

बाजार की खपत के अनुरूप पैदावार न होने के कारण दालों का आयात मजबूरी बना है। आयात शुल्क बढ़ाने के बाद भी आयात बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2019-20 में अप्रैल-जून तक 5.61 लाख टन लगभग 1,681 करोड़ रुपये की दाल का आयात हुआ जबकि इसी अवधि मेंं वर्ष 2018-19 में 3.57 लाख टन करीब 969 करोड़ रुपये की दाल का आयात किया गया था।


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