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पसंदबाग में अम्मी के साथ आराम फरमा रहीं 'बेगम अख्तर', मजार पर आकर सुकून पाते हैं प्रशंसक

बेगम अख्तर ने ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन को अपनी गायिकी से समृद्ध किया। वो भातखंडे में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहीं। उनका लखनऊ से संबंध इतना प्रगाढ़ था कि वो मुंबई की चमक दमक छाेड़कर लखनऊ वापस आ गई थीं।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 06:00 AM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 06:35 AM (IST)
पसंदबाग में अम्मी के साथ आराम फरमा रहीं 'बेगम अख्तर', मजार पर आकर सुकून पाते हैं प्रशंसक
मल्लिका ए तरन्नुम बेगम अख्तर का दिल हमेशा लखनऊ धड़कता रहा।

लखनऊ, जेएनएन। गजल, ठुमरी और दादरा को बुलंदियों पर ले जाने वालीं मल्लिका ए तरन्नुम बेगम अख्तर के दिल में हमेशा ही लखनऊ धड़कता रहा। पिता लखनऊ में सिविल जज थे, जिन्होंने फैजाबाद की मुश्तरी बाई से शादी की थी, हालांकि ये शादी चल नहीं सकी। फैजाबाद में जन्मीं बेगम अख्तर लखनऊ आईं और यहीं की होकर रह गईं। उनकी मुलाकात लखनऊ में बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से हुई। ये मुलाकात निकाह में बदल गई और अख्तरी बाई बेगम अख्तर हो गईं। इसके बाद उन्हें गाना छोड़ना भी पड़ा। वो करीब पांच साल तक नहीं गा सकीं और बीमार भी रहने लगीं। उन्होंने लखनऊ आकाशवाणी में गाने का निर्णय लिया और रिकॉर्डिंग स्टूडियो लौटीं। संगीत का सिलसिला दोबारा शुरू हो गया, जो उनकी अंतिम सांस तक चलता रहा। बेगम अख्तर ने ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन को अपनी गायिकी से समृद्ध किया। वो भातखंडे में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहीं। उनका लखनऊ से संबंध इतना प्रगाढ़ था कि वो मुंबई की चमक दमक छाेड़कर लखनऊ वापस आ गई थीं। वो अहमदाबाद में थीं, तब एक कार्यक्रम के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ी और फिर 30 अक्टूबर 1974 को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी इच्छा अनुसार लखनऊ में ठाकुरगंज के पसंदबाग में उनकी मां के बगल में ही उन्हें दफनाया गया। बेगम अख्तर को उनके योगदान के लिए 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1968 में पद्मश्री और 1975 में पद्मभूषण मिला।

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कुछ साल पहले बेगम अख्तर की पुण्य तिथि पर लखनऊ वालों की ओर से खास श्रद्धांजलि दी गई, ठाकुरगंज के पसंदबाग में उनकी मजार को संवार लिया गया। बेगम अख्तर की मजार को संवारने का काम उनकी शिष्या स्व. शांति हीरानंद और सनतकदा संस्था के प्रयासों से संभव हो सका। केंद्र सरकार की ओर से भी इस काम के लिए मदद मिली। यहां पर बेगम अख्तर के साथ उनकी अम्मी की भी मजार है। दोनों को ही संवारा गया। बेगम अख्तर के प्रशंसक आज भी यहां आते हैं और सुकून पाते हैं। सनतकदा की माधवी कुकरेजा बताती हैं, पहले ये जगह उजाड़ थी। यहां आने वाले बेगम अख्तर के प्रशंसक इसे देखकर मायूस हो जाते थे। फिर इसे संवारने का संकल्प लिया गया। मजार को खूबसूरत तरीके से ईट की दीवारों से घेरा गया। यहां नये खंभे भी बनाए गए। मजार पर मकराना के संगमरमर की खूबसूरत कारीगरी भी की गई, जो ताजमहल में देखने को मिलती है।

एसएनए में बेगम अख्तर की यादें

उप्र संगीत नाटक अकादमी द्वारा बेगम अख्तर की पुण्यतिथि पर शुक्रवार को यादें कार्यक्रम होगा। संत गाडगे जी प्रेक्षागृह में शाम साढ़े छह बजे से होने वाले कार्यक्रम में वाराणसी की सुचरिता गुप्ता गजल एवं ठुमरी की प्रस्तुति देंगी। कार्यक्रम को फेसबुक पर लाइव पर देखा जा सकेगा।


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