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हाथ की सफाई से घटेगा मरीज का एंटी बायोटिक का खर्च, विशेषज्ञों ने दिए टिप्स

पीजीआइ में हॉस्पिटल इंफेक्शन कंट्रोल सेल द्वारा हैंड हाइजीन पर व्याख्यान का आयोजन किया गया।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Thu, 09 May 2019 09:30 AM (IST)Updated: Sat, 11 May 2019 08:15 AM (IST)
हाथ की सफाई से घटेगा मरीज का एंटी बायोटिक का खर्च, विशेषज्ञों ने दिए टिप्स
हाथ की सफाई से घटेगा मरीज का एंटी बायोटिक का खर्च, विशेषज्ञों ने दिए टिप्स

लखनऊ, जेएनएन। अस्पताल के कर्मियों में हाथ की सफाई बेहद अहम है। वह एक मरीज से दूसरे मरीज के संपर्क में आने से पहले ठीक तरह से हाथ धोएं। ऐसा करने से संक्रमण पर काफी अंकुश लगेगा। वहीं मरीज का एंटीबायोटिक का खर्च भी कम होगा।

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पीजीआइ में बुधवार को हॉस्पिटल इंफेक्शन कंट्रोल सेल द्वारा हैंड हाइजीन पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस दौरान विभाग के प्रमुख प्रो. राजेश हर्ष वर्धन ने कहा कि वर्तमान में 50 फीसद से भी कम पैरा मेडिकल स्टाफ हैंड हाइजीन की प्रैक्टिस करते हैं। वहीं पीजीआइ में किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट समेत अन्य विभाग में सर्विलांस और जागरूकता अभियान चलाया गया। तो ऐसे में हैंड हाइजीन में बढ़ावा देखा गया। स्टाफ में यह औसत बढ़कर 70 से 80 फीसदी तक हो गया। यदि हैंड हाइजीन का ध्यान रखा जाए तो 30 फीसद एंटीबायोटिक का खर्च कम किया जा सकता है। ऐसे में मरीज का सात से आठ हजार रुपये बचाया जा सकता है।

वहीं, सीएमएस प्रो. अमित अग्रवाल के मुताबिक अस्पताल प्रबंधन विभाग को जागरूक करने के साथ ही हैंड हाइजीन के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई जाए। डॉ. रिचा मिश्र के मुताबिक कॉल्सट्रेडियम डिफसिल, मेथलसीन रजिस्टेंस स्ट्रेफलोकोकस आरियस, इंट्रोकोकस, न्यूमो कोकस , सुडोमोनाज का सबसे अधिक संक्रमण मरीज से मरीज में फैलता है। चिकित्सा अधीक्षक डा. एके भट्ट ने कहा कि काम के भार के कारण कई बार हैंड हाइजीन प्रैक्टिस स्टाफ नहीं कर पाता है। मगर इसे फॉलो करना चाहिए।

सेनीटाइजर से हाथ को करें साफ

हाथ में ब्लड लगा है तो पहले साबुन से हाथ साफ करना चाहिए, नहीं तो मरीज को छूने से पहले सेनीटाइजर से हाथ साफ करना चाहिए। सेनीटाइजर हाथ में लगाकर हाथ को सुखा लेने से हाथ में लगे बैक्टीरिया मर जाते हैं।

आटो इम्यून डिजीज पकड़ने के लिए एसजीपीजीआइ ने सिखाई तकनीक

एसजीपीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलाजी विभाग ने चार दिवसीय आयो एंटी बॉडी वर्कशॉप के समापन के मौके पर विभाग के प्रमुख प्रो. आरएन मिश्र एवं प्रो. अमिता अग्रवाल ने कहा कि आटो इम्यून डिजीज का सही समय पर सही उपचार कर नियंत्रित किया जा सकता है। इस वर्ग में सौ से अधिक बीमारियां आती है जिसमें एसएलई, पाली मायोसाइटिस, वेस्कुलाइटिस, रूमटायड अर्थराइटिस प्रमुख बीमारियां है। इन बीमारियों का पता सामान्य जांच से नहीं लगता है। इसके लिए विशेष जांच होती है जो संस्थान में स्थापित है । इस जांच तकनीक के विस्तार के लिए वर्कशॉप का आयोजन किया गया, जिसमें जिपमर पांडिचेरी, सीएमसी वेल्लौर, अमृता इंस्टीट्यूट कोच्ची, पीजीआइ चंडीगढ़ जैसे संस्थान के डीएम , एमडी छात्र सीखने के लिए आए।

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