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जागरण संवादीः हर लेखक होता है अपनी किताब का सीईओ

लेखन और संपादन जितना जरूरी है, उससे ज्यादा महत्व पुस्तक की मार्केटिंग का है। लेखक किताब का रचनाकार और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) भी होता है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Fri, 03 Nov 2017 11:29 PM (IST)Updated: Sat, 04 Nov 2017 10:50 AM (IST)
जागरण संवादीः हर लेखक होता है अपनी किताब का सीईओ
जागरण संवादीः हर लेखक होता है अपनी किताब का सीईओ

लखनऊ (जेएनएन)। द रोजाबल लाइन, चाणक्याज चांट और कृष्णा की जैसी लोकप्रिय थ्रिलर उपन्यासों के लेखक अश्विन सांघी का मानना है कि किताब का लेखन और संपादन जितना जरूरी है, उससे कहीं ज्यादा महत्व है पुस्तक की मार्केटिंग का।

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आखिर एक लेखक सिर्फ किताब का रचनाकार नहीं, मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) भी होता है। वह सवाल करते हैं कि जब दो साल आपने किताब लिखने और उसके संपादन पर खर्च किये तो छह महीने उसकी मार्केटिंग पर क्यों नहीं? शुक्रवार को दैनिक जागरण संवादी के मंच पर उन्होंने वरिष्ठ आइएएस अधिकारी और 'लव साइड बाई साइड' और 'एवरी माइल ए मेमोरी' जैसी किताबों के लेखक पार्थसारथी सेन शर्मा के सवालों के जवाब देते हुए अपनी साहित्य यात्रा के पन्ने खोले।

एक लेखक और अपनी किताबों के मैनेजर मार्केटिंग के तौर पर अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि वे किताब लिखते और घूम-घूमकर किताबों की दुकानों पर यह देखते कि वहां उनका उपन्यास उपलब्ध है या नहीं। अक्सर ऐसे मौके पर उनके प्रकाशक का सेल्समैन भी साथ होता। पहला उपन्यास प्रकाशित होने के बाद वह एक दुकान पर गए, लेकिन वहां उनके उपन्यास की तीन प्रतियां किसी कोने में धूल की परत के नीचे पड़ी थीं। सेल्समैन ने उनके कान में कहा कि जो दिखता हैै, वही बिकता है। इसी सूत्रवाक्य पर अमल करते हृुए उन्होंने धूल से सनी उपन्यास की तीन प्रतियों को बेस्ट सेलर की रैक पर रख दिया और इसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

सांघी की ननिहाल कानपुर में है और उनका मानना है कि यदि वे अपने नाना की ओर से हर हफ्ते तोहफे के तौर पर भेजी जाने वाली किताबें नहीं पढ़ते तो साहित्य से उनका लगाव नहीं होता। नाना की सीख थी कि तुम सरस्वती के पीछे भागो, लक्ष्मी खुद-ब-खुद पीछे आएंगी और यही उनके जीवन का फलसफा रहा कि कैसे दोनों देवियों को साथ रखूं। अपने स्थूल आकार की तुलना वह सरस्वती और लक्ष्मी के बीच बैठने वाले गणेश से करते हैं। साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण की वजह 2002 में श्रीनगर की यात्रा रही जब वह रोजाबल मकबरे पर गए। इस मकबरे में पीर की मजार के नीचे स्थित कब्र ने उनके भीतर कौतूहल का एक ऐसा तूफान पैदा किया जिसने दो साल की कड़ी मशक्कत के बाद उनके पहले उपन्यास 'द रोजाबल लाइन' की शक्ल ली। हालांकि एक लेखक के तौर पर उन्हें मकबूलियत यूं ही नहीं मिली। पहली किताब को तीस मर्तबा प्रकाशकों और 17 बार लिटरेरी एजेंट्स ने रिजेक्ट किया, लेकिन वह इससे विचलित नहीं हुए। उनके जेहन में हमेशा यह ख्याल रहता कि मशहूर अमेरिकी उपन्यास 'गॉन विद द विंड' 12 और मशहूर अमेरिकी उपन्यासकार स्टीफेन किंग की पहली किताब 30 बार रिजेक्ट हुई थी। 

पहली किताब पर समीक्षकों को 

डैन ब्राउन के 'द डा विंची कोड' की स्पष्ट छाप दिखायी दी। सांघी के उपन्यास लेखन के पीछे गंभीर शोध छिपा होता है। उनका मानना है कि जहां आस्था से जुड़े तथ्य संदर्भ में आयें तो वहां झूठ भी ऐसे बोलो कि वह सत्य पर आधारित दिखे। 'कृष्णा की'  के लेखन के दौरान एक पार्टी में उनसे किसी ने कल्कि अवतार के बारे में पूछा जिस पर उन्होंने अनभिज्ञता जतायी। अगले सुबह संस्कृत के विद्वान अपने एक मित्र से उन्होंने संपर्क किया और उनके माध्यम से कल्कि पुराण का अंग्रेजी तर्जुमा हासिल किया और उसे तन्मयता से पढ़ा। हालांकि वह अब अपने उपन्यासों के लिए किए जाने वाले शोध के लिए अपने करीबियों की टीम पर ज्यादा निर्भर हैं। वह कहते भी हैं कि 'उपन्यास लेखन एक टीम एफर्ट है।

उनकी पुस्तक चाणक्याज चांट के लेखन का आइडिया भी खासा दिलचस्प है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद वह दिल्ली एयरपोर्ट पर मुंबई की फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे। टीवी पर उन्होंने देखा कि डीएमके नेता करुणानिधि दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से गर्मजोशी से मिले। इस पर उहोंने निष्कर्ष निकाला कि यूपीए-2 सरकार में डीएमके तो शामिल होगी ही, लेकिन कुछ देर बाद उन्हें खबर मिली कि करुणानिधि नाराज होकर चेन्नई वापस चले गए। इस पर उनके जेहन में सवाल कौंधा कि क्या राजनीति हमेशा ही ऐसी पेचीदा और रपटीली रही है? इसी दरम्यान अपनी मां की सहेली के कहने पर उन्होंने कौटिल्य का अर्थशास्त्र पढ़ा और तब उन्हें अहसास हुआ कि राजनीति के आधुनिक संदर्भों में भी चाणक्य वैसे ही प्रासंगिक हैं। उनके इस अहसासात ने 'चाण्क्याज चांट' को जन्म दिया। 

'कृष्णा की' का किस्सा भी खासा दिलचस्प है। कोलकाता में एक कॉलेज में लेक्चर देने के बाद दोपहर में उन्होंने टैक्सी ड्राइवर से घुमाने के लिए कहा। वह उन्हें लेकर एक साधारण से मंदिर में गया जहां हरे रंग के एक सिंहासन पर अमिताभ बच्चन की फोटो रखी थी जिसकी वहां मौजूद लोग पूजा कर रहे थे। बाहर निकलने पर उन्हें सड़क किनारे एक लड़का अमिताभ चालीसा बेचते दिखा। उनके दिमाग में सवाल कौंधा कि यदि उनकी मृत्यु हो जाए और एक हजार साल बाद उनका पुनर्जन्म हो तो तब तक देश में अमिताभ बच्चन के हजारों मंदिर मौजूद होंगे। तब उनसे सवाल होगा कि क्या आज से हजार वर्ष पहले अमिताभ बच्चन वाकई में मौजूद थे? वही सवाल जो आज अक्सर राम और कृष्ण के संदर्भ में पूछा जाता है। वह कहते हैं कि भारत में कभी मिथक और इतिहास में फर्क नहीं किया गया। इन दोनों के मिश्रण से मिस्ट्री यानी रहस्य बनता है और यही 'कृष्णा की' की उत्पत्ति का सबब बना। 


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