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बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए मंत्रालय ही कर रहा पर्यावरण नियमों से खिलवाड़

केंद्रीय मंत्रलय ने बीस हजार से 50 हजार वर्ग मीटर की बिल्डिंग के लिए पर्यावरणीय अनुमति की शर्त को कर दिया था खत्म।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 01 Dec 2018 12:38 PM (IST)Updated: Sat, 01 Dec 2018 12:38 PM (IST)
बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए मंत्रालय ही कर रहा पर्यावरण नियमों से खिलवाड़
बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए मंत्रालय ही कर रहा पर्यावरण नियमों से खिलवाड़

लखनऊ, रूमा सिन्‍हा। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रलय, जिस पर पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी है, अपने ही नियमों को कमजोर करने पर उतारू है। कंस्ट्रक्शन कंपनियों को बड़ी राहत देने की कोशिश में नियमों को शिथिल करते हुए मंत्रलय ने 14 नवंबर को नोटिफिकेशन जारी कर 20 हजार से 50 हजार वर्ग मीटर की बिल्डिंग, कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट व 20 हजार से डेढ़ लाख वर्ग मीटर के औद्योगिक शेड्स, शैक्षिक संस्थानों, अस्पताल, हॉस्टल के लिए पर्यावरणीय अनुमति लिए जाने की शर्त को ही समाप्त कर दिया। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने नोएडा निवासी विक्रांत तोंगड़ की याचिका पर तत्काल कार्रवाई करते हुए रोक लगा दी।

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यह पहला मौका नहीं है, जब मंत्रालय ने बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए पर्यावरण नियमों को शिथिल करने का प्रयास किया है। वर्ष 2016 में भी मंत्रलय द्वारा 20 हजार वर्ग मीटर से डेढ़ लाख वर्ग मीटर में बनने वाले प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण अनुमति की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया था। बाद में पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगड़ की शिकायत पर एनजीटी ने इसे पर्यावरण की अनदेखी मानते हुए गैर संवैधानिक करार देते हुए रद कर दिया था।

एक बार फिर पर्यावरण मंत्रलय ने एरिया को कुछ कम करते हुए 20 हजार से 50 हजार वर्ग मीटर में बनने वाली बिल्डिंग व कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरणीय अनुमति की शर्त को शिथिल करते हुए स्थानीय नगर निकायों, जिला पंचायतों, नगरपालिका, विकास प्राधिकरणों से ही पर्यावरण अनुमति लेने की इजाजत दे दी थी।

तोंगड़ कहते हैं कि इससे बिल्डरों को तो फायदा होता, लेकिन पर्यावरण को जबर्दस्त चोट पहुंचती। उनका कहना है कि सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट हो, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग हो या वेस्ट वॉटर की रिसाइक्लिंग, ज्यादातर प्राधिकरण इसे लागू कराने में विफल रहे हैं। ऐसे में वे बिल्डरों को कैसे स्वीकृति दे सकते हैं।

ये है प्रावधान

राज्यस्तरीय पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन समिति बड़े प्रोजेक्ट को पर्यावरणीय अनुमति देती है। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े नियमों की अनदेखी न हो, यह सुनिश्चित करती है। कमेटी में कई विशेषज्ञ होते हैं, जबकि विकास प्राधिकरण या निकायों में ऐसी कोई विशेषज्ञता ही नहीं होती, जो पर्यावरण को होने वाली क्षति का आकलन कर सके। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण बड़ा सवाल बन जाता।

स्टेट एन्वायरमेंट अथॉरिटी उत्तर प्रदेश के पूर्व चेयरमैन डॉ. एसके भार्गव ने बताया कि मंत्रालय द्वारा नियमों के शिथिलीकरण की कोशिशों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा। होना तो यह चाहिए कि पर्यावरण नियमों को और अधिक कड़ा किया जाए। यही नहीं, प्रोजेक्ट पूरे होने के बाद समय-समय पर इनका निरीक्षण भी किया जाए।

ये है मामला

बिल्डरों को स्टेट लेवल एन्वायरमेंट इंपैक्ट अससमेंट अथॉरिटी (एसइआइएए) से अनुमति लेनी होती थी। अथॉरिटी केंद्रीयपर्यावरण मंत्रलय द्वारा पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन अधिसूचना, 2006 के तहत गठित की गई थी। पर्यावरण संरक्षण एक्ट के सख्त नियमों के अनुपालन से बचने के लिए बिल्डर इससे मुक्ति चाहते हैं।


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