ग्रेटर नोएडा के उपभोक्ताओं की अब सस्ती होगी बिजली, एनपीसीएल ने औसत लागत से कहीं अधिक की कमाई
UP Latest News विद्युत नियामक आयोग ने नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड की चालू वित्तीय वर्ष के लिए बिजली दर के प्रस्ताव पर सुनवाई की। इस दौरान उपभोक्ता परिषद ने कहा जिस तरह से कंपनी ने ज्यादा कमाई की उसे देखते हुए एक वर्ष तक मुफ्त में बिजली देनी चाहिए।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। ग्रेटर नोएडा के बिजली उपभोक्ताओं को बिजली के मौजूदा खर्चे से राहत मिलती दिख रही है। नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड (एनपीसीएल) ने पिछले वर्षों में उपभोक्ताओं से बिजली आपूर्ति की औसत लागत से कहीं अधिक कमाई की है।
उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने शुक्रवार को एनपीसीएल की चालू वित्तीय वर्ष के लिए बिजली दर के प्रस्ताव पर जन सुनवाई की। सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने कंपनी द्वारा लागत से प्रति यूनिट 2.05 रुपये तक ज्यादा कमाने का मुद्दा उठाते हुए बिजली दर घटाने के साथ ही प्रकरण की सीबीआइ से जांच कराने की भी मांग आयोग से की।
वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए कंपनियों के वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) के साथ ही बिजली दर को अंतिम रूप देने के लिए आयोग ने शुक्रवार को भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जन सुनवाई की। अंतिम दिन निजी क्षेत्र की कंपनी एनपीसीएल और ट्रांसमिशन कारपोरेशन के टैरिफ को लेकर सुनवाई हुई। पहले-पहल एनपीसीएल द्वारा बिजली दरों पर प्रस्तुतीकरण किया गया।
प्रस्तुतीकरण को देखने के बाद उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब कंपनी का एवरेज बिलिंग रेट (एबीआर) ज्यादा है और औसत विद्युत लागत कम है तो बिजली की दर कम क्यों नहीं की गई? वर्ष 2019-20 में रेग्युलेटरी सरचार्ज सहित एबीआर 8.17 रुपये प्रति यूनिट था जबकि औसत विद्युत लागत 6.12 रुपये थी।
इसी तरह 2020-21 में एबीआर 8.34 रुपये और लागत 7.39 रुपये थी। इस तरह से कंपनी ने लागत से 2.05 रुपये यूनिट तक ज्यादा कमाया। प्रकरण को गंभीर बताते हुए सीबीआइ जांच की मांग करते हुए वर्मा ने कहा कि 30 वर्ष के लिए कंपनी को दिए गए लाइसेंस की अवधि अगले वर्ष 30 अगस्त को समाप्त हो रही है।
चालू वित्तीय वर्ष के लिए भी कंपनी द्वारा 8.16 रुपये एबीआर और लागत 8.05 रुपये प्रस्तावित करने पर परिषद अध्यक्ष ने कहा कि जिस तरह से कंपनी ने ज्यादा कमाई की है उसको देखते हुए एक वर्ष तक संबंधित क्षेत्र के उपभोक्ताओं को मुफ्त में बिजली मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कंपनी ने बिजली खरीद सहित ज्यादा लाइन हानियां प्रस्तावित किया है जिसे न मानते हुए हानियां छह प्रतिशत ही मानी जाए।
घाटे में चल रही अन्य बिजली कंपनियों का जिक्र करते हुए परिषद अध्यक्ष ने कहा कि इनके पैरामीटर पर एनपीसीएल की बिजली दरें तय करना ही गलत है। एनपीसीएल के उपभोक्ताओं की बिजली दरें कम करके उन्हें रेग्युलेटरी लाभ भी दिया जाए।
इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन नोएडा से जुड़े उपभोक्ताओं ने क्षेत्र में बिजली आपूर्ति की खराब स्थिति पर ङ्क्षचता जताते हुए कहा कि दरों से ज्यादा हमारे लिए निर्बाध बिजली जरूरी है क्योंकि एनजीटी के आदेश के चलते जनरेटर भी नहीं चला सकते हैं।
सुनवाई के बाद वर्मा ने बताया कि कंपनी का 1176 करोड़ रुपये सरप्लस निकल रहा है। ऐसे में एनपीसीएल की बिजली किसी भी सूरत में महंगी होने वाली नहीं है बल्कि आयोग द्वारा बिजली की मौजूदा दर में निश्चिततौर पर कमी किए जाने की पूरी उम्मीद है।
एमडी के 6.50 करोड़ सालाना वेतन लेने पर भी उठे सवाल : सुनवाई के दौरान उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने कंपनी की बैलेंस शीट का हवाला देते हुए कहा कि विद्युत उपभोक्ताओं के खर्चे पर एनपीसीएल के प्रबंध निदेशक प्रति वर्ष 6.50 करोड़ रुपये का भारी-भरकम वेतन ले रहे हैं। वर्मा ने आयोग से मांग की कि कंपनी के सभी कैपिटल खर्च और करोड़ों रुपये से गाड़ियां खरीदने के प्रस्ताव को खारिज किया जाए।
अपग्रेड किया जाए ट्रांसमिशन सिस्टम : ट्रांसमिशन टैरिफ पर उपभोक्ता परिषद ने कहा कि इसे 24.21 पैसे प्रति यूनिट से 31.73 पैसे प्रति यूनिट करने की मांग की जा रही है लेकिन ट्रांसमिशन कारपोरेशन का सिस्टम तो मिसमैच है। टैरिफ को 31 प्रतिशत बढ़ाने से पहले सिस्टम को अपग्रेड किया जाए। तीन करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं का कुल भार 6.60 करोड़ किलोवाट है जबकि 132 केवी ट्रांसमिशन सब स्टेशनों की कुल क्षमता 5.21 करोड़ किलोवाट ही है।
लगभग डेढ़ करोड़ किलोवाट के मिसमैच होने के साथ ही 20 प्रतिशत तक बिजली चोरी का लोड भी सिस्टम पर ही है। ऐसे में अब तक 26 हजार मेगावाट से अधिक के लोड उठाने वाले सिस्टम को जल्द न सुधारा गया तो कभी भी पूरी तरह से ध्वस्त हो सकता है जिससे उपभोक्ताओं को ही दिक्कत होगी। इस पर आयोग के चेयरमैन आरपी सिंह ने कारपोरेशन के एमडी को निर्देश दिया कि पीक डिमांड का सही आकलन कर दूसरे राज्यों की तरह सिस्टम में सुधार की यहां भी योजनाएं लागू की जाएं।