UPPCL: यूपी में स्मार्ट प्रीपेड मीटर के तेज चलने की शिकायतें क्यों आ रही सामने? बिजली कंपनियों ने की ये बड़ी गलती
बिजली कंपनियां ने भारत सरकार के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद स्मार्ट प्रीपेड मीटर की रीडिंग जांच कराए बिना ही प्रदेश में 1.45 लाख स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगा दिए हैं। स्मार्ट प्रीपेड मीटर की विश्वसनीयता परखने के लिए केंद्र सरकार ने उपभोक्ताओं के यहां लगाए जाने वाले पांच प्रतिशत मीटर की रीडिंग का मिलान करने का निर्देश दिया था ताकि देखा जा सके कि मीटर तेज चल रहा है या नहीं।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। स्मार्ट प्रीपेड मीटर के तेज चलने की शिकायतें यूं ही सामने नहीं आ रही हैं। बिजली कंपनियां ने भारत सरकार के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद स्मार्ट प्रीपेड मीटर की रीडिंग जांच कराए बिना ही प्रदेश में 1.45 लाख स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगा दिए हैं।
स्मार्ट प्रीपेड मीटर की विश्वसनीयता परखने के लिए केंद्र सरकार ने उपभोक्ताओं के यहां लगाए जाने वाले पांच प्रतिशत मीटर की रीडिंग का मिलान करने का निर्देश दिया था, ताकि देखा जा सके कि मीटर तेज चल रहा है या नहीं। इस पर उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद बिजली कंपनियां गलती स्वीकारते हुए केंद्र के निर्देश का पालन करने की बात कह रही हैं।
प्रदेश में अब तक लगाए गए लगभग 1.45 लाख स्मार्ट प्रीपेड मीटर में से एक लाख मीटर पूर्वांचल, तीस हजार दक्षिणांचल, चार से पांच हजार पश्चिमांचल और लगभग 2500 स्मार्ट प्रीपेड मीटर मध्यांचल में लगाए गए हैं। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने पिछले वर्ष 16 सितंबर को स्पष्ट निर्देश जारी किया था कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर की विश्वसनीयता कायम करने के लिए अनिवार्य रूप से पांच प्रतिशत स्मार्ट प्रीपेड मीटर के समानांतर चेक मीटर लगाए जाएं। आदेश में कहा गया था कि उपभोक्ता के परिसर पर जो साधारण मीटर लगा है, उसे ही चेक मीटर के रूप में प्रयोग में लाया जाए और इसकी रीडिंग का मिलान अनिवार्य रूप से तीन महीने तक कर समीक्षा की जाए।
पांच प्रतिशत की सीमा को 30 प्रतिशत तक बढ़ाये जाने की मांग
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि अब तक एक भी चेक मीटर उपभोक्ताओं के परिसर पर नहीं लगाया गया। उन्होंने बिजली कंपनियों के अधिकारियों को केंद्र सरकार के इस निर्देश से अवगत कराते हुए कहा इस आदेश का तत्काल पालन कराया जाए। वर्मा ने भारत सरकार को एक प्रस्ताव भी भेजा है और यह मांग की है कि पांच प्रतिशत की सीमा को 30 प्रतिशत तक बढ़ाया जाए।
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