जागरण विमर्श : उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्र केंद्रित हो शिक्षा व्यवस्था
अकादमिक बैठक में नई शिक्षा नीति दुरुस्त कैसे बने पर परिचर्चा। विशेषज्ञ प्रो. भूमित्र देव सिंह ने बेहतर शिक्षा के लिए दिए कारगर सुझाव।
लखनऊ, जेएनएन। शैक्षिक संस्थानों में रिमोट कंट्रोल से चल रही व्यवस्था पर अंकुश लगाना होगा। संस्थानों को छात्र केंद्रित बनाना होगा। हर विश्वविद्यालयों में नई परंपरा स्थापित करनी होगी। इतना ही नहीं नोबल पुरस्कार प्राप्त विषयों पर विश्वविद्यालयों में चर्चा करनी होगी। कुछ ऐसे ही विचार गोरखपुर विश्वविद्यालय, रुहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली, बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा और एक निजी विश्वविद्यालय समेत चार विश्वविद्यालयों में छह बार कुलपति रहे प्रो. भूमित्र देव सिंह ने व्यक्त किए।
सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित अकादमिक बैठक में देर से आ रही नई शिक्षा नीति दुरुस्त कैसे बने विषय पर बोलते हुए प्रो. भूमित्र देव ने कहा शिक्षा व्यवस्था में व्यापक और सार्थक बदलाव के लिए सकारात्मक कदम उठाए जाने की जरूरत है। इस बदलाव में सभी की सहभागिता सुनिश्चित होनी चाहिए। विश्वविद्यालयों में नई परंपराओं को लागू किए जाने की जरूरत है। शिक्षकों के सर्वश्रेष्ठ रिसर्च पेपर लाइब्रेरी में प्रदर्शित कराए जाने चाहिए। अंग्रेजी का शब्द बिबलियोमेट्री का अर्थ है कि हम क्वालिटी का मापन कैसे करें। विज्ञान में इसके मापन का तरीका इंपैक्ट फैक्टर है। हमने इतने वर्षो में शिक्षा की गुणवत्ता का कोई मापदंड तैयार ही नहीं किया। यह कैसे तय होगा कि हम विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा मुहैया करा रहे हैं या गुणवत्ताहीन। जिस विषय में नोबल पुरस्कार दिया गया है, उन विषयों पर शैक्षिक संस्थानों में चर्चा होनी चाहिए।
नई शिक्षा नीति में इस बात को भी स्थान दिया जाए कि विश्वविद्यालयों व शैक्षिक संस्थानों में बेस्ट स्टूडेंट फोरम बनाया जाना चाहिए। इन छात्रों में कुछ छात्रों को विश्वविद्यालय की बोर्ड ऑफ स्टडीज में भी शामिल किया जाना चाहिए। शिक्षकों को अध्यापन का ऐसा तरीका अपना होगा कि कठिन विषय को भी सरल बनाकर पढ़ाएं। जिससे विद्यार्थियों को समझने में सरलता हो। आसन बात को मुश्किल लहजे में बताना की आदत छोड़े।
शिक्षक छात्र अनुपात को तत्काल प्रभाव से दुरुस्त बनाया जाना चाहिए। कि वल्र्ड बेस्ड इंफॉरमेशन सिस्टम स्थापित करने की जरूरत है। इसके अलावा स्किल डेवलपमेंट की दिशा में कारगर कदम उठाए जाने चाहिए। शैक्षिक संस्थानों को वितीय रूप से स्वतंत्र बनाया जाना चाहिए, मगर अनिवार्य है कि व्यवस्था पारदर्शी होनी चाहिए। डेनमार्क की शिक्षा व्यवस्था का भी आंकलन करने की जरूरत है।