क्रूर काल ने छीन लिया लाल तो मां-बाप ने उठाया यह सराहनीय कदम
परिवार की मंशा थी कि जन्म से सेरेब्रल पलिसी से पीडि़त आयुष का देहदान किया जाए जिससे चिकित्सक उस पर शोध कर सकें। ताकि भविष्य में कोई बच्चा इससे पीडि़त न रहे।
लखनऊ, जेएनएन। संजय विश्वकर्मा व मनीषा के कलेजे का टुकड़ा आयुष आज उनके बीच नहीं है। महज पांच वर्ष के आयुष को काल के क्रूर हाथों ने छीन लिया। किसी भी माता-पिता के लिए इससे बड़ी कोई क्षति नहीं हो सकती कि उनकी गोद में खेलने वाला लाल उनसे दूर हो जाए। बावजूद इसके गमजदा विश्वकर्मा परिवार ने नन्हें आयुष के नेत्रदान व देहदान का फैसला लिया। केजीएमयू के एनॉटमी विभाग में पिता व परिवारीजन ने आयुष का देहदान व नेत्रदान किया। दरअसल परिवार की सोच थी कि उनके बेटे पर शोध किया जाए जिसका लाभ अन्य बच्चों को मिल सके।
आयुष जन्म से ही सेरेब्रल पॉलिसी नामक बीमारी से पीडि़त था। पिता संजय बताते हैं कि आयुष के इलाज के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। एक बेटी के बाद आयुष व दूसरी बेटी का जन्म हुआ था। जुड़वा बच्चों में आयुष जन्म से ही सेरेब्रल पॉलिसी से पीडि़त था जबकि बेटी स्वस्थ थी। लाल कुआं निवासी संजय बताते हैं कि आयुष को कुछ दिन से सर्दी-जुकाम था। सोमवार को जकडऩ बढ़ी तो निजी अस्पताल में भर्ती किया। रात में सोते-सोते आयुष की मृत्यु हो गई। परिवार की सलाह हुई कि जन्म से सेरेब्रल पॉलिसी से पीडि़त आयुष का देहदान किया जाए जिससे चिकित्सक उस पर शोध कर सकें।
इससे शायद भविष्य में इस रोग से पीडि़त बच्चों के इलाज में मदद मिल सके। देहदान के साथ उसका कार्निया भी दान कर दिया गया। संजय-मनीषा की गोद भले ही खाली हो गई हो लेकिन तसल्ली इस बात की है कि उनका लाल कम से कम शोध में तो जिंदा ही रहेगा। एनॉटमी विभाग के एसके पांडेय बताते हैं कि अब तक कुल 85 देहदान केजीएमयू में किए जा चुके हैं जिनमें तीन बच्चे हैं। आयुष से पहले जिन दो बच्चों का देहदान हुआ था उसमें एक तो नवजात था जबकि दूसरे बच्चे का देहदान बैलून संस्था द्वारा किया गया था।