आरक्षण के जरिए सर्वांगीण विकास की उम्मीद बेमानी
दैनिक जागरण कार्यालय में आरक्षण के विभिन्न पहलुओं पर हुआ विमर्श। हर वर्ग के लिए समान योजना पर सरकार को देना होगा जोर।
लखनऊ, पुलक त्रिपाठी। पिछड़ों को सशक्त करने की सोच के साथ आरक्षण लाया गया था। धीरे-धीरे आरक्षण अपने उद्देश्य से भटकने लगा और आरक्षण के आकर्षण में अगड़ी जातियों की भी पिछड़ों में शामिल होने की चाह बढऩे लगी, मगर आरक्षण से विकास की उम्मीद करना बेमानी होगी। यह समझना होगा कि हमारे लिए आरक्षण नहीं, आत्मनिर्भरता जरूरी है।
'दैनिक जागरण' कार्यालय में हुई सोमवारीय अकादमिक बैठक में 'क्या आर्थिक आरक्षण से राजनीतिक हित के साथ सामाजिक हित भी सधेंगे?, आर्थिक आरक्षण के औचित्य पर उठे सवाल कितने जायज हैं? और जरूरत नौकरियां बढ़ाने की या आर्थिक आरक्षण लागू करने की?' पर विमर्श हुआ। बैठक में लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर मनोज अग्रवाल ने कहा कि राजनेताओं के पास लगातार बढ़ती बेरोजगारी व असमानता का कोई स्थाई हल नहीं मिल पाया है। लगातार ऊंच-नीच की खाई बढ़ती गई और समाज के हर वर्ग में असमानता संग बेरोजगारी बढ़ती गई। विकास का मॉडल कभी भी इन मूल बिंदुओं को समझ नहीं पाया। ऐसे में मजबूर होकर लोग सरकारी नौकरियों की ओर आकर्षित होने लगे।
किंतु यह कोई स्थायी समाधान नहीं है। ऐसा अब तक के समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को दिए गए आरक्षण के अनुभवों से पता चलता है। आवश्यकता इस बात की है कि कि विकास को सार्वभौमिक एवं पोषणीय बनाने के लिए लोगों को निर्भरता से हटाकर आत्मनिर्भरता की ओर ले जाना होगा। जिसमें किसी प्रकार का भेदभाव न हो। इसके तमाम उदाहरण हैं। उज्ज्वला और सौभाग्य जैसी योजनाएं ही बिना भेदभाव के सभी को लाभांवित कर सकती हैं। अनुभव बताते हैं कि कोई भी विकास योजना ने विकास तो जरूर किया लेकिन उसे सामाजिक तथा आर्थिक विषमताओं को लगातार प्रगाढ़ ही किया।
इस लिहाज से चाहे स्थानीय सरकार हो या अन्य सरकार, जनता की आत्मनिर्भरता बढ़ाने की बजाय राजनेताओं पर निर्भरता बढ़ाने का काम ज्यादा किया है। यही कारण है कि जनता लगातार मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरसती रही है। फिर चाहे बिजली हो, स्वास्थ्य सेवा हो या फिर गरीब किसानों की समस्याएं। हमारे यहां की बैंकिंग व्यवस्था भी बड़े कारोबारियों को ही सुविधा मुहैया कराने में रुचि रखती हैं। ऐसे में जो लोग स्वरोजगार से भी जुड़े थे वो भी अपना रोजगार गंवा बैठे।
जिसके कारण विकास पर एक नए तरह का बोझ तैयार होने लगा। जिसमें बेरोजगारी प्रमुख रूप से उभर कर सामने आई। इन परिस्थितियों में आरक्षण बहुत कारगर उपाय साबित हो पाएगा, इस पर संदेह है। हममें आत्मनिर्भरता खत्म होने लगी है और निर्भरता बढ़ी है। हम सरकार और राजनेताओं पर निर्भर होने के आदि हो चुके हैं।
आरक्षण एक सामाजिक संतुष्टि है। इसकी वजह से राजनैतिक वैमनस्यता बढ़ी है। इससे दीर्घकालिक लाभ की उम्मीद करना उचित नहीं होगा। देश का विकास चाहिए तो हमें सरकार या नेताओं पर निर्भर न रहकर आत्मनिर्भर बनना होगा। इस आत्मनिर्भरता कमी को पूरा करने के लिए सरकार को भी सार्थक प्रयास करने होंगे।