चुनावी चर्चा : कोई नहीं है टक्कर में... अभी तो बस मोदी-मोदी
हजरतगंज से मुंशीपुलिया के बीच 11 किमी की दूरी में हमने मेट्रो में अप-डाउन किया। करीब 36 मिनट लगे। इस दौरान सहयात्रियों से हमने खुलकर बात की।
लखनऊ, (पवन तिवारी)। जनाब ! ये नवाबों का शहर है, दबावों का नहीं। यही ठसक लखनऊ मेट्रो की भी है। सुबह कोर्ट, कचहरी, दफ्तर जाने का वक्त हो और धक्का-मुक्की न हो..ऐसा देश की किसी और मेट्रो में नहीं मिलने वाला। ...उतरते वक्त सहयात्रियों को कृपया धक्का न दें.. उद्घोषक की यह सौम्य अपील अभी बेमानी सी दिखती है। इसी पुरसुकूं माहौल में हमने चुनावी नब्ज टटोली। जब हम लखनऊ की बात कर रहे होते हैैं, तब हम केवल किसी शहर-ए-खास की बात नहीं कर रहे होते। हम बात कर रहे होते हैैं-राज्य सत्ता के केंद्र राजधानी की। गाजियाबाद से लेकर गाजीपुर, बरेली से लेकर वाराणसी, मेरठ से लेकर मिर्जापुर, बदायूं से लेकर बलिया और पीलीभीत से वाया गोरखपुर पडरौना की। रोजगार, पढ़ाई, इलाज और मुकदमे के लिए प्रदेश के हर कोने का शख्स शहर-ए-लखनऊ में आपको मिलेगा।
हजरतगंज मेट्रो स्टेशन: 10 बजकर 20 मिनट हो रहे हैैं। लोग-बाग मेट्रो के इंतजार में हैं। उद्घोषक की आवाज हलचल पैदा करती है-यात्रीगण, कृपया ध्यान दें। मुंशीपुलिया की ओर जाने वाली मेट्रो कुछ ही देर में प्लेटफॉर्म नंबर एक पर आ रही है। कृपया पीली रेखा से हटकर खड़े हों। जो लोग ट्रैक पर झांककर मेट्रो के आने की टोह ले रहे होते हैं, वे अचानक पीछे हट जाते हैैं। मेट्रो आई और सभी यात्रियों के साथ हम भी दाखिल हो गए। तकरीबन 50-55 की उम्र के दो यात्रियों के बीच बैठते ही हमने सवाल उछाला। चुनाव के बारे में कुछ बताइए? वे प्रशांत पांडेय थे, कानपुर के। जवाब के बजाए सवाल करना पसंद किया-आप बताएं, हमें तो आप लोगों (मीडिया) से ही हाल-खबर मिलती है। फिर बोले-कोई और तो सरकार बनाने की हैसियत में है नहीं। जाहिर सी बात है-मोदी की सत्ता कायम रहेगी।
नोट कर लीजिए...कम से कम 15 साल तक किसी दूसरी पार्टी को चांस मिलने वाला नहीं है। यह बात उन्होंने जरा जोर देकर कही तो बगल में बैठे उन्हीं के हमउम्र परमानंद को चुभ गई। उनकी बात काटने की गरज से हमारी ओर मुखातिब हुए। बोले, लिखिए-मोदी को नेगेटिव रेटिंग। भाषणबाजी ज्यादा कर रहे। प्रधानमंत्री का यह काम नहीं है। प्रधानमंत्री का काम है सिर्फ काम करना। परमानंद लखनऊ के बाशिंदे हैैं। बात कहने का उनका अंदाज भी लखनउवा है। मोदी के बारे में नेगेटिव सुनकर बगल वाले बाऊजी का चेहरा तमतमा जाता है तब परमानंद माहौल हल्का करते हैैं-वैसे वोट तो हम मोदीजी को ही देंगे। लेकिन, इतना जरूर कहेंगे कि इनकी सरकार का रंग-ढंग भी वैसा न होने पाए, जैसा कि कांग्रेस का रहा।
हमारे बगल युवा अनिल यादव ईयर फोन लगाए बैठे हैैं। आजमगढ़ी हैैं। लखनऊ में प्राइवेट जॉब करते हैैं। लगा कि हमारी बात सुन नहीं रहे, लेकिन म्यूजिक से ज्यादा उनको चुनावी चर्चा में रस आने लगा होगा तो उन्होंने ऑडियो म्यूट कर लिया। आप यहां हैैं, वोट कैसे डालेंगे। बोले-छुट्टी अप्रूव हो गई है-आजमगढ़ जाएंगे वोट डालने। अखिलेश यादव के मुकाबले निरहुआ को लाने पर चिढ़ते हैैं। कहते हैैं अखिलेश भइया के सामने बीजेपी का कोई दिग्गज होता तब भी हार जाता, निरहुआ की क्या बिसात।
मोहम्मद अलीम गोंडा के निवासी हैैं। नामचीन कार कंपनी में काम करते हैैं। ऑफिस से छुट्टी लेकर वोट डालने के हिमायती हैं। युवा हैं। क्या देश में कट्टïरपंथ बढ़ा है? कहते हैैं-बिलकुल नहीं। मैैं और मेरा दोस्त सुनील रोज टिफिन शेयर करते हैं। अब इस मॉडर्न युग में इन बातों का कोई खास मतलब नहीं रह गया है। सरकार किसी की भी हो, देश में रोजगार पैदा हों, हमारे चचेरे-ममेरे भाई खाड़ी देशों में पड़े हैं। बेहतर होता कि उनको दो जून की रोटी कमाने के लिए मुल्क न छोडऩा पड़ता।
सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ से लखनऊ घूमने आए रणजीत सिंह हजरतगंज की रौनक पर फिदा हैैं। वे मेट्रो स्टेशन गेट के बाहर खड़े होकर गंज की खूबसूरती निहार रहे हैैं। चुनाव में क्या चल रहा है? यहां का तो मेरे को पता नहीं, पर ये मान लो जी कि बस मोदी-मोदी ही है चारों ओर।
चुनाव मैदान में नेता अपना भाषाई संयम खो दें-एलडीए कॉलोनी,आशियाना की अनीता रावत को यह बात पसंद नहीं। कहती हैं-सब नेता एक जैसे हैैं। चाहे आजम खां हों या कोई और। महिलाओं का सम्मान नहीं करेंगे तो समाज और देश के लिए किसी नेता से क्या उम्मीद रहेगी।