'मैं हनुमान' उपन्यास में रामकथा को और भी तार्किक- मानवीय बनाने का प्रयास, लेखक पवन कुमार ने बताई विशेषता
लखनऊ में ज्येष्ठ के महीने की रौनक ही कुछ अलग होती है। बड़ा मंगल पर बजरंगबली के जयकारों संग भंडारों की धूम है। हनुमानमय माहौल में एक ऐसी किताब पर बात करते हैं जिसके केंद्रीय पात्र ही श्री हनुमानजी हैं।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। लखनऊ में ज्येष्ठ के महीने की रौनक ही कुछ अलग होती है। बड़ा मंगल पर बजरंगबली के जयकारों संग भंडारों की धूम है। हनुमानमय माहौल में एक ऐसी किताब पर बात करते हैं, जिसके केंद्रीय पात्र ही श्री हनुमानजी हैं। पढ़िए उपन्यास 'मैं हनुमान' के लेखक और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के निदेशक आइएएस पवन कुमार के साथ दुर्गा शर्मा की विस्तृत बातचीत के कुछ अंश...
प्रश्न- ‘मैं हनुमान' उपन्यास लिखने की पृष्ठभूमि के बारे में बताइए?
उत्तर- हनुमान रामकथा के अद्भुत पात्र हैं। उन्हें अलग-अलग समय पर अलग-अलग विशेषणों और उपमाओं से अलंकृत किया गया है। यद्यपि राम कथा में राम और हनुमान का मिलन तनिक विलम्ब से होता है किन्तु यह मिलन, कथा के दो पात्रों का मिलन मात्र नहीं कहा जा सकता। यह मिलन प्रमाण बनता है, दो भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियों, व्यवस्थाओं, तन्त्रों, परम्पराओं, सभ्यताओं, मान्यताओं के संयोग और सहयोग का। श्री राम और हनुमान का यह मिलन संस्कृति के कई द्वार खोलता है।
लेखक के रूप में हनुमान से उपयुक्त कोई और पात्र नहीं हो सकता क्योंकि उन्हें ‘ज्ञानीनाम अग्रगण्यम' और ‘बुद्धिमताम् वरिष्ठम्' अर्थात् बुद्धिमानों में भी श्रेष्ठतम घोषित किया गया है। ‘न बलौ न गतौ' भी उन्हें कहा गया है। हनुमान के चरित्र और व्यक्तित्व में बुद्धि, बल और विवेक का अद्भुत संयोग मिलता है जिसके कारण मैंने उन्हें अपने उपन्यास का केन्द्रीय पात्र चुना। मुझे लगा कि वे आज की परिस्थितियों में और भी प्रासंगिक हैं।
प्रश्न- हनुमानजी से जुड़ी धारणाओं और कथाओं के अलावा उपन्यास में और क्या विशेष है?
उत्तर- इस उपन्यास में लेखक के रूप में मैंने वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास कृत रामचरितमानस को आधार माना है। लेकिन मेरा प्रयास यह रहा है कि हनुमान और राम कथा के प्रसंगों को तार्किक दृष्टि से देखते हुए उनका विश्लेषण किया जाए।
प्रश्न- उपन्यास में सिर्फ श्री हनुमानजी की जीवन यात्रा है या आपका निजी विश्लेषण और विचार भी शामिल है?
उत्तर- लेखक घटनाएं तो वही उठाता है लेकिन उसके विश्लेषण का दृष्टिकोण बदल जाता है। एक लेखक के रूप में मेरी यह कोशिश है कि मैं अपने पाठकों को राम कथा को एक नये दृष्टिकोण से समझने की दृष्टि पैदा कर सकूं ताकि पाठक वैज्ञानिकता एवं तार्किकता के आधर पर रामकथा की घटनाओं की पृष्ठभूमि को बेहतर तरीके से समझ सके।
प्रश्न- उपन्यास में श्री हनुमानजी के माध्यम से क्या संदेश देना चाहते हैं?
उत्तर- प्रत्येक घटना अपने आप में बहुत कुछ पृष्ठभूमि लिए हुए होती है और उसका भविष्य पर भी प्रभाव पड़ता है। उसका क्या प्रभाव पड़ता है, इस पृष्ठभूमि में ही इस उपन्यास को पढ़ा जाना चाहिए। उपन्यास में राम कथा को कहीं अधिक मानवीय और व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया गया है।
प्रश्न- हनुमानजी पर उपन्यास लिखने की चुनौतियां क्या थीं?
उत्तर- एक लेखक के रूप में इस उपन्यास को लिखते समय सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि रामकथा में किसी भी प्रकार का परिवर्तन किए बगैर इस कथा को तार्किक रूप से प्रस्तुत करना। यह उपन्यास आत्म कथात्मक शैली में लिखा गया है। हनुमान ही इस उपन्यास के सूत्रधार और वाचक हैं। राम कथा के साक्षी के रूप में हनुमान का प्रत्येक घटना पर अपना विश्लेषण और दर्शन ही इस उपन्यास का मूल है।
भाषा के रूप में ही मेरा प्रयास रहा है कि भाषा तत्कालीन परिस्थितियों को सही तरीके से प्रस्तुत कर सके। मेरा यह भी प्रयास रहा है कि कथा का प्रस्तुतीकरण चमत्कार से ज्यादा मानवीय हो। जब मैं यह उपन्यास लिख रहा था तो यह प्रश्न मुझे बारम्बार परेशान करता रहा कि हनुमान को वानर माना जाए अथवा मानवीय रूप में स्वीकार किया जाए। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यदि हनुमान को वानर प्रजाति का कोई जानवर सदृश मान लिया जाए तो यह उनके व्यक्तित्व के साथ न्याय न होगा। हनुमान के वानर होने से यह अर्थ नहीं निकालना चाहिए कि वे बंदर प्रजाति के थे।
मुझे लगता है कि वानर शब्द वनवासी होने का द्योतक है। वे ऐसे वनवासी थे, जो वनवासी सभ्यता में पले-बढ़े अवश्य थे लेकिन बौद्धिकता और शारीरिक क्षमता में सामान्य मानव से भी कहीं अधिक विकसित प्रकृति के थे। ऐसे श्री राम भक्त हनुमान के जीवन चरित्र को मैंने समझने का प्रयास किया है। इस उपन्यास में हनुमान को केन्द्र में रखते हुए मैंने अपनी अकिंचन बुद्धि से आत्मकथा शैली में उनकी महिमा का वर्णन करने का प्रयास किया है।