Nag Panchami 2019 : शिव के जयकारों से गूंज उठा शहर, मंदिरों में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
पंचमी तिथि चार अगस्त को रात 11.02 बजे लग रही है जो पांच अगस्त को रात 8.40 बजे तक रहेगी।
लखनऊ, जेएनएन। सनातन धर्म के अद्भुत परंपराओं वाले देश भारत वर्ष में श्रवण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजन का विधान है। इस पर्व को नाग पंचमी कहते हैं। इस बार नाग पंचमी पांच अगस्त को मनाई जा रही है। पंचमी तिथि चार अगस्त को रात 11.02 बजे लग रही है जो पांच अगस्त को रात 8.40 बजे तक रहेगी। ऐसे में सावन के इस तीसरे सोमवार को लखनऊ और उससे जुड़े जिलों के शिव मंदिरों के बाहर सुबह से ही श्रद्धालुओं की कतारें लगने लगी।
अयोध्या में नागेश्वरनाथ पर जलाभिषेक के लिए श्रद्धालु उमड़े व सरयू में स्नान किया।
उधर, गोंडा के दुखहरन नाथ मंदिर में जलाभिषेक करने श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा।
वहीं, बलरामपुर के झारखंडी महादेव मंदिर में नाग पंचमी के अवसर पर जलाभिषेक हुआ।
बाराबंकी स्थित लोधेश्वर में आस्था की बारिश दिखाई दी। भोले संग भोलों का भी शिवभक्तों ने अभिषेक किया।
नाग पंचमी की पूजा विधि
- नाग पंचमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद घर के दरवाजे पर पूजा के स्थान पर गोबर से नाग बनाएं।
- मन में व्रत का सकंल्प लें।
- नाग देवता का आह्वान कर उन्हें बैठने के लिए आसन दें।
- फिर जल, पुष्प और चंदन का अर्घ्य दें।
- दूध, दही, घी, शहद और चीनी का पंचामृत बनाकर नाग प्रतिमा को स्नान कराएं।
- इसके बाद प्रतिमा पर चंदन, गंध से युक्त जल चढ़ाना चाहिए।
- फिर लड्डू और मालपुए का भोग लगाएं।
- फिर सौभाग्य सूत्र, चंदन, हरिद्रा, चूर्ण, कुमकुम, सिंदूर, बेलपत्र, आभूषण, पुष्प माला, सौभाग्य द्र्व्य, धूप-दीप, ऋतु फल और पान का पत्ता चढ़ाने के बाद आरती करें।
- माना जाता है कि नाग देवता को सुगंध अति प्रिय है। इस दिन नाग देव की पूजा सुगंधित पुष्प और चंदन से करनी चाहिए।
- नाग पंचमी की पूजा का मंत्र इस प्रकार है: "ऊँ कुरुकुल्ये हुं फट स्वाहा"!!
- शाम के समय नाग देवता की फोटो या प्रतिमा की पूजा कर व्रत तोड़ें और फलाहार ग्रहण करें।
कथा : राजा परीक्षित एक बार आखेट के लिए निकले और समीक ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे। तपस्यारत समीक ऋषि से जल मांगने पर जवाब न मिला तो उन्होंने गुस्से में मृत सर्प ऋषि के गले में डाल दिया। समीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि आए और देखा तो क्रुद्ध होकर परीक्षित को सातवें दिन तक्षक के डंसने से मृत्यु का श्रप दे दिया। परीक्षित की मृत्यु पर उनके पुत्र जनमेजय ने धरती को सांप विहीन करने के लिए नाग यज्ञ किया। इसके प्रभाव से सभी तरह के श्रप यज्ञ कुंड में आकर गिरने लगे जिसे सर्पो की प्रार्थना पर रोका तभी से यह परंपरा चली आ रही है। इस दिन नागों की पूजा करने से सर्प का भय नहीं रहता।
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