सरकार कर रही क्षेत्रीय भाषाओं का विकास: उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा
अखिल भारतीय भोजपुरी समाज की ओर से समारोह आयोजित। कबीर जयंती के मौके पर बुद्धिजीवियों का सम्मान।
लखनऊ(जागरण संवाददाता)। कम पढ़े लिखे होने के बावजूद कबीर दास जी ने समाज को जो दिशा दी उसका बखान शब्दों में नहीं किया जा सकता। क्षेत्रीय भाषाओं का उत्कृष्ट समावेश उनकी वाणी की विशेषता है। हमारी सरकार भी भोजपुरी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के लिए कार्य कर रही है। एकेडमी बनाकर भाषाओं के विकास की पहल प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है। अखिल भारतीय भोजपुरी समाज की ओर से गुरुवार को कबीर जयंती पर आयोजित सम्मान समारोह में उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। विश्वेश्वरैया प्रेक्षागृह में आयोजित समारोह में उप मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कबीर दास जी के जन्म स्थली मगहर में 24 करोड़ की लागत से बनने वाली संत कबीर अकादमी का शिलान्यास किया। इससे आने वाली पीढ़ी को उनकी जीवनी से परिचित होने का सुअवसर मिलेगा। इससे पहले अखिल भारतीय भोजपुरी समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रभु नाथ राय ने प्राविधिक शिक्षामंत्री आशुतोष टंडन, परिवहन एवं ऊर्जा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) स्वतंत्रदेव सिंह, ग्राम्य विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. महेंद्र सिंह, महापौर संयुक्ता भाटिया के अलावा सासद जगदंबिका पाल, अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बृजलाल और भाजपा नगर अध्यक्ष मुकेश शर्मा सहित कई गणमान्य लोगों को सम्मानित किया। उन्होंने भोजपुरी के विकास और भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर किए गए प्रयासों की जानकारी दी। डॉ. संजय बिहारी, एसके वर्मा, रवि कुमार, राघवेंद्र सिंह व डॉ. शिव कुमार समेत विविध क्षेत्रों में काम करने वाली कई विभूतियों को कबीर सम्मान प्रदान किया गया। समारोह में समाज के प्रदीप राय, हनुमान यादव, केशव राय, रामयतन यादव व जितेंद्र सोनकर समेत कई पदाधिकारी शामिल हुए। समारोह के दौरान कवि सम्मेलन भी हुआ।
ऋषि और कृषि का देश है भारत : डॉ. दिनेश शर्मा
उप मुख्यमंत्री डॉ.दिनेश शर्मा ने कहा कि भारत ऋषि और कृषि का देश है। यहा के संतों ने पूरे विश्व को प्रेरणा दी है। कबीरदास युग प्रवर्तक और समाज सुधारक थे। कबीर दास जी ने समाज में व्याप्त आडंबर और भ्रातियों को दूर करने का कार्य किया। ऐसा माना जाता है कि कबीरदास जी ने कहीं से भी विधिवत शिक्षा ग्रहण नहीं की थी और उन्हें अक्षर ज्ञान भी नहीं था। फिर भी उनकी रचनाओं का भाव इतना सशक्त था कि समाज पर उसकी अमिट छाप पड़ी। उन्होंने कहा कि कबीरदास जी को जब ज्ञान प्राप्त करने करने की इच्छा हुई तो वे गुरु की खोज करने लगे। उन दिनों काशी के स्वामी रामानंद की प्रसिद्धि चारों ओर फैली हुई थी। कबीरदास जी उनके पास गए और उनसे गुरु ज्ञान देने की प्रार्थना की। स्वामी रामानंद ने उन्हें शिष्य बनाना अस्वीकार कर दिया। कबीरदास अपनी धुन के पक्के थे। उन्हें पता था कि स्वामी जी नित्य प्रात: गंगा स्नान के लिए जाते हैं। एक दिन उसी मार्ग पर वे गंगाघाट की सीढि़यों पर लेट गए और उन्हें अपना शिष्य बनाना ही पड़ा।