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चुनाव चौपाल : बाढ़ आती है तो खेतों में चलानी पड़ती है नाव

गोमती नदी किनारे बांध न बनने से जलमग्न हो जाते हैं इटौंजा के दो दर्जन गांव। ग्रामीणों को दो से तीन महीने तक घरों की छतों पर रहना पड़ता है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 23 Apr 2019 06:39 PM (IST)Updated: Tue, 23 Apr 2019 06:39 PM (IST)
चुनाव चौपाल : बाढ़ आती है तो खेतों में चलानी पड़ती है नाव
चुनाव चौपाल : बाढ़ आती है तो खेतों में चलानी पड़ती है नाव

लखनऊ, जेएनएन। वैसे तो बारिश किसानों के लिए वरदान होती है, लेकिन मोहनलालगंज संसदीय क्षेत्र के इटौंजा के दो दर्जन गांवों के किसान मनाते हैं कि बारिश ही न हो। यदि बारिश अधिक हुई तो गोमती नदी का जलस्तर बढ़ेगा। इस कारण सैकड़ों बीघा खेतों में खड़ी फसल जलमग्न हो जाती है। खेत महासागर में तब्दील हो जाते हैं। उसमें नावें चलती हैं। ग्रामीणों को अपने घरों की छत पर दो से तीन महीने तक रहना पड़ता हैं। गांवों के स्कूल भी बाढ़ के कारण बंद हो जाते हैं। मवेशियों के आगे चारे का संकट खड़ा हो जाता है। कई संक्रामक बीमारियों की चपेट में मवेशी ही नहीं ग्रामीण भी आ जाते हैं।

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वर्ष 2000 से 2008 तक इटौंजा के इन गांवों से पलायन भी तेजी हुआ। लासा सहित कई गांवों में लोग अपनी बेटियों की शादी करने से अब भी कतराते हैं। वर्ष 2008 में बाढ़ इतनी भयावह थी कि ग्रामीणों ने अपने घरों से बाहर बाढ़ के पानी में दीया जलाकर दीपावली मनायी थी। वर्षों से सांसदों से लेकर विधायकों तक को ग्रामीणों ने इस विकराल समस्या का स्थायी हल निकालने की अपील की, लेकिन आज तक प्रदेश की राजधानी लखनऊ होने के बावजूद मोहनलालगंज संसदीय सीट के इन गांवों को बाढ़ से बचाने के लिए ठोस योजना ही नहीं बनी। इसी मुद्दे को लेकर दैनिक जागरण की चुनाव चौपाल इटौंजा के इकड़रिया कला गांव में आयोजित की गई।  

गोमती नदी के दोनों छोर पर यदि बांध बना दिया जाए तो बाढ़ का पानी गांवों में नहीं आएगा। बारिश में कभी दो महीने तो कभी तीन महीने पानी भरा रहता है। रास्ता भी नहीं बचता है। सांप लोगों को काट लेते है। राजकिशोर

शासन प्रशासन कई साल से आश्वासन देता आ रहा है, लेकिन कोई काम नहीं होता है। सांसद और मंत्री भी आए। गोमती का पानी बढ़ते ही दूसरा ठिकाना तलाशना पड़ता है। तैरकर हम गांव के भीतर जाते हैं। केशन प्रसाद लोधी 

दोहरा, लासा, बहादुरपुर, सुलतानपुर कई गांव ऐसे हैं जो हर साल बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। जो धान लगाते हैं वह भी नष्ट हो जाता है। इसका मुआवजा तक सरकार नहीं देती है। हम लोग अपने इंतजाम से नावों के जरिए जीवन को बचाने की जद्दोजेहद करते हैं। कृष्ण कुमार शर्मा

बाढ़ खत्म होने के बाद इटौंजा के दो दर्जन से अधिक गांवों में बीमारियां फैल जाती हैं। यहां की स्थिति बहुत भयानक है। जब भी गोमती का पानी बढ़ता है, बच्चों की पढ़ाई ठप हो जाती है। संजय यादव 

बंधा न होने के कारण बाढ़ के समय नाव ही आम लोगों का सहारा बनती है। रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए नावों से लोग दो से तीन किलोमीटर दूर जाते हैं। कुछ के लिए तो बाहर ऊंचाई वाली जगह कैंप भी लगते हैं, लेकिन अब इस समस्या का स्थायी समाधान चाहिए।  दीपक यादव

जब तक सरकार यहां बंधा नहीं बनाती तब तक समस्या का स्थायी हल नहीं हो सकता है। पुलिया बनाने से कोई फायदा नहीं है। इटौंजा के लिए यह सबसे बड़ा मुद्दा है। श्यामलाल

यहां से जीतकर सांसद बनने के बाद नेता तो दिल्ली चले जाते हैं, लेकिन हम लोगों को बाढ़ में फंसने के बाद बचाने कोई नहीं आता है। इटौंजा के अधिकतर गांवों में किसान आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस साल बाढ़ आती है उस साल फसल पूरी तरह चौपट हो जाती है। द्वारिका प्रसाद लोधी

हमारे यहां किसानों की खुशहाली गोमती की बाढ़ छीन लेती है। क्षेत्र में कोई फैक्ट्री नहीं है, इसलिए रोजगार का भी संकट है। खेती पर ही बड़े इलाके की निर्भरता है। बाढ़ के कारण सब कुछ चौपट हो जाता है। जगन्नाथ

पानी से मवेशी भी परेशान होते हैं। पीने का पानी हम लोगों को नहीं मिलता है। घरों में जोंक और सांप तक पहुंच जाते हैं। छत पर पूरा दो महीने बिताना पड़ जाता है। दिनेश

चुनाव के समय सभी कहते हैं कि अबकी बार बाढ़ की समस्या दूर हो जाएगी, लेकिन कोई समस्या दूर नहीं करता है। एक बार बाढ़ आई थी तो घरों की छत तक डूब गई थी। मनोहर 


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