प्रदेश की नौकरशाही पर भी तो आए श्वेतपत्र
कानून व्यवस्था, ऊंचाहार सामूहिक हत्याकांड और बिजली आपूर्ति योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए मुश्किलें लाए, परंतु उसकी अनेक समस्याओं की जड़ में नौकरशाही का ढीला रवैया रहा।
लखनऊ [आशुतोष शुक्ल]। फरवरी 2017 में 70 रुपये घन फीट बिकने वाली मौरंग इस समय करीब 135 रुपये बिक रही है। कर्ज माफी योजना का लाभ पाने वाले किसानों की संख्या लाखों में है लेकिन, यहां तो चर्चा उन चंद हजार किसानों की हो रही है जिनका एक से सौ रुपये तक ऋण माफ हुआ।
एक और उदाहरण फर्रुखाबाद का है जहां बच्चों की मौत होने पर सिटी मजिस्ट्रेट ने अभिभावकों से फोन पर बात करके जांच निपटा दी। इतने संवेदनशील निकले वह!
कानून व्यवस्था, ऊंचाहार सामूहिक हत्याकांड और बिजली आपूर्ति योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए मुश्किलें लाए, परंतु उसकी अनेक समस्याओं की जड़ में नौकरशाही का ढीला रवैया रहा। ऊपर के तीनों ही मामलों में सरकार की गलती नहीं लेकिन, किरकिरी उसकी हो रही है तो कारण हैं यूपी के वे अफसर जो सरकार के कहने में नहीं।
फिर कारण चाहे पंचम तल में व्याप्त विरोधाभास हो या अधिकारियों की 'ऐसे ही चलता है' वाली पारंपरिक कार्यशैली। नतीजा यह है कि दफ्तरों में फाइलों की रफ्तार सुस्त है। मौरंग के बेतहाशा बढ़े मूल्यों ने उन दो वर्गों को सर्वाधिक प्रभावित किया है जिन्हें 2019 के लिए भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह अपने पाले में करना चाहती है। कारण 'ई टेंडरिंग' का न होना हो या कुछ और, मौरंग की मार सबसे अधिक मध्य और निम्न मध्य वर्ग पर पड़ी जिसके घर की निर्माण लागत अचानक बढ़ गई और बिल्डरों को भी नुकसान उठाना पड़ा।
जो लोग अतिरिक्त पैसा नहीं जुटा सके, उन्होंने भवन निर्माण रोक दिया। इससे दिहाड़ी मजदूरों को काम मिलना बंद हो गया। चार-पांच महीनों में मजदूरों का दूसरे प्रदेशों में पलायन बढ़ा है। खनन निदेशक बलकार सिंह कहते हैं कि पहली अक्टूबर से खनन शुरू होने पर दाम गिरेंगे जबकि उत्तर प्रदेश सीमेंट व्यापार संघ के प्रदेश अध्यक्ष श्याम मूर्ति गुप्ता की राय में राज्य सरकार की खनन नीति कतई अस्पष्ट है। पादर्शिता के लिए नई खनन नीति लाना तो ठीक है लेकिन, बढ़ते दामों को काबू करना भी तो कल्याणकारी राज्य का ही काम है।
किसानों की ऋण माफी वह दूसरा मुद्दा है जहां नौकरशाही सरकार की छवि के आड़े आ गई। अफसर चाह लेते तो पांच, दस रुपये का कर्ज माफ करने के लिए बैंकों पर दबाव डाला जा सकता था। तब ऐसे किसानों के नाम ही कम्प्यूटर से तैयार सूची में नहीं आते और सरकार का मखौल भी न उड़ता। जितना कर्ज नहीं माफ हुआ, उससे अधिक का तो सर्टिफिकेट बन गया। मान भी लें बैंकों पर सरकार का जोर नहीं चला तो भी कम पैसे की माफी वाले किसानों को समारोह में बुलाने से बचा जा सकता था।
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पीईटीएन भी वह मुद्दा है जिसने सरकार की किरकिरी कराई। मामूली पाउडर को भयंकर विस्फोटक बताने वाले भी सरकारी अधिकारी ही थे। यह भी अधिकारियों का ही कमाल था जो एक दागी इंजीनियर पंचम तल तक जा पहुंचा। यह घटना जब सुर्खियां बनीं तो उसके खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू हुई। ऐसा भी हुआ जब आरंभिक दौर में अफसरों ने गलत सूचनाएं ऊपर तक पहुंचाईं। ऐसा भी हुआ जब प्रदेश के एक मृत अफसर को जिले में तैनाती दे दी गई।
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नौकरशाही वह सवाल है जो योगी सरकार को हल करना है। निकाय चुनाव सरकार की पहली बड़ी परीक्षा होने जा रहे हैं। सरकार चुनाव से पहले नगरों में सफाई अभियान चला रही है लेकिन, उससे पहले उसे अपने प्रशासनिक तंत्र की सफाई करनी होगी।
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सरकार 50 पार के काम न करने वाले और भ्रष्ट अफसरों की छंटाई कर रही है लेकिन, इसे निष्कर्ष तक पहुंचना बाकी है। इसलिए नौकरशाही पर भी श्वेतपत्र आना चाहिए। कामकाज का पेंच तो वहीं फंसता है...।