वेतन तो आया, लेकिन इलाज कराने के लिए नहीं बची थीं उसकी सांसें
पुरनिया उपकेंद्र पर डेढ़ दशक से तैनात चंद्रिका चौधरी की कैंसर के कारण मौत हो गई। उनको पिछले कुछ माह का वेतन भी नहीं मिला था।
लखनऊ, जागरण संवाददाता : महीनों से बीमार संविदाकर्मी का इलाज कराने के लिए न कोई अभियंता आगे आया और न ही संविदाकर्मियों से जुड़े संगठन। सोमवार दोपहर पुरनिया उपकेंद्र पर डेढ़ दशक से तैनात चंद्रिका चौधरी की कैंसर के कारण मौत हो गई। उनको पिछले कुछ माह का वेतन भी नहीं मिला था। इससे नाराज कर्मियों ने अभियंता कक्ष के बाहर शव रखकर प्रदर्शन भी किया। देर शाम पहुंचे अभियंताओं के आश्वासन के बाद मामला शांत हुआ। राजधानी में संविदाकर्मियों के कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति करने वाले कई संगठन हैं, लेकिन पुरनिया उपकेंद्र में इसके लिए कोई आगे नहीं आया।
स्थानीय कर्मियों ने बताया कि बलिया निवासी चंद्रिका चौधरी पिछले पंद्रह साल से पुरनिया उपकेंद्र में संविदाकर्मी के रूप में काम कर रहे थे। उपकेंद्र में ही पीछे रहते थे। बीमारी के बाद भी वह इलाज करवाकर काम कर रहे थे। पिछले कुछ माह से वेतन न मिलने के कारण आर्थिक संकट था। उपकेंद्र में तैनात अन्य संविदाकर्मियों की मदद से दाल रोटी चल रही थी। शनिवार को तबियत बिगड़ी तो उन्हें इंटीग्रल विश्वविद्यालय ले जाया गया। हालत ज्यादा खराब होने पर वहां के डाॅक्टरों ने भर्ती करने से मना कर दिया गया।
रविवार को उन्हें केजीएमयू में भी भर्ती न होने पर उसे लोगों ने उपकेंद्र लाकर छोड़ दिया। सोमवार को उसकी मौत हो गई।साथी कर्मियों ने बताया कि दो माह का वेतन मरने के बाद चंद्रिका को दिया गया। चंद्रिका के घर में पत्नी व तीन बच्चे हैं। अधिशासी अभियंता एनपी सिंह ने बताया कि संविदाकर्मी की मौत कैंसर बीमारी से हुई है। वेतन जैसी कोई समस्या नहीं थी। शव मंगलवार को गृह जनपद भेजा जाएगा।