लखनऊ से तो अटल ही रहेगा अटल बिहारी वाजपेयी का नाता
अटल बिहारी वाजपेयी का लखनऊ से खास रिश्ता रहा है। हालत नाजुक होने की सूचना पर सेहत के लिए मंदिर मस्जिद दुआएं मांगने का सिलसिला लगा रहा।
लखनऊ (जेएनएन)। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी यूं तो 1954 में लोकसभा के उप चुनाव में ही लखनऊ में किस्मत आजमाने आ गए थे लेकिन, सफलता दशकों बाद मिली। फिर ऐसी सफलता मिली कि वह भारत के प्रधानमंत्री बने और पूरी दुनिया में छा गए। लखनऊ जिस तरह उन पर फिदा था वैसे ही वह भी लखनऊ पर थे। लखनऊ से 14 वर्ष तक सांसद रहते हुए ही वह तीन बार प्रधानमंत्री बने थे। कारगिल विजय रही हो या पोखरण परीक्षण जैसी उपलब्धियों से अटल विश्व पटल पर उभरे तो लखनऊ का भी माथा गर्व से ऊंचा हो गया।
याद आई खटारा जीप
लखनऊ से जुड़ी यादों के गवाह बहुत
अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मभूमि लखनऊ से जुड़ी यादों के गवाह बहुत हैं। आम जन को भी उनके बहुत से संस्मरण भी याद हैं। उनके निधन की खबर मिलते ही बाजार से लेकर विशिष्ट हलकों तक में भी शोक की लहर दौड़ गई। वर्ष 1996 में जब भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आयी तब भी अटल जी लखनऊ से ही दूसरी बार सांसद चुने गए थे। अटल जी को तीन बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने का मौका लखनऊ से निर्वाचित सांसद के तौर पर ही मिला। बुधवार को जैसे ही अटलजी का स्वास्थ्य गंभीर होने की सूचनाएं आनी शुरू हुई तब से सार्वजनिक स्थल, घरों और कार्यालयों में हर एक जुबान पर उनकी चर्चाएं रही। सभी राजनीतिक दलों के दफ्तर भी इससे अछूते नहीं रहे। गुरुवार को केवल भाजपा ही नहीं वरन कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, और राष्ट्रीय लोकदल के दफ्तरों में अटलजी से जुड़े संस्मरण सुनाने की होड़ थी।
विपक्ष भी अटल का मुरीद
आमजन ही नहीं विपक्ष भी अटल का मुरीद है। राजनीतिक दलों की भावनाएं भी छलक उठीं। कांग्रेस मुख्यालय में एक पूर्व मंत्री का कहना था कि इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार बताकर अटलजी ने भारत की राजनीति में नए तरह की परंपरा आरंभ की। हालांकि उनके उत्तराधिकारियों ने यूटर्न लेते हुए विद्वेष की भाषा अपना ली है। समाजवादी पार्टी कार्यालय में पश्चिमी उप्र से एक प्रदेश पदाधिकारी का कहना था कि यह अटलजी ही थे जिनके नरम रुख से ही वर्ष 2003 में समाजवादी पार्टी को सत्ता संभालने का मौका मिल सका था। अटलजी ने स्वस्थ व सद्भाव वाली राजनीति को प्रोत्साहित किया। रालोद के दफ्तर में प्रदेश अध्यक्ष व अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों के बीच भी अटल जी के व्यक्तित्व व उनकी कार्य प्रणाली को लेकर चर्चाएं चलती रहीं। अटलजी के कार्यकाल में लखनऊ में कराए गए विकास कार्यों को गिनाने से भी उनको संकोच नहीं था। कहते हैैं कि विकास के तमाम कार्य कराने के साथ ही अटल जी को गोमती नदी की भी चिंता थी। विधानभवन, बापूभवन, शास्त्री भवन सचिवालय व कैंटीन में भी दिनभर अटल जी पर ही चर्चा चलती रही। जाहिर है, इसका असर कामकाज पर भी नजर आया। लखनऊ की बाजारों में भी व्यापारियों के बीच अटल जी को ही लेकर बातें होती दिखीं। अटलजी के भाषणों और उनके चुटीले अंदाज को देखने-सुनने के लिए ज्यादातर लोग टीवी के आगे डटे रहे। सोशल मीडिया पर भी अटल ही छाए रहे। अटल के साथ अपनी फोटो शेयर करने में भी कोई पीछे नहीं रहा।
अटल बिहारी बनाम पुलिन बिहारी
बात 1954 की है जब लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी के सामने कांग्रेस पुलिन बिहारी बनर्जी दादा थे। दोनों ने जोरदार चुनाव प्रचार किया लेकिन बाजी बनर्जी दादा ने मार ली थी। चुनाव हारने के बाद अटल जी ने शांत बैठकर अपनी हार का विश्लेशन किया और बाद में वह कांग्रेस पुलिन बिहारी बनर्जी ‘दादा के जा पहुंचे। उस दौर में राजनीति में ज्यादा तीखे वार एक दूसरे पर नहीं होते थे। वाजपेयी के पहुंचने से वहां पर मौजूद लोगों में थोड़ी खलबली मच गई लेकिन अटलजी ने अपने ही अंदाज में बनर्जी ‘दादा’ को जीत की बधाई दी और कहा अब तो कंजूसी छोड़ दो और लड्ड तो खिला दो, तब सभी लोग मुस्कराने लगे। अटल और लखनऊ के कई और मजेदार किस्से जिसे लोग आज याद करते हैं और अटलजी की सादगी का गुणगान गाते हैं।
फूलकुमारी बुआ
एक बार वह अचानक फूलकुमारी बुआ से मिलने अचानक उनके आवास पर पहुंच गए। दरअसल फूलकुमारी बुआ ग्वालियर में अटल जी के गुरु रहे त्रिवेणी शंकर वाजपेयी जी की बहन थीं। बुआ ने वाजपेयी की बात का जवाब बाद में दिया लेकिन उससे पहले वहां पर मौजूद लोगों का पैर छूने के लिए कहा। उनके आदेश के बाद अटलजी ने सबके पैर छूआ ऐसे करने पर कुछ लोगों ने उन्हें रोका लेकिन वह नहीं रूके बल्कि कह डाला ‘बुआ का आदेश है, पालन तो होगा ही। 1995 में अटल बिहारी वाजपेयी जी लखनऊ फिर लौटे और बीजेपी के मेयर प्रत्याशी डॉक्टर एससी राय को जिताने के लिए आये और जब भाषण देना शुरू किया तो वहां पर मौजूद लोग काफी प्रभावित हुए उन्होंने प्रचार के दौरान कहा कि आज से 40 साल पहले मैं जवान था। गंजिंग करता था। कैसरबाग चौराहे पर बैठता था। एक जवान लड़का लखनऊ की शाम को गंजिंग क्यों करेगा.. शाम को कैसरबाग चौराहे पर क्यों बैठेगा। इतना कहना था अंत में कहा कि लखनऊ बीमार है। इसलिए इसका इलाज करने के लिए डॉक्टर एससी राय को लाये है। उनका वोट मांगने का तरीका भी बेहद खास रहा है लखनऊ की राजा की ठंडाई भी काफी मशहूर है लेकिन इस दुकान की कभी शान हुआ करते थेे अटलजी।
किस्सा ठंढाई की दुकान का
अक्सर अटलजी अपने दोस्ते के साथ लखनऊ पर आते रहते थे। एक बार वह लालजी टंडन, कलराज मिश्र और राजनाथ सिंह के साथ इस दुकान पर अचानक से आ गए। उस जमाने में यहां पर कलयान सिंह की सरकार हुआ करती थी। राजा की ठंडाई पर अटल जी बातचीत में खो गए थे और दुकान मालिक विनोद जी ने इशारे से पूछा कैसी… सादी। अटल जी ने पलट कर जवाब दिया – मैं और सादी ! मैंने तो शादी ही नहीं की…इसलिए स्वाद भी नहीं जानता। सतीश भाटिया की मृत्यु पर अटल जी उनकी शवयात्रा के लिए पैदल चले थे और आलमबाग श्मशान घाट पर पहुंचे। अटलजी को रोकने के लिए अधिकारियों को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं रूके और कहने लगे शव यात्रा है इसमें गाड़ी से नहीं जाता है। इसके आलावा भी कई किस्से है जो आज भी लखनऊ वासियों की आंखों में जिंदा है।