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कैंपस में कानाफूसी : कथाकार साहब का ताक‍िया कलाम... मैं छोटा था तो वैसा हुआ था

दैनिक जागरण लखनऊ विशेष कॉलम कैंपस में कानाफूसी संवाददाता पुलक त्रिपाठी की कलम से।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 06 Jan 2020 11:12 AM (IST)Updated: Tue, 07 Jan 2020 08:51 AM (IST)
कैंपस में कानाफूसी : कथाकार साहब का ताक‍िया कलाम... मैं छोटा था तो वैसा हुआ था
कैंपस में कानाफूसी : कथाकार साहब का ताक‍िया कलाम... मैं छोटा था तो वैसा हुआ था

कथाकार साहब

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राजधानी के शिक्षा विभाग में तैनात एक साहब कथाकार हो चले हैं। विभाग में उनके अधीनस्थ पीठ पीछे उन्हें इसी नाम से पुकारते हैं। कारण यह है कि जब भी कर्मचारी कोई फाइल लेकर साहब के पास जाते हैं तो साहब प्रश्नों की छड़ी से उसे उलझा देते हैं। कर्मचारी उत्तर नहीं दे पाता तो साहब उसे बताते हैं कि एक बार मैं गैर जनपद में तैनात था तो वहां ऐसा हुआ। जब मैं छोटा था तो वैसा हुआ था। साहब की कहानियां सुन-सुन कर कर्मचारियों ने उनका निक नेम कथाकार रख दिया है। अब आफिस में जब किसी कर्मचारी को साहब बुलाते हैं तो दूसरा चुटकी लेते हुए कहता है कि जाओ तुम्हें कथाकार बुला रहे हैं। बस पूरे ऑफिस के लोग कथाकार साहब की कहानी की बाद आपस में चर्चा भी करते हैं, क्यों आज कौन सी कहानी सुनाई।

मामला कुछ कार्रवाई कुछ 

राजधानी के माध्यमिक शिक्षा विभाग में दो साहब ऐसे हैं जो खुद की कलम फंसने के डर से फाइलों का निस्तारण नहीं करते हैं। यूं कहें कि विवादों में फंसकर कुर्सी खोने के डर से पेंडिंग मामलों में हाथ डालने से डरते हैं। बीते दिनों उन्हें एक दोषी विद्यालय के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के आदेश हुए। पर साहब ने अपने समकक्ष अधिकारी पर टोपी घुमा दी। वहीं, बात दूसरे साहब की करें तो उनका भी यही आलम है। फर्जी भर्ती मामले में उन्हें जांच अधिकारी बनाया गया। इसके अलावा कई विद्यालयों में चल रहे समिति के विवाद को लेकर उन्हें जांच अधिकारी बनाया गया। कई सालों से जांच की स्थिति अभी जस की तस है साहब ने एक भी कार्रवाई नहीं की। जब भी साहब से पूछा जाता है तो वह जांच चल रही है, का बहाना बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं।

भटके नहीं सटके हैं वीसी साहब 

विवि का कुलपति बनते ही साहब भूल गए, उन्हें करना क्या है। जो करना चाहिए, वो छोड़ साहब सब कर रहे हैं। कुलपति बने हुए साल बीतने को हैं, मगर पांच साल से अटके दीक्षा समारोह पर मौन साधे हैं। साहब को लेकर कैंपस में तमाम चर्चाएं हैं। अब तो सब कहने लगे मूल काम को छोड़ साहब को हर काम याद है। वीसी साहब के रवैये से छात्र ही नहीं शिक्षक भी मुंह फुलाए बैठे हैं। क्योंकि असल मसला यह है कि उनका प्रमोशन भी वीसी साहब दबाए बैठे है। संस्थान के मसले पर भी साहब चश्मे पर हाथ लगाकर मामले को मोड़ देते हैं। नैक जैसे मामले को भी साहब ठंडे बस्ते में डालकर खुद रजाई ओढ़ लिए। तीन महीने बीतने को हैं मगर अक्टूबर के बाद कोई गतिविधि नहीं हुई। नए फार्मेट पर ब्योरा मांगा गया, मगर हालात जस के तस हैं।

कैंपस में कानाफूसी 

शहर का केंद्रीय विश्वविद्यालय खुराफात का भी केंद्र बना है। भले ही खुद पर दोधारी तलवार लटकी हो, मगर दूसरे को लंगड़ी लगाने में एक से बढ़कर एक हैं। मजे की बात यह कि यहां मामला कुछ और होता है और बन कुछ और ही बन जाता है। हाल में छात्रवास से जुड़े मामले में विवि भी कुछ बहका-बहका नजर आया। कुछ मामले में दोषी सामने होने के बाद भी अंधेरे में तीर चलाता रहा। प्रकरण गंभीर था, मगर विवि प्रशासन ने उसे धुएं में उड़ा दिया। महीनेभर बीतने के बाद भी न तो कोई उस खुराफात में पकड़ा गया और न ही विवि ने इस पर स्पष्टीकरण देना मुनासिब समझा। हद तो तब हो गई जब विवि प्रशासन ने पूरे मामले को घुमाते हुए छात्रओं पर ही जोर-आजमाइश शुरू कर दी। मातहत तो दूर संस्थान के मुखिया भी इस पर कोने में नजर आए।


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