साइबर हमला और भारत, इंटरनेट की दुनिया में हैकिंग का बढ़ता जोखिम
स्पष्ट नीति के न होने से बहुत सारी संस्थाएं उन पर हुए साइबर हमलों के बारे में जानकारी नहीं देतीं। साइबर संसार में सेंधमारी की बढ़ती घटनाओं के बीच हमारे देश में इनसे निपटने के लिए एक स्पष्ट रणनीति बननी चाहिए जो ऐसे मामलों में सुरक्षा प्रदान कर सके।
मुकुल श्रीवास्तव। इंटरनेट हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है और इसके बिना अब जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। लेकिन इंटरनेट की दुनिया में कुछ भी सुरक्षित नहीं, क्योंकि हैकर्स लगातार इंटरनेट पर हमले करते रहते हैं और दुनिया के तमाम देश इंटरनेट को पूर्णतया सुरक्षित करने में लगे हुए हैं। हाल ही में हैकर्स ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट में भी सेंध लगा दी। प्रधानमंत्री कार्यालय ने ट्वीट कर जानकारी दी थी कि थोड़ी देर के लिए प्रधानमंत्री का अकाउंट हैक हुआ था।
प्रसिद्ध हालीवुड फिल्म ‘डाइ हार्ड फोर’ के कथानक में एक ऐसी काल्पनिक समस्या का जिक्र किया गया है। जब अमेरिका के इंटरनेट पर एक अपराधी समूह का कब्जा होता है और पूरे देश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, पर इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता और साइबर हमलों से निपटने में हमारी तैयारी कभी भी इस फिल्मी कल्पना को हकीकत का जामा पहना सकती है। इंटरनेट ने दुनिया को एक स्क्रीन में समेट दिया है। समय, स्थान अब कोई सीमा नहीं है, बस इंटरनेट होना चाहिए, हमारे कार्य व्यवहार से लेकर भाषा तक हर क्षेत्र में इसका असर पड़ा है और भारत भी इसका अपवाद नहीं है।
बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब चीन के हैकर्स (इंटरनेट को भेदने वाले) ने भारत में वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया और भारत बायोटेक पर साइबर हमला करने की कोशिश की थी। अक्टूबर 2020 में मुंबई में पावर ग्रिड फेल होने से यहां के बड़े हिस्से की बिजली चली गई थी। अमेरिका की मैसाचुसेट्स स्थित साइबर सिक्योरिटी कंपनी रिकार्डेड फ्यूचर ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि चीन सरकार समर्थित हैकर्स के एक समूह ने मालवेयर के जरिये मुंबई में पावर ग्रिड को निशाना बनाया था।
अमेरिकी कंपनी आइबीएम की साइबर हमलों की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में भारत एक तरफ कोरोना महामारी से लड़ रहा था तो उसे दूसरी तरफ साइबर हमलों से पूरे एशिया-प्रशांत इलाके में भारत को जापान के बाद सबसे ज्यादा साइबर हमले ङोलने पड़े। सबसे ज्यादा साइबर हमले बैंकिंग और बीमा क्षेत्र से जुड़ी हुई कंपनियों पर हुए। वर्ष 2020 में एशिया में हुए कुल साइबर हमलों में से सात प्रतिशत भारतीय कंपनियों पर हुए। इंटरनेट के बढ़ते विस्तार ने साइबर हमले की आशंका को बढ़ाया है। साइबर हमले कई तरह से हो सकते हैं जैसे वेबसाइट डिफेंसिंग, इसमें किसी सरकारी वेबसाइट को हैक कर उसकी दिखावट को बदल दिया जाता है।
दूसरा तरीका है फिशिंग या स्पीयर फिशिंग अटैक जिसमें हैकर ईमेल या मैसेज के जरिये लिंक भेजता है, जिस पर क्लिक करते ही कंप्यूटर या वेबसाइट का सारा डाटा लीक हो जाता है। बैकडोर अटैक भी एक तरीका है जिसमें कंप्यूटर में एक मालवेयर भेजा जाता है, ताकि उपभोक्ता की सारी सूचनाएं मिल सके। देश को साइबर हमलों से बचाने के लिए भारत में दो संस्थाएं हैं। एक है सीईआरटी जिसे कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पांस टीम के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना 2004 में हुई थी। दूसरी है नेशनल क्रिटिकल इंफोर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर है जो रक्षा, दूरसंचार, परिवहन, बैंकिंग आदि क्षेत्रों की साइबर सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है। यह वर्ष 2014 से कार्यरत है।
भारत में अभी तक साइबर हमलों के लिए अलग से कोई कानून नहीं है। साइबर हमलों के मामले में फिलहाल आइटी एक्ट के तहत ही कार्रवाई होती है जिसमें वेबसाइट ब्लाक तक करने तक के प्रविधान हैं, लेकिन न तो ये प्रभावी हैं और न ही पर्याप्त। केंद्रीय संचार तथा इलेक्ट्रानिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रलय के अनुसार जनवरी से मार्च, 2020 के बीच देश में 1,13,334, अप्रैल से जून के बीच 2,30,223 और जुलाई से अगस्त से बीच 3,53,381 साइबर हमले हुए हैं। वहीं साल 2017-18 में साइबर अटैक से निपटने के लिए 86.48 करोड़ दिए गए जिनमें से 78.62 करोड़ रुपये खर्च किए गए। साल 2018-19 में 141.33 करोड़ रुपये जारी किए हुए, जबकि खर्च 137.38 करोड़ रुपये ही हुए। साल 2019-20 में साइबर फंड के नाम पर 135.75 करोड़ रुपये दिए गए जिनमें से 122.04 करोड़ रुपये ही खर्च हुए।
कंप्यूटर की दुनिया ऐसी है जिसमें अनेक प्राक्सी सर्वर होते हैं और समूचे विश्व में फैले इंटरनेट के जाल पर दुनिया की कोई सरकार हमेशा नजर नहीं रख सकती। बचाव की रणनीति ही देश को इन साइबर हमलों से बचा सकती है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत दुनिया के उन शीर्ष पांच देशों में है, जो साइबर क्राइम से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। भारत में साइबर खतरों से निपटने के लिए पिछली राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013 में आई थी, लेकिन पिछले आठ वर्षो में इंटरनेट की दुनिया में भारी बदलाव आए हैं। स्पष्ट नीति के न होने से बहुत सारी संस्थाएं उन पर हुए साइबर हमलों के बारे में जानकारी नहीं देतीं, क्योंकि उनके लिए कानूनी तौर पर ऐसा करना जरूरी नहीं है।
साइबर हमलों से बचने के लिए यह जरूरी है कि इंटरनेट के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण तकनीकी मूलभूत सुविधाओं जैसे राउटर्स, स्विच, सुरक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बने। वर्तमान में देश के लिए यह आसान नहीं होगा, क्योंकि भारत में मोबाइल फोन से संबंधित अनेक क्षेत्रों में चीनी उपकरणों का वर्चस्व है। इसलिए सबसे पहले इस व्यवस्था को बदलना होगा।
[प्रोफेसर, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय]