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Fraud in Lucknow University : पुराने चेक को सीटीएस चेक बनाकर उड़ाए गए डेढ़ करोड़ रुपये

Fraud in Lucknow University पुलिस जांच में सामना आया चौकाने वाला सच। जालसाजों की पैठ की जड़ों तक पुलिस जल्द कर सकती है बड़ा खुलासा।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 04 Dec 2019 10:44 AM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 07:12 AM (IST)
Fraud in Lucknow University : पुराने चेक को सीटीएस चेक बनाकर उड़ाए गए डेढ़ करोड़ रुपये
Fraud in Lucknow University : पुराने चेक को सीटीएस चेक बनाकर उड़ाए गए डेढ़ करोड़ रुपये

लखनऊ, (पुलक त्रिपाठी)। लखनऊ विश्वविद्यालय के खाते से गलत ढंग से किस्तों में निकाले गए करोड़ों रुपये के मामले में कईयों के हाथ भ्रष्टाचार से सने हैं। पुलिस तफ्तीश में एक-एक कर सामने उजागर हो रहे तथ्य चौकाने वाले हैं। जालसाजों ने पुराने चेक का नंबर इस्तेमाल कर नया सीटीएस चेक तैयार किया और सीमा के तहत किस्तों में करोड़ों रुपये लविवि के खाते से पार कर दिए। जालसाजों ने जिस तरह पूरे मामले को अंजाम दिया है, उससे बैंकों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठना लाजमी है। हालांकि इस तरह जालसाजी को अंजाम देना बिना संबंधित संस्थान के संभव भी नहीं।

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मामला वैसे साल दो साल के दरम्यान का है। मगर, जालसाजों ने लखनऊ विश्वविद्यालय में अपनी गहरी पैठ होने के बलबूते प्रकरण को दो दशक पहले से जोड़ कर गुमराह करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। पुलिस विवेचना के क्रम में लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए चेकों को लेकर यह तथ्य सामने आए हैं कि सभी चेकों में से दो चेक ऐसे हैं जिनको विश्वविद्यालय ने अपने अधिकारियों को वर्ष 2000 में निर्गत किया था, मगर वह चेक भुगतान के लिए बैंकों तक पहुंचे ही नहीं। विवि द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों के अनुसार डॉ ओंकार प्रसाद और डॉ एके सिंह को निर्गत चेक विश्वविद्यालय प्रशासन ने साल 2000 में ही निरस्त कर दिया। मगर, वह चेक निरस्त किए जाने के बाद मूलरूप से कहां हैं, विश्वविद्यालय प्रशासन इसकी जानकारी देने में कतरा रहा है।

चेक संख्या 976160 को विवि द्वारा वर्ष 2000 में किसी को निर्गत किया ही नहीं गया था, मगर जालसाजों ने इस बीस वर्ष पुराने चेक को मौजूदा चलन की सीटीएस चेक के रूप में तैयार भुगतान हासिल कर लिया।

गौर करने वाली बात यह भी है कि विवि प्रशासन ने अपनी एफआइआर में कहा है कि कूटरचित सभी चेकों का वर्ष 2000 में ही भुगतान किया जा चुका था, मगर जिस चेक को विश्वविद्यालय ने जारी ही नहीं किया उस चेक से भुगतान का दावा करना विवि प्रशासन की भूमिका पर सीधा और गंभीर सवाल है।

पुलिस तफ्तीश में विवि के कर्मचारियों की भूमिका पूरी तरह संदिग्ध मिल रही, क्योंकि जिन चेकों को निरस्त कर विवि प्रशासन द्वारा बतौर रिकॉर्ड अपने अभिलेखों में रखे होने की दलील दी जा रही है उसे उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। इतना ही नहीं विवि के खाते का ऑडिट करने वाली फर्म की भूमिका भी पुलिस की टारगेट पर है।


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