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मौसम की मार पर भारी पड़ी तकनीक, बारिश और ओलावृष्टि में भी 'मोटा' हो रहा आलू

इनसे सीखें बेमौसम भारी बारिश और ओलों का नहीं पड़ा कोई प्रभाव। प्रति एकड़ ढाई सौ से पौने तीन सौ कुंतल उपज का अनुमान।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 14 Mar 2020 09:03 PM (IST)Updated: Sun, 15 Mar 2020 08:31 AM (IST)
मौसम की मार पर भारी पड़ी तकनीक, बारिश और ओलावृष्टि में भी 'मोटा' हो रहा आलू
मौसम की मार पर भारी पड़ी तकनीक, बारिश और ओलावृष्टि में भी 'मोटा' हो रहा आलू

बाराबंकी, (जगदीप शुक्ल)। बेमौसम बरसात और ओलवृष्टि से हर तरफ हाहाकार है। खासकर किसान मायूस हैं। उनका पूरा अर्थतंत्र की गड़बड़ा गया है। आलम यह है, परंपरागत तरीके से बोई गईं गेहूं, आलू समेत तमाम फसलें 50 फीसद तक चौपट हो चुकी हैं लेकिन, हरख ब्लॉक के दौलतपुर निवासी प्रगतिशील किसान पद्मश्री राम सरन वर्मा पूरी तरह निश्चिंत हैं। इसलिए क्योंकि वे मौसम पर निर्भर नहीं रहते। हालात बिगडऩे पर उसे कोसते भी नहीं हैं। पल-पल रंग बदलते पर्यावरण के साथ उन्होंने न केवल खुद को बदला है बल्कि परंपरागत किसानी का ढर्रा भी छोड़ दिया। उसी का नतीजा है कि नई तकनीक से बोई आलू की उनकी फसल बारिश और ओलों में सुरक्षित है। 

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उन्होंने यह कमाल नालियों की संख्या कम करके और क्यारी बेड साइज बढ़ाकर किया, जिससे आलू सडऩे से बच गया। तकनीक पर मौसम की मुहर लगने के बाद रामसरन वर्मा प्रति एकड़ ढाई सौ से पौने तीन सौ कुंतल उत्पादन का दावा कर रहे हैं। केला, टमाटर में नवाचार के बाद इस नई तकनीक से पांच नवंबर 2019 को उन्‍होंने आलू की खेती प्रयोग के तौर पर शुरू की थी।  

मौसम की मार से यूं बची फसल

रामसरन वर्मा का कहना है कि परंपरागत तरीके से आलू की खेती करने वाले किसान हर क्यारी के बाद नाली बनाते हैं। आलू की फसल को नमी की जरूरत होती है। बेमौसम बरसात में पानी भरने से आलू सडऩे लगता है। नई तकनीक में फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए नौ इंच की गहराई पर बीज की बोआई की गई, जबकि परंपरागत तरीके से छह इंच पर बुवाई की जाती थी। क्यारियों का बेड साइज 22 इंच से 35 किए जाने के साथ ही तीन क्यारी पर एक नाली दी गई है। नालियां मोटी और चौड़ी होने के कारण फसल पर बारिश और ओलावृष्टि का फसल पर कुप्रभाव नहीं पड़ सका। जबकि, परंपरागत तरीके से की गई ज्यादातर आलू की फसल को सडऩे से ही नुकसान होने की आशंका है।    

परंपरागत तकनीक

  • सात बार सिंचाई की जाती थी
  • प्रति एकड़ करीब 30 हजार बीज बोए जाते थे
  • उत्पादन डेढ़ सौ क्विंटल प्रति एकड़    

नई तकनीक

  • पांच बार ही सिंचाई करनी होगी
  • प्रति एकड़ 42 हजार बीज बोए गए
  • उत्पादन करीब 270 क्विंटल प्रति एकड़ 

राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री भी नवाचार के कायल 

15 फरवरी को पद्मश्री रामसरन वर्मा के कृषि फार्म पर आयोजित 'खेती की बात खेत पर' राष्ट्रीय तकनीक सम्मेलन में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने भी शिरकत की थी। इस दौरान उन्होंने नई तकनीक से की गई आलू की खेती भी देखी थी। बता दें, खेती में नवाचार के चलते ही रामसरन को राष्ट्रपति ने 2019 में पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया था। इन्हें केंद्र सरकार के बाबू जगजीवन समेत छह राष्ट्रीय और 20 राज्यस्तरीय पुरस्कार मिल चुके हैं। 


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