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बाजार में सरकारी किताबों का संकट कहीं कोई षड्यंत्र तो नहीं

सचिव माध्यमिक शिक्षा परिषद के निर्देश पर अफसरों ने मारा छापा। एनसीईआरटी की पुस्तकों का मिला संकट, निजी प्रकाशकों की भरमार।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 18 Oct 2018 01:58 PM (IST)Updated: Thu, 18 Oct 2018 01:58 PM (IST)
बाजार में सरकारी किताबों का संकट कहीं कोई षड्यंत्र तो नहीं
बाजार में सरकारी किताबों का संकट कहीं कोई षड्यंत्र तो नहीं

लखनऊ, (जेएनएन)यूपी बोर्ड के एनसीईआरटी पाठ्यक्रम में बड़े खेल की आशंका है। यहां सरकारी प्रकाशकों की हीलाहवाली से कोर्स की निर्धारित पुस्तकों का संकट है। वहीं खुद ही डिजाइन को कॉपी कर बाजार में मनमानी कीमत पर बेच कर अवैध धंधा कर रहे हैं। यह खुलासा अफसरों की छापामारी में हुआ।

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दैनिक जागरण ने बुधवार को 'डिजाइन कॉपी कर ऊंचे दाम पर बेच रहे किताबें' शीर्षक से खबर प्रकाशित कर एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के नाम पर चल रहे खेल का भंडाफोड़ किया था। अवैध धंधे का खेल उजागर होने पर माध्यमिक शिक्षा विभाग हरकत में आया। बुधवार को सचिव माध्यमिक शिक्षा संध्या तिवारी के निर्देश पर संयुक्त निदेशक मंडल षष्ठ सुरेंद्र तिवारी व डीआइओएस डॉ. मुकेश कुमार व विज्ञान अधिकारी डॉ. दिनेश कुमार ने थोक पुस्तक विक्रेता शीतला बुक डिपो और पुस्तक वाटिका में पाठ्यक्रम को जांचा। इस दौरान कुछ विषयों की किताबों का कवर माध्यमिक शिक्षा परिषद की पुस्तकों के कवर से मिलता-जुलता मिला। इनमें सरकारी पुस्तक से तीन से चार गुना अधिक शुल्क प्रिंट पाया गया।

करार के बाद कैसे बेच रहा दूसरी किताब

संयुक्त निदेशक सुरेंद्र तिवारी के मुताबिक पुस्तक भंडार पर राजीव प्रकाशन की गाइड मिली। इसके कवर की डिजाइन माध्यमिक शिक्षा परिषद की पुस्तक के समान थी। वहीं इसी प्रकाशक का विभाग की किताबों को छापने का करार है। ऐसे में गाइड उपलब्ध कराना अवैध है।

कार्रवाई को लिए बोर्ड को भेजेंगे रिपोर्ट

संयुक्त निदेशक सुरेंद्र कुमार तिवारी के मुताबिक राजीव प्रकाशन का करार माध्यमिक शिक्षा बोर्ड इलाहाबाद के साथ हुआ है। इसमें कॉपी राइट का उल्लंघन हुआ या करार में तय शर्तों को दरकिनार किया गया। इस पर कार्रवाई सचिव बोर्ड द्वारा की जाएगी। लिहाजा, मामले की पूरी रिपोर्ट उन्हें भेजी जाएगी।

किताबों का संकट कहीं षडयंत्र तो नहीं

पहली बार सरकार ने यूपी बोर्ड में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) का पाठ्यक्रम लागू किया। अप्रैल से शुरू हुए सत्र में पुस्तक उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने करीब तीन प्रकाशकों से करार किया। मगर, शुरुआत में कुछ स्कूलों में स्टॉल लगवाकर पाठ्यक्रम उपलब्ध कराया गया। वहीं अचानक बाजार तक में सरकारी पुस्तकों का संकट छा गया, जो अभी तक बरकरार है। वहीं निजी प्रकाशकों की पुस्तकों का बाजार में भरमार हो गई। ऐसे में बाजार में सरकारी पुस्तकों का गायब होना षडयंत्र की ओर इशारा करता है।

करोड़ों का बाजार, कमीशन की लॉबी

माध्यमिक स्कूलों में लाखों बच्चे पढ़ते हैं। इनमें पुस्तकों का हर वर्ष करोड़ों का कारोबार होता है। सरकारी पुस्तकों में कमीशन पांच फीसद से कम है। वहीं निजी प्रकाशकों की पुस्तक पर 40 से 50 फीसद तक कमीशन है। पूरे खेल में प्रकाशक, पुस्तक विक्रेता, स्कूल के प्रबंधक, प्राधानाचार्य, शिक्षक व विभाग के जिम्मेदारों की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता है।


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