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COVID-19: आपदा में निजी अस्पतालों बने 'लाचार', 15 हजार में सिर्फ एक नर्सिंग होम में कोरोना का इलाज

COVID-19 महामारी के दौर में भी स्वार्थ का पलड़ा भारी है। प्रदेश में करीब 15 हजार से अधिक प्राइवेट अस्पताल व नर्सिंग होम हैं लेकिन वे कोरोना मरीजों के इलाज के लिए सहमत नहीं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 09 Jun 2020 10:26 AM (IST)Updated: Tue, 09 Jun 2020 10:26 AM (IST)
COVID-19: आपदा में निजी अस्पतालों बने 'लाचार', 15 हजार में सिर्फ एक नर्सिंग होम में कोरोना का इलाज
COVID-19: आपदा में निजी अस्पतालों बने 'लाचार', 15 हजार में सिर्फ एक नर्सिंग होम में कोरोना का इलाज

लखनऊ [आशीष त्रिवेदी]। स्थिति अनुकूल रहने पर भी बीमारी को गंभीर बताकर लाखों का वारा-न्यारा करने वाले प्रदेश के 99 प्रतिशत निजी अस्पतालों ने कोरोना वायरस के संक्रमण काल में हाथ खड़े कर दिए हैं। अब तक उपचार के नाम पर लंबी कमाई करने वाले निजी अस्पताल बेहद आपातकाल में सन्नाटे में चले गए हैं। आयुष्मान भारत योजना में प्रतिपूर्ति की व्यवस्था के बावजूद सिर्फ एक को छोड़कर कोई भी नर्सिंग होम कोरोना उपचार को आगे नहीं आया। संसाधनों में कमी के बहाने सभी इस जिम्मेदारी से कन्नी काट रहे हैैं।

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महामारी के दौर में भी स्वार्थ का पलड़ा भारी है। प्रदेश में करीब 15 हजार से अधिक प्राइवेट अस्पताल व नर्सिंग होम हैं, लेकिन वे कोरोना मरीजों के इलाज के लिए सहमत नहीं। चिंताजनक बात है कि आयुष्मान भारत योजना के तहत पंजीकृत निजी अस्पताल भी रोगियों के इलाज के लिए राजी नहीं। वे सुविधाओं का रोना रोकर कोरोना इलाज से कन्नी काट रहे हैं। सिर्फ आगरा के नयति हास्पिटल ने ही आगे बढ़कर यह जिम्मेदारी ली है और वहां कोविड-19 के मरीजों का इलाज किया जा रहा है।

कोरोना महामारी को देखते हुए सरकारी अस्पताल के साथ-साथ प्राइवेट अस्पतालों को अधिगृहीत कर वहां मुफ्त इलाज की व्यवस्था की गई है। प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद ने बताया कि सिर्फ छोटे निजी अस्पताल जो सिर्फ कोरोना का इलाज करने के इच्छुक हैं, उन्हेंं छूट दी जा रही है। बड़े निजी अस्पताल व प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में ट्राएज एरिया, आइसोलेशन वार्ड और एग्जिट व इंट्री के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार की व्यवस्था करने पर ही उन्हेंं इलाज करने की छूट दी गई है। आयुष्मान योजना के तहत मरीज के भर्ती होने पर जनरल आइसोलेशन वार्ड में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 1800 रुपये से लेकर आइसीयू में वेंटिलेटर पर भर्ती होने पर 4500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के हिसाब से व्यय प्रतिपूर्ति की व्यवस्था है। इसके बावजूद अभी तक प्राइवेट अस्पताल इलाज के लिए आगे नहीं आ रहे।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के यूपी स्टेट ब्रांच के राज्य सचिव डॉ. जयंत शर्मा कहते हैं कि निजी अस्पतालों में पर्याप्त संसाधन और स्टाफ नहीं है। अभी सामान्य इलाज में अगर कोई मरीज कोरोना पाजिटिव निकल आता है तो पूरे स्टाफ की कोरोना जांच खुद अस्पताल प्रशासन कराता है। बीते दिनों अलीगढ़ में एक प्राइवेट अस्पताल में यही हुआ। वहां सरकारी जांच से इन्कार कर दिया गया। ऐसे में जितनी कमाई नहीं हुई उतना कोरोना जांच में चला गया। फिर एक रोगी के इलाज में कम से कम एक लाख रुपये तक का खर्चा आ रहा है। ऐसे में इतना महंगा इलाज करवाने कौन निजी अस्पताल आएगा।

दो निजी मेडिकल कॉलेज इलाज को तैयार

यूपी में दो निजी मेडिकल कॉलेज कोरोना मरीजों के इलाज के लिए प्राइवेट वार्ड खोलने के इच्छुक हैं। इन्होंने चिकित्सा शिक्षा विभाग को आवेदन भेजा है। इसमें मेरठ के सुभारती मेडिकल कॉलेज और ग्रेटर नोएडा का शारदा हास्पिटल शामिल है। यहां कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए सुविधा दी जाएगी।


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