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World Population Day 2020: कोरोना काल की बड़ी चिंता...बढ़े न जनसंख्या, अब फैलेगी जागरुकता

विश्व जनसंख्या दिवस की थीम महिला और युवतियों के स्वास्थ्य की सुरक्षा अनचाहे गर्भ से मुक्ति अनवांटेड प्रेग्नेंसी में देश सबसे आगे।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 11 Jul 2020 12:44 PM (IST)Updated: Sat, 11 Jul 2020 12:44 PM (IST)
World Population Day 2020: कोरोना काल की बड़ी चिंता...बढ़े न जनसंख्या, अब फैलेगी जागरुकता
World Population Day 2020: कोरोना काल की बड़ी चिंता...बढ़े न जनसंख्या, अब फैलेगी जागरुकता

लखनऊ, जेएनएन। मोदी सरकार-2.0 की कमान संभालने के बाद इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गणतंत्र दिवस पर भाषण काफी चर्चा में रहा। पाकिस्तान के खिलाफ सख्ती, चीन कौ चुनौती, स्वच्छ भारत नहीं बल्कि लंबे वक्त बाद किसी प्रधानमंत्री ने देश की सबसे बड़ी समस्या को लाल किले की प्रचारी से उठाया...। उस समस्या की दुगती रग पर हाथ रखा, जिसको लेकर कोई भी राजनीतिक दल बात तक करने से कतराता है। जी, वो लगातार बढ़ती आबादी है जिसका पेट भरने, रहने के इंतजाम करने में ही आजादी के इतने सालों बाद तक सरकारों की सारी ताकत खर्च हो रही है। इस बीच आए कोरोना काल ने चिंताएं और बढ़ा दी हैं।

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स्वास्थ्य संगठनों को आबादी की स्थिति और बिगड़ने की आशंका सता रही है। माना जा रहा है कि इन तीन से चार महीनों में मौजूदा प्रदेश की प्रजनन दर की 2.7 से बढ़कर तीन को पार कर सकती है। इसके पीछे बड़ा कारण लॉकडाउन और लगातार पाबंदियों के बीच बदलती लोगों की दिनचर्या, रहन-सहन के बदलते तरीकों को बताया जा रहा है। इसी के चलते विश्व जनसंख्या दिवस पर थीम भी कोरोना काल में उपजे हालात से मिलती-जुलती रखी गई है। महिलाओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा और अनचाहे गर्भ से मुक्ति...। गांव लौटे प्रवासियों से लेकर आमजन को जागरूक करने की मुहिम नए सिरे से छेड़ी गई है।

हालांकि, जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, बढ़़ती आबादी के भी हैं। मुसीबत के साथ-साथ यह अवसर का बड़ा कारण भी मानी गई है। कई बड़े परिवारों ने यह साबित भी किया है। फिर भी इधर कुछ वर्षों की स्थिति पर नजर डालें तो कुछ लोगों ने आबादी की मुश्किल को खुद व खुद महसूस किया है। न केवल जागरूक हुए हैं, बल्कि नियंत्रण के उपायों को अपनाने में झिझक भी तोड़ रहे हैं। गर्भ निरोधक उपाय अपना रहे हैं। आंकड़े बताते हैं, अस्पतालों में गर्भवती महिलाएं पहुंचने की संख्या घटी है। वहीं प्रजनन दर में भी गिरावट दर्ज की गई है। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य परिवार कल्याण के संयुक्त निदेशक डॉ. वीरेंद्र के मुताबिक, दंपती में जागरूकता बढ़ी है। इसी का असर है कि 2005-06 में जहां राज्य की सकल प्रजनन दर 3.3 फीसद थी, वहीं 2015-16 से घटकर 2.7 रह गई है। उन्होंने कहा कि दो बच्चों के बीच कम से कम तीन साल का अंतर अवश्य रखें।

चुटकुलों से निकला आबादी बढ़ने का बड़ा मुद्दा

लॉकडाउन के दौरान सोशल मीडिया पर चुटकुलों की बाढ़ आई हुई थी। कामकाज से लेकर खाने-पीने तक पर जोक बने। इसी ठिठोली के बीच मुद्दा भी गर्म निकला, जिसके बाद स्वास्थ्य संगठनों के भी कान खड़े हो गए। इशारों-इशारों में चर्चा छिड़ी कि लॉकडाउन आबादी बढ़ाने का बड़ा कारण बनेगा। फिर क्या था, स्वास्थ्य विभाग सक्रिय हो गए। घर लौट रहे प्रवासियों से लेकर क्वारंटीन सेंटर तक, गांव में घर-घर जाकर लोगों को जागरूक किया जाने लगा। अनचाहे गर्भ से बचने के लिए तरीके बताए जाने लगे। जानकार बताते हैं, इसके पीछे बड़ा कारण था कि इस साल होने वाली जनगणना जिसमें पहले प्रजनन की स्थिति नियंत्रित रखी जा सके। यही कारण है, इस बार जनसंख्या दिवस की थीम भी अनचाहे गर्भ से जोड़कर रख दी गई।

...मगर सुखद संकेत

डॉ. अजय घई के मुताबिक प्रेग्नेंसी की प्लानिंग को लेकर सजगता आ रही है। गर्भ निरोधक उपायों के बढ़ते इस्तेमाल की भी बड़ी भूमिका है। लखनऊ में 2017-18 में सरकारी अस्पतालों में 55 हजार 457 गर्भवती इलाज के लिए आईं। इनके प्रसव कराए गए। वहीं वर्ष 2018-19 में 53 हजार, 885 महिलाओं का रिकॉर्ड रहा। ऐसे ही वर्ष 2019-20 में 50 हजार 377 गर्भवती अस्पताल में डिलीवरी के लिए आईं।

पुरुष नहीं उठा रहे जिम्मेदारी

राज्य में 18 लाख 752 लोगों ने सरकारी सेवा से गर्भ निरोधक उपाय अपनाए हैं। इसमें कॉपर-टी 4529 व प्रसव बाद कॉपर-टी 11197 प्रसूताओं को लगाया गया। इसके अलावा गर्भ निरोधक इंजेक्शन अन्तरा 1441 लगाए गए। माला-एन 41515, गर्भ निरोधक गोली छाया 8372 महिलाओं ने खाई है। इसके अलावा पुरुष व महिला नसबंदी की संख्या बढ़ी है, हालांकि पुरुष इसमें पीछे हैं।


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