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कहीं कांग्रेस के लिए उलटा न पड़ जाए उत्तर प्रदेश में अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला

सपा-बसपा गठबंधन में जगह न मिलने से कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि वह यूपी में कैसे अपनी नैया को पार लगाएगी। फिलहाल पार्टी के पास कुछ ज्‍यादा विकल्‍प बाकी नहीं बचे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 13 Jan 2019 02:01 PM (IST)Updated: Sun, 13 Jan 2019 02:26 PM (IST)
कहीं कांग्रेस के लिए उलटा न पड़ जाए उत्तर प्रदेश में अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला
कहीं कांग्रेस के लिए उलटा न पड़ जाए उत्तर प्रदेश में अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर देश में सियासी सरगर्मियां लगातार तेज हो रही हैं। वहीं देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ आने के बाद सभी की नजरें कांग्रेस पर आकर टिक गई हैं। कांग्रेस ने अब सूबे में अकेले अपने दम पर चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा कर दी है। लखनऊ से इसकी घोषणा गुलाम नबी आजाद और राजबब्‍बर की तरफ से की गई है। कांग्रेस की तरफ से ये फैसला लेने के पीछे एक बड़ी वजह ये भी रही है कि सपा और बसपा के साथ चले जाने के बाद सूबे में गठबंधन के लिए दूसरी बड़ी पार्टियां नहीं बची हैं। वहीं दूसरी तरफ सपा-बसपा के साथ आने को कांग्रेस कहीं न कहीं अपना अपमान मान रही है। यही वजह है कि सपा-बसपा गठबंधन के एलान के बाद कांग्रेस ने यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनावी तैयारी शुरू कर दी है। यह यह तो वक्‍त ही बताएगा कि कांग्रेस का यह फैसला सही साबित होगा या गलत। 

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अकेले मैदान में उतरेगी कांग्रेस
इस गठबंधन के चलते फिलहाल कांग्रेस लोकसभा चुनाव में अकेले मैदान में उतरना सही मान रही है। इसकी दो बड़ी वजह हैं। सबसे पहली वजह तो हालिया तीन राज्‍यों में उसको मिली जीत भी है जो उसके लिए संजीवनी बनकर सामने आई है। दूसरी बड़ी वजह ये भी है कि सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस के लिए सूबे की महज दो छोड़कर यह जता दिया है कि वह कांग्रेस को यहां कुछ नहीं मानती है। यही वजह है कि इस गठबंधन के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस घोषणा-पत्र समिति ‘जन आवाज’ के अध्यक्ष पी. चिदंबरम यह कहने से नहीं चूके थे कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अंडर स्टीमेट नहीं किया जा सकता है। उनके मुता‍बिक प्रदेश में आज भी पार्टी बहुत मजबूत है और लोकसभा का चुनाव अकेले लड़ने में कांग्रेस समक्ष है। आपको यहां पर ये बताना जरूरी होगा कि 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने दम पर सूबे की 21 सीटें जीती थीं।

छोटे दलों पर निगाह

हालांकि राजबब्‍बर और आजाद द्वारा अकेले मैदान में जाने की घोषणा से पहले माना जा रहा था कि पार्टी सूबे में छोटे दलों के साथ गठबंधन कर सकती है। इसकी एक वजह चिदंबरम का हाल ही में दिया गया वह बयान भी था जिसमें उन्‍होंने कहा था कि देश में होने जा रहा लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आने लगेगा, राजनीतिक गठबंधन का और नया स्वरूप उभरकर सामने आएगा। यूपी में गठबंधन को लेकर जो छोटे दल चर्चा में थे उनमें रालोद भी शामिल था। 

शिवपाल यादव भी आ सकते हैं साथ 
भले ही कांग्रेस ने सूबे में अकेले ही चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा कर दी हो लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भावी गठबंधन को लेकर कहीं न कहीं राजनीति की आग अभी पूरी तरह से ठंडी नहीं पड़ी है। ऐसा इसलिए भी है कि आने वाला चुनाव सूबे में सपा से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले शिवपाल यादव का भी भविष्‍य तय कर देगा। आपको बता दें कि सपा से गठबंधन के चलते जहां मायावती ने पहले ही शिवपाल सिंह यादव से दूरी बना ली है वहीं शिवपाल भी कह चुके हैं कि वह भाजपा के साथ नहीं जाएंगे। ऐसे में शिवपाल अपने राजनीतिक वजूद को बचाने के लिए कांग्रेस के साथ जा सकते हैं। लेकिन उनको कांग्रेस से या कांग्रेस से उनको कितना फायदा होगा ये कहना काफी मुश्किल है। यूपी के राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो यदि एक से अधिक गठबंधन होने की सूरत में भाजपा इसका फायदा ले जा सकती है। दरअसल, सपा-बसपा गठबंधन और दूसरी तरफ कांग्रेस का संभावित गठबंधन भाजपा से अधिक एक दूसरे के वोट काटने में रह सकते हैं, जिसका फायदा भाजपा को जा सकता है। यहां पर बता दें कि पूर्व में समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस गठबंधन कर चुकी है, लेकिन इसका कोई फायदा पार्टी को नहीं मिला था।

सपा-बसपा गठबंधन से हैरान नहीं कांग्रेस
हालांकि सपा-बसपा गठबंधन को लेकर पार्टी नेताओं का मानना है कि इस गठबंधन में कांग्रेस को शामिल न करना पार्टी के लिए कोई आश्चर्यजनक फैसला नहीं है। पार्टी को लंबे समय से इसका अंदेशा था और इसीलिए पार्टी अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थी। करीब साल भर पहले राहुल गांधी के पार्टी की बागडोर संभालने के बाद ही यह तय हो गया था कि पार्टी नेता गठबंधन को लेकर किसी तरह की बयानबाजी से दूर रहेंगे। उसी समय पार्टी के ढाई दर्जन से अधिक कद्दावर नेताओं को लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी करने के लिए कह दिया गया था।

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