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जातीय संतुलन के साथ बदलाव की राह पर कांग्रेस...'उपयोगी' कार्यकर्ताओं को संगठन में मिली जिम्मेदारी

उत्तर प्रदेश की टीम में खांटी कांग्रेसियों का मोह छोड़ते हुए नए या दूसरे दलों से आए उपयोगी कार्यकर्ताओं को जगह दी गई है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Tue, 08 Oct 2019 05:10 PM (IST)Updated: Wed, 09 Oct 2019 08:27 AM (IST)
जातीय संतुलन के साथ बदलाव की राह पर कांग्रेस...'उपयोगी' कार्यकर्ताओं को संगठन में मिली जिम्मेदारी
जातीय संतुलन के साथ बदलाव की राह पर कांग्रेस...'उपयोगी' कार्यकर्ताओं को संगठन में मिली जिम्मेदारी

लखनऊ [जितेंद्र शर्मा]। लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद से ही संगठन को लेकर चिंतन-मनन में डूबी कांग्रेस ने आखिरकार यूपी में पार्टी का चेहरा ही बदल दिया। हाईप्रोफाइल प्रदेशाध्यक्ष राज बब्बर के विकल्प के तौर पर जमीनी कार्यकर्ता अजय कुमार लल्लू पर भरोसा जताया है। साथ ही प्रदेश की टीम में खांटी कांग्रेसियों का मोह छोड़ते हुए नए या दूसरे दलों से आए 'उपयोगी' कार्यकर्ताओं को जगह दी गई है। पिछड़ों को भरपूर प्रेम के साथ ही जातीय संतुलन के साथ कांग्रेस ने उम्मीदों की डगर पर कदम रखा है।

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उत्तर प्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव पर नजर जमाए कांग्रेस ने लंबे समय तक चले विचार-मंथन के बाद 'टीम यूपी' तैयार की है। प्रदेशाध्यक्ष की दौड़ में पूर्व सांसद प्रमोद तिवारी, पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह सहित कुछ और नाम भी चल रहे थे, लेकिन कुछ समय से राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा के भरोसेमंदों में शामिल कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू सबसे अधिक चर्चा में थे। पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी आखिरकार लल्लू पर ही भरोसा जताया। लल्लू पिछड़ी जाति से हैं। उप्र कांग्रेस कमेटी में जातीय समावेशी फार्मूले को खास तौर पर साधा गया है। कमेटी में सवर्ण, पिछड़े, दलित और मुस्लिमों की संतुलित भागीदारी रखी गई है। 12 महासचिवों की टीम इसकी साफ तस्वीर दिखाती है।

खास यह कि अब तक सिर्फ निष्ठावान कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारियां सौंपती रही कांग्रेस ने इस बार सोच बदली है। युवाओं के साथ-साथ पार्टी ने उन कार्यकर्ताओं को संगठन का जिम्मा थमाया है, जो दूसरे दलों से आए हैं। चार उपाध्यक्षों में वीरेंद्र चौधरी बसपा से आए तो दीपक कुमार सपा में मंत्री रहे हैं। महासचिवों में राकेश सचान सपा छोड़कर आए हैं तो सपा से आईं कैसर जहां अंसारी व शाहनवाज आलम को सचिव बनाया गया है। सलाहकार परिषद में स्थान पाने वालों में नसीमुद्दीन सिद्दीकी बसपा में मंत्री रहे हैं। वहीं, वर्किंग ग्रुप में शामिल किए गए राजकिशोर सिंह भी पार्टी में नए हैं। कांग्रेसियों में भी कई ऐसे चेहरे हैं, जिनमें से तमाम से तो संगठन के वर्तमान पदाधिकारी ही अनजान हैं।

सलाहकार की भूमिका में होंगे दिग्गज

संगठन में काम करने का जिम्मा नए लोगों को दिया गया है और पुराने-दिग्गज कांग्रेसियों को सलाहकार की भूमिका में रख दिया गया है। पार्टी ने महासचिव की सलाहकार परिषद बनाई है, जिसमें पूर्व मंत्री सलमान खुर्शीद, आरपीएन सिंह, सांसद पीएल पुनिया, पूर्व सांसद प्रमोद तिवारी, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष निर्मल खत्री और प्रदीप माथुर जैसे नेताओं को रखा गया है। इसी तरह से रणनीति और योजना के लिए कार्य समूह बनाया है, जिसमें पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद, आरके चौधरी, राजीव शुक्ला, इमरान मसूद और प्रदीप जैन आदित्य सरीखे नेताओं को शामिल किया गया है।

दस गुना छोटी हो गई नई कमेटी

पिछली कांग्रेस कमेटी लगभग 470 पदाधिकारियों की थी। प्रदेश प्रभारी प्रियंका वाड्रा पहले ही कह चुकी थीं कि अब कमेटी छोटी होगी और युवाओं की भूमिका बढ़ेगी। उसी का पालन करते हुए नई कमेटी को लगभग 10 गुना छोटा करते हुए 41 सदस्यों का बनाया गया है।

संघर्ष से प्रियंका की पसंद बने कुशीनगर के लल्लू

कुशीनगर के सेवरही गांव निवासी अजय कुमार लल्लू मद्धेशिया-वैश्य हैं। स्नातकोत्तर तक शिक्षित लल्लू अविवाहित हैं और 2012 में कांग्रेस में शामिल हुए। उनकी पहचान जमीनी और मेहनती राजनेता की थी, इसलिए कांग्रेस ने उन्हें तमकुहीराज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव में उतारा। 2017 में भी कांग्रेस के टिकट से जीते और मई 2017 में कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता बनाए गए। 1979 में जन्मे लल्लू छात्रसंघ की राजनीति के बाद एकता परिषद के साथ जुड़कर जन आंदोलनों में भी सक्रिय रहे। आंदोलन की उसी लकीर पर वह कांग्रेस में आने के बाद भी चले। उन्नाव कांड हो, सोनभद्र या शाहजहांपुर प्रकरण, वहां आंदोलन खड़ा कर वह राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा की नजरों में चढ़े। इसी का इनाम देते हुए प्रियंका ने उन्हें पूर्वी उत्तरप्रदेश का संगठन प्रभारी भी बनाया। वहीं, सूबे में इस वक्त पिछड़ों की राजनीति को लेकर सभी दलों में होड़ है। भाजपा और मुख्य विपक्षी दल सपा के प्रदेशाध्यक्ष पिछड़ी जाति से हैं। कांग्रेस ने भी यही दांव चला और लल्लू इस कारण से भी अन्य प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोडऩे में कामयाब रहे।


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