यूपी चुनाव 2022: कामयाबी के लिए इस बार नए नुस्खे आजमा रही कांग्रेस, मतदाताओं को लुभाने के लिए लगाए ये दांव
UP Vidhan Sabha Election 2022 राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रभारी के तौर पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस की बागडोर थामी और उसके बाद फिर नए प्रयोगों का सिलसिला चला। इसी के साथ प्रदेश से लेकर गांव और बूथ स्तर तक सांगठनिक ढांचा खड़ा करने की कवायद अंजाम दी गई।
लखनऊ [राजीव दीक्षित]। UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश की सत्ता से तीन दशक से ज्यादा समय से दूर रही कांग्रेस प्रयोगों के सहारे अपने सुनहरे अतीत के गलियारे में दाखिल होने के लिए प्रयासरत है। पिछले विधानसभा चुनाव से जारी यह प्रयोग प्रदेश कांग्रेस संगठन में फेरबदल के स्तर पर हुए और मतदाताओं को लुभाने के लिए पार्टी की गतिविधियों में भी झलके।
राजनीति को जाति-धर्म की बेड़ियों से मुक्ति दिलाने के लिए इस बार चुनावी संग्राम में 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' का युद्धघोष करने वाली कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में '27 साल यूपी बेहाल' का नारा दिया था। यह नारा चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की देन था जो पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस और सपा के गठबंधन के सूत्रधार भी थे। इस नारे के साथ अपनी चुनावी जमीन पुख्ता करने के लिए कांग्रेस ने तब यात्राओं की माला जपी थी। इनमें मुख्य रूप से देवरिया से दिल्ली किसान यात्रा प्रमुख थी जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अगुआई में पार्टी कार्यकर्ताओं ने 3500 किलोमीटर की दूरी नापी। दलितों को साधने के लिए भीम ज्योति यात्रा निकाली गई तो शिक्षा, सम्मान और स्वाभिमान यात्रा भी आयोजित हुई। एक नया प्रयोग करते हुए प्रदेश के चार दर्जन जिलों में खाट सभाओं का भी आयोजन हुआ था। संपर्क संवाद और रोड शो जैसी गतिविधियां भी जारी रहीं।
कांग्रेस ने पिछले चुनाव में प्रयोग सिर्फ गतिविधियों के स्तर पर ही नहीं किए। ब्राह्मणों को रिझाने के लिए दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का चेहरा भी घोषित किया। संगठन के स्तर पर भी नए प्रयोग हुए। निर्मल खत्री को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर करिश्मे की आस में राज बब्बर को कमान सौंपी गई। मधुसूदन मिस्त्री को चलता कर गुलाम नबी आजाद को प्रदेश प्रभारी बनाया गया। इस सबके बावजूद कांग्रेस दहाई से नीचे आकर सात सीटों पर सिमट गई।
फरवरी 2019 में पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रभारी के तौर पर प्रदेश कांग्रेस की बागडोर थामी और उसके बाद फिर नए प्रयोगों का सिलसिला चला। तकरीबन साढ़े तीन साल के कार्यकाल में अपनी टीम न बना सके राज बब्बर को विदा कर पार्टी के विधान मंडल दल नेता अजय कुमार लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इसी के साथ संगठन सृजन का दौर शुरू हुआ और प्रदेश से लेकर गांव और बूथ स्तर तक सांगठनिक ढांचा खड़ा करने की कवायद अंजाम दी गई।
भारतीय राजनीति के इतिहास में अभिनव प्रयोग करते हुए कांग्रेस ने अठारहवीं विधान सभा चुनाव में 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने की घोषणा की और 125 प्रत्याशियों की पहली सूची में अपने वादे को निभाया भी। इससे भी आगे जाकर महिलाओं के लिए 'शक्ति विधान' नामक अलग घोषणा पत्र जारी किया। युवा महिलाओं में पैठ बनाने के लिए मेरठ, झांसी, लखनऊ, बरेली और मुरादाबाद में 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' मैराथन आयोजित की।
प्रदेश की आधी आबादी से रूबरू होने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा ने महिलाओं से संवाद किया। महिलाओं के साथ युवाओं और किसानों से की गईं अपनी प्रतिज्ञाओं को जनता तक पहुंचाने के लिए प्रतिज्ञा यात्राएं निकालीं। देखना होगा कि चुनावी नुस्खों की यह आजमाइश सियासत के लिए सूबे में शुरू हुई मैराथन में कांग्रेस को तमगा दिलाती है या नहीं।