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आड़े आया मौसम, मुख्यमंत्री नहीं देख सके प्रधानमंत्री मोदी के बचपन पर अाधारित फिल्म

मुख्यमंत्री नमामि गंगे परियोजना के शिलान्यास एवं लोकार्पण कार्यक्रम में कानपुर गए थे। बारिश की वजह से एयरपोर्ट के रनवे पर पानी आ जाने के कारण उनका जहाज समय से उड़ नहीं सका।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Mon, 13 Aug 2018 04:34 PM (IST)Updated: Mon, 13 Aug 2018 10:55 PM (IST)
आड़े आया मौसम, मुख्यमंत्री नहीं देख सके प्रधानमंत्री मोदी के बचपन पर अाधारित फिल्म
आड़े आया मौसम, मुख्यमंत्री नहीं देख सके प्रधानमंत्री मोदी के बचपन पर अाधारित फिल्म

लखनऊ (जेएनएन)।  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सोमवार की शाम लोकभवन में राज्यपाल राम नाईक के साथ 'चलो जीते हैं नाम से बनी फिल्म देखने वाले थे, पर मौसम आड़े आ गया। फिल्म का प्रमुख पात्र नरू नाम का एक गरीब बच्चा है, पर माना यह जा रहा है कि फिल्म प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बचपन पर आधारित है।
दरअसल, मुख्यमंत्री 'नमामि गंगे परियोजना के शिलान्यास एवं लोकार्पण कार्यक्रम में कानपुर गए थे। वहां भारी बारिश की वजह से एयरपोर्ट के रनवे पर पानी आ जाने के कारण उनका जहाज समय से उड़ नहीं सका। योगी अगर यह फिल्म देखते तो बतौर मुख्यमंत्री उनकी यह पहली और नाथ पंथ में दीक्षित होने के बाद दूसरी फिल्म होती। लोकभवन भी पहली बार ऐसे किसी आयोजन का गवाह बनता। पिछले साल भी इसी तरह मुख्यमंत्री का फिल्म देखने का कार्यक्रम बना था, पर अंतिम समय में स्थगित हो गया। मुख्यमंत्री के नहीं आने पर राज्यपाल ने फिल्म देखी। उनके साथ सरकार के मंत्री, वरिष्ठ अधिकारी और गणमान्य लोग थे।

नरू नाम का गरीब बच्चा है नायक
फिल्म नरू नामक एक ऐसे बच्चे पर केंद्रित है जो जीवन के अर्थ को समझते हुए दूसरों के लिए जीवन जीने को अपना मकसद बनाता है। गांव की पाठशाला में उसकी कक्षा में पढऩे वाले साथी द्वारा गरीबी के कारण पढ़ाई छोडऩा नरू को द्रवित कर जाता है। नरू उसकी मदद करने के प्रयास शुरू करता है। इसमें उसे कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है, पर अंत में वह अपने सहपाठी के लिए स्कूल ड्रेस, बैग और किताबों की व्यवस्था करके वापस पढऩे के लिए स्कूल ले जाता है।

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दूसरों के लिए जीने की थीम पर बनी यह फिल्म अपने उद्देश्य को पूरा करती है और दर्शक को हर हाल में दूसरों के लिए जीने का संदेश देती है। मंगेश हडवाले द्वारा निर्देशित करीब 35 मिनट की यह फिल्म बच्चों में खासी लोकप्रिय हो रही है। वाराणसी के कुछ स्कूलों और उत्तराखंड में भी इसे दिखाया जा चुका है। आने वाले समय में इसे स्कूलों में भी दिखाने की योजना है। वर्ष 2019 के आम चुनावों के पहले मोदी के जीवन पर आधारित कुछ और फिल्में भी प्रदर्शन के लिए आ सकती हैं।

मंगेश हडवाले की निर्देशित करीब 35 मिनट की यह फिल्म बच्चों में खासी लोकप्रिय हो रही है। मेरठ की कार्यसमिति में भी योगी आदित्यनाथ ने यह फिल्म देखी थी। वाराणसी के कुछ स्कूलों व उत्तराखंड में भी इसे दिखाया जा चुका है। आने वाले समय में इसे स्कूलों में भी दिखाने की योजना है। वर्ष 2019 के आम चुनावों के पहले पीएम नरेंद्र मोदी के जीवन पर आधारित कुछ और फिल्में भी प्रदर्शन के लिए आ सकती हैं।

पांच वर्ष पहले योगी आदित्यनाथ ने देखी थी फिल्म जाग मछेंदर गोरख आया

योगी आदित्यनाथ ने इससे पहले 13 जनवरी 2013 को गोरखपुर के यूनाइटेड टॉकीज में 'जाग मछेंदर गोरख आया' फिल्म देखी थी। इस फिल्म को अवधेश सिंह ने निर्देशित किया था। इस फिल्म की पूरी पटकथा योगी आदित्यनाथ के सामने से भी गुजरी थी।

मछेंदर नाथ संप्रदाय के संस्थापक गुरु गोरक्षनाथ के गुरु थे। माना जाता है कि मछेंदर नाथ जब मोह-माया में लिप्त हो गये थे, तब उनके शिष्य गोरखनाथ ने उनको जगाने का काम किया। बाबा गोरखनाथ के गुरु पर बनी फीचर फिल्म 'जाग मछंदर गोरख आया' की थीम बनाने वाले योगी आदित्यनाथ ने खुद ही फिल्म की कहानी बुनी थी। बाबा गोरखनाथ के गुरु पर बनी फीचर फिल्म 'जाग मछंदर गोरख आया' की थीम बनाने वाले योगी आदित्यनाथ ने खुद ही फिल्म की कहानी बुनी है। 'जाग मछंदर गोरख आया' फीचर फिल्म गोरखपुर में नाथ संप्रदाय के गोरखनाथ मंदिर के आदि संस्थापक बाबा गोरखनाथ के गुरु मत्सत्येंद्रनाथ की जिंदगी पर आधारित है।

नाथ संप्रदाय बाबा गोरखनाथ को भगवान शिव का अवतार मानता है। फिल्म निदेशक अवधेश सिंह के मुताबिक,गोरखनाथ मठ के बड़े महाराज यानी महंत अवैधनाथ चाहते थे कि गुरु मत्सत्येंद्रनाथ पर एक फिल्म बनाई जाए। महंत अवैधनाथ की उम्र बढऩे लगी तो उन्हें अपना सपना पूरा होने की उम्मीद टूटने लगी। इसी दौर में निदेशक अवधेश सिंह ने फिल्म बनाने की ठानी और 'जाग मछंदर गोरख आया' तय किया और नाथ फिल्म प्रोडक्शन कंपनी के जरिए टाइटल को रजिस्टर्ड करा लिया। समस्या थी कि गुरु मत्सत्येंद्रनाथ के बारे में जानकारी हासिल करना। उस समय अवैधनाथ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ से मिलना ही एकमात्र रास्ता सूझा।

ढाई घंटे लंबी फिल्म की कहानी लिखने से नहीं चूके योगी आदित्यनाथ

किस्सा 2012 का है। अवधेश सिंह की चिंता सुनकर योगी आदित्यनाथ ने कुछ क्षण सोचने के बाद बोला कि यह तो बेहद आसान है। खुद कहानी लिखने की ठानी। अवधेश सिंह को दो दिन बाद बुुलाकर योगी आदित्यनाथ ने फिल्म की थीम बताई, जोकि सभी को पसंद आई।

इसके बाद अगले पंद्रह दिन में योगी आदित्यनाथ ने फिल्म की कहानी लिखकर अवधेश सिंह के सुपुर्द कर दी, जिन्होंने फिल्म की थीम के हिसाब से लोकेशन चुनकर शीघ्र फिल्म का निर्माण कर दिया। 18 जनवरी 2013 को फिल्म रिलीज हुई और गोरखपुर के यूनाइटेड सिनेमघर में योगी आदित्यनाथ ने फिल्म देखकर कहाकि ऐसी ही उम्मीद थी। शानदार फिल्म बनी है। बीमारी के कारण महंत अवैधनाथ फिल्म देखने नहीं पहुंच पाए थे, लेकिन सपना पूरा होने की जानकारी पर उन्हें अपार खुशी हुई थी। 


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