वरिष्ठ बाल साहित्यकार शंकर सुल्तानपुरी का निधन, कई दिनों से थे बीमार
बाल साहित्य की लगभग 500 से ज्यादा किताबें लिखने वाले शंकर हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में सिद्धहस्त माने जाते थे।
लखनऊ, जेएनएन। बाल साहित्यकार के रूप में ख्याति प्राप्त शंकर सुल्तानपुरी (81) की लेखनी अन्य विधाओं में भी खूब चली। शब्दों में संवेदनाओं के स्वर पिरोने वाले वरिष्ठ बाल साहित्यकार शंकर सुल्तानपुरी हमारे बीच नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद सोमवार को लोहिया अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। बैकुंठ धाम में उनका अंतिम संस्कार हुआ।
सुल्तानपुर के मूल निवासी शंकर सुल्तानपुरी विगत कई वर्षों से लखनऊ में ही रहकर साहित्य सर्जन कर रहे थे। बाल साहित्य की लगभग 500 से ज्यादा किताबें लिखने वाले शंकर हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में सिद्धहस्त माने जाते थे।
सृजन की शुरुआत
1952 में बाल सखा में प्रथम रचना प्रकाशित हुई। 1965-66 में मातृवाणी पत्रिका का संपादन किया। आकाशवाणी (1966 से 300) से अधिक कहानी और नाटकों का प्रसारण। 1976 से दूरदर्शन से कहानियां, नाटक प्रदर्शित।
रचना संसार
- उपन्यास : हमें रोटी चाहिए, सिसकती जिंदगी, कसब, बेबसी के आंसू, प्यास जो बुझ न सकी, धोखाधड़ी, जासूसी संसार, पर्दे के पीछे, अधूरे स्वप्न, लहू का रंग एक है और प्यार की मंजिल आदि।
- शोधपूर्ण साहित्यिक कृतियां : संस्मरणों के बीच निराला, क्रांतिकारी सुभाष, लोकमान्य तिलक, इंदिरा गांधी और क्रांतिकारी यशपाल आदि।
- बाल साहित्य : भारत के अमर बच्चे, तिरंगे की कहानी, क्रांतिकारियों की कहानियां, फलों की कहानी, प्रकृति से सीखें और नटखट बच्चों की पार्टी आदि।
पुरस्कार
1982 में श्रेष्ठ बाल साहित्य लेखन के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित, 1984 'सूर' नामित पुरस्कार, 1995 में डॉ. रामकुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान, 2009 में देवपुत्र गौरव सम्मान (इंदौर) आदि।
वे कालजयी रचनाकार
साहित्यकार डॉ. अमिता दुबे ने कहा कि उनकी ख्याति बाल साहित्यकार के रूप में अधिक है, लेकिन उन्होंने साहित्य की अधिकांश विधाओं में लेखन किया। उनकी संवेदना सामाजिक सरोकारों से गहराई से जुड़ी रही इसलिए वे कालजयी रचनाकार हैं।
बच्चों के लिए उनका योगदान अतुलनीय
बाल साहित्यकार संजीव जायसवाल कहते हैं, बच्चों के लिए तो उनका योगदान अतुलनीय था। समाज को उन्होंने जितना दिया प्रतिफल में उन्हें उतना नहीं मिला। उनकी स्मृति में एक पुस्तकालय बनना चाहिए। उनके साहित्य को सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है, यही सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।