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World Earth Day: केमिकल फर्टिलाइजर बिगाड़ रहे धरती की सेहत

रासायनिक फर्टिलाइजर मिट्टी खराब हो रही है पृथ्वी दिवस पर रिपोर्ट।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Sun, 21 Apr 2019 07:40 PM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 08:16 AM (IST)
World Earth Day: केमिकल फर्टिलाइजर बिगाड़ रहे धरती की सेहत
World Earth Day: केमिकल फर्टिलाइजर बिगाड़ रहे धरती की सेहत

लखनऊ, जितेंद्र उपाध्याय। एक ओर जहां विकास के नाम पर पेड़ों की अधाधुंध कटान जारी है, वहीं विकास के नाम पर कृषि योग्य भूमि भी कम होने लगी है। अधिक उत्पादन के चक्कर में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग ने रही-सही कसर पूरी कर दी है। धरती मां की कोख को बंजर बनाने की ओर बढ़ते कदम हमें विकास से कहीं ज्यादा विनाश की ओर ले जा रहे हैं। अगर समय रहते इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो काफी देर हो जाएगी।

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कृषि विशेषज्ञ डॉ.सीपी श्रीवास्तव ने बताया कि सोइल (सोल ऑफ इनफिनाइट लाइफ) अनंत जीवन की आत्मा है। इसके नष्ट होने पर जीवन नष्ट हो जाएगा। सरकारी व गैर सरकारी सर्वेक्षणों के मुताबिक कुल भूमि का मात्र पांच फीसद हिस्सा ही खेती योग्य बचा है और उसमें से दो तिहाई भूमि प्रदूषित हो गई है। वैज्ञानिक तर्क है कि इसके लिए रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक और खरपतवार नाशक ज्यादा जिम्मेदार हैं। 

मिट्टी के तीन स्वरूप

भौतिक स्वरूप-एक सेमी मिट्टी बनने में 500 वर्ष लग जाते हैं लेकिन, इसे नष्ट करने में दो से ढाई घंटे की बारिश ही काफी होती है। इसको रोकने के लिए खेतों की मेड़बंदी के साथ पौधरोपण को बढ़ाना होगा, जिससे कटान को रोका जा सके।

रासायनिक गुण-मिट्टी में ठोस, द्रव और गैस मिली रहती है, जो जीवन का आधार है। इसके बगैर धरती पर रहने वाले जीव जंतुओं का रहना नामुमकिन है। मिट्टी में जा रहे रसायन इन तीनों की चीजों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। इसे रोकने के लिए कारखानों और वायु प्रदूषण को कम करना होगा।

जैविक गुण-मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म तत्वों के साथ ही जीवाश्म, केंचुआ, प्लेसला व एसेनाइट मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने का काम करते हैं। रासायनिक उर्वरक, कीटनाशकों और खरपतवार नाशक इन जीवाश्मों को नष्ट करने का कार्य करते हैं और मिट्टी बंजर हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से क्लोरीन युक्त दवाओं और कीटनाशकों जैसे डीडीटी, गैमेक्सीन और एल्ड्रिल जैसी दवाओं पर प्रतिबंध के बावजूद उनका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। 

 जलस्रोतों की कमी

उपजाऊ भूमि में कमी और जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण जल स्रोतों में आई कमी है। सरकारी नीतियों और लोगों में जागरूकता की कमी से पुराने पोखरों, तालाबों, झीलों और कुओं पर कब्जा कर उनके अस्तित्व को समाप्त किया जा रहा है। 

कम लागत अधिक उत्पादन
जिला कृषि अधिकारी ओपी मिश्रा के मुताबिक किसान यदि 70 फीसद रासायनिक खाद प्रयोग कर रहा है तो उसे कम से खेतों में 30 फीसद जैविक व हरी खाद का प्रयोग करना चाहिए। इससे उत्पादन में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा वहीं दूसरी ओर धरती की कोख भी बंजर होने से बची रहेगी। 

आंकड़ों पर एक नजर

प्रदेश में 

  • जलीय स्रोत- 9,55,255 
  • अतिक्रमण - 1,11,968 
  • राजधानी में 
  • जल स्रोत - 12,653 
  • अतिक्रमण - 2,034 
  • कृषि योग्य भूमि : पांच प्रतिशत 

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