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सोशल इंजीनियरिंग संभाले रखना बसपा के लिए चुनौती, गड़बड़ाया सर्वसमाज को जोड़ने का अभियान

लोकसभा चुनाव के परिणाम आने से पहले बसपा अध्यक्ष मायावती द्वारा पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय को निलंबित करना सिद्ध करता है कि पार्टी के भीतर सब कुछ सामान्य नहीं है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 22 May 2019 11:33 AM (IST)Updated: Wed, 22 May 2019 11:54 AM (IST)
सोशल इंजीनियरिंग संभाले रखना बसपा के लिए चुनौती, गड़बड़ाया सर्वसमाज को जोड़ने का अभियान
सोशल इंजीनियरिंग संभाले रखना बसपा के लिए चुनौती, गड़बड़ाया सर्वसमाज को जोड़ने का अभियान

लखनऊ, जेएनएन। लोकसभा चुनाव के परिणाम आने से पहले बसपा अध्यक्ष मायावती द्वारा पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय को निलंबित करना सिद्ध करता है कि पार्टी के भीतर सब कुछ सामान्य नहीं है। पुराने और भरोसेमंद नेताओं की कमी खटकने से पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग बिखरती जा रही है। इसके चलते पार्टी संगठन के भीतर और बाहर सवाल भी उठने लगे हैं। भीम आर्मी जैसे संगठनों की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। सर्वसमाज की हितैषी होने का दावा करने वालों को दलित वोट बचाने की चिंता सताने लगी है।

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बसपा से पुराने नेताओं के अलग होने का सिलसिला संस्थापक कांशीराम की संगठन पर पकड़ ढीली होते ही आरंभ हो गया था। तब से लेकर बसपा से दूर होने वालों की फेहरिस्त लगातार बढ़ती जा रही है। दलित, मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग के साथ सवर्ण वोटरों को जोडऩे की सोशल इंजीनियरिंग चरमरा रही है। मायावती का तिलिस्म भी टूटता नजर आ रहा है। जंग बहादुर पटेल, राम लखन वर्मा, बरखूराम वर्मा, आरके चौधरी, बाबूसिंह कुशवाहा, स्वामी प्रसाद मौर्य, दीनानाथ भास्कर, राजबहादुर, बलिहारी बाबू, ईसम सिंह, डॉ. मसूद अहमद, मोहम्मद अरशद, राम प्रसाद, इंद्रजीत सरोज, जगन्नाथ राही, आरके पटेल, कमलाकांत गौतम, ब्रजेश पाठक, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, प्रदीप सिंह और हरपाल सैनी जैसे कद्दावर नेता बसपा से दूर होते गए। इससे विभिन्न वर्गों व समाज में पार्टी का चेहरा बने नेताओं का भी टोटा होता गया। इसका नुकसान बसपा को पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा।

बेअसर होती भाईचारा कमेटियां

पार्टी की स्थापना से जातिवार तैयार किए नेताओं के अलग होने के बाद सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय नारा भी कारगर सिद्ध नहीं हो सका। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बसपा अपने प्रदर्शन की गिरावट में सुधार नहीं ला सकी। भाईचारा कमेटी गठित करके विभिन्न वर्गों को जोड़ने का प्रयास कारगर नहीं हो सका। पूर्व विधायक हरपाल सैनी का आरोप है कि कद्दावर नेताओं की भरपाई पैसा लेकर गढ़े जा रहे नेताओं से नहीं हो सकती। इसका नतीजा है कि बसपा को मजबूरन अपनी धुर विरोधी समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाना पड़ा।

नए संगठनों की मजबूत होती जड़ें

कमजोर होती बसपा के कारण दलितों के नए संगठनों की जड़ें मजबूत होने लगी हैं। भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद की युवा दलितों में तेजी से बढ़ी लोकप्रियता से बाबा साहब के मिशन में नई उम्मीद जगी। अन्य प्रदेशों में भी बसपा गठबंधन करने के लिए बाध्य हुई। चंद्रशेखर की तरह से जिग्नेश जैसे नेता सामने आने लगे हैं।

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