केंद्रीय भूजल प्राधिकरण का बड़ा फैसला, रोजाना दस किलोलीटर से कम भूजल दोहन पर एनओसी से छूट
रोजाना दस हजार लीटर से कम भूजल दोहन करने वाले उद्यमियों पर अब कोई पाबंदी नहीं होगी। इन इकाइयों को भूजल दोहन के लिए प्राधिकरण से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेने की शर्त से भी छूट दी गई है।
लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। औद्योगिक गतिविधियों के जरिये आत्मनिर्भर बनने की मुहिम के बीच केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमियों (एमएसएमई ) को बड़ा तोहफा दिया है। इसके तहत रोजाना दस हजार लीटर से कम भूजल दोहन करने वाले उद्यमियों पर अब कोई पाबंदी नहीं होगी। इन इकाइयों को भूजल दोहन के लिए प्राधिकरण से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेने की शर्त से भी छूट दी गई है। यही नहीं, इन इकाइयों से भूजल दोहन की मात्रा के अनुसार किसी प्रकार की राशि भी नहीं ली जाएगी। माना जा रहा है की उत्तर प्रदेश की ही करीब पांच-छह लाख इकाइयां इस फैसले से लाभान्वित होंगी। प्राधिकरण का यह आदेश देश की सभी सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाइयों पर लागू होगा।
बोतलबंद पानी कारोबार को राहत नहीं
हालांकि, बोतल बंद पानी का व्यवसाय करने वाली इकाइयों को इसमें कोई राहत नहीं दी गई है। इस सिलसिले में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने 26 अक्टूबर को गाइडलाइन से जुड़े कई दिशा-निर्देशों पर अधिसूचना जारी की है।
प्राधिकरणों के लिए भी दिशा-निर्देश
इससे पूर्व केंद्रीय भूजल प्राधिकरण द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के तहत गत 24 सितंबर को भारत में भूजल दोहन के नियंत्रण व रेगुलेशन की गाइडलाइन जारी की गई थी। यह गाइडलाइन पूरे देश में उद्योगों, इंफ्रास्ट्रक्चर, व्यावसायिक व खनन गतिविधियों में भूजल दोहन पर अंकुश लगाने के लिए है। जिन राज्यों में भूजल प्राधिकरण गठित हैं, उनको भी इसी गाइडलाइन के अनुसार कार्रवाई करनी होगी। उत्तर प्रदेश में अक्टूबर 2019 को भूजल प्रबंधन एवं विनियमन एक्ट लागू हो चुका है और इसके तहत राज्य भूजल प्राधिकरण का गठन भी किया गया है।
गाइडलाइन के मुख्य बिंदु
- अतिदोहित विकास खंडों में किसी भी नए उद्योग को भूजल दोहन की मंजूरी नहीं दी जाएगी
- केवल मौजूदा उद्योगों, जिनके पास पूर्व से अनुमति है, उनको ही आगे एनओसी दी जाएगी
- क्रिटिकल और सेमी क्रिटिकल विकास खंडों में एनओसी लेने पर प्रतिबंध नहीं होगा।
- जिन उद्योगों व अन्य परियोजनाओं ने 24 सितंबर के बाद अनुमति के लिए आवेदन दिया है, उनको पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में एक लाख का अर्थ दंड देना होगा।
- गाइडलाइन के तहत कृषि क्षेत्र, ग्रामीण जलापूर्ति तथा सेना के अधिष्ठानों को छूट दी गई है।
- आवासीय समितियों, नगरीय पेयजल योजनाओं को प्राधिकरण से मंजूरी लेनी होगी।
- भूजल दोहन पर निगरानी के लिए उद्योगों को पीजोमीटर स्थापित करने के साथ नलकूप पर डिजिटल फ्लोमीटर लगाना होगा।