अभिव्यक्ति की आजादी का जश्न है जागरण का संवादी कार्यक्रम
साहित्य कला और वैचारिकी की दुिया के संवादी कार्यक्रम में आगामी ती, चार और पांच नवंबर को साथ मिल कर बैठेंगे और अपे समय के महत्वपूर्ण प्रश्नों पर कुछ सार्थक बातचीत करेंगे।
लखनऊ (जेएनएन)। नजाकत और तहजीब के शहर लखऊ में एक बार फिर से आयोजित किया जा रहा है- संवादी-2017। कला, साहित्य और संस्कृत को आपसी बातचीत से समाज को जोड़े की यह एक अूठी वैचारिक पहल है, जो अवध की समृद्ध सांस्कृतिक मिट्टी का सािध्य पाकर और भी उर्वर हो उठती है। साहित्य कला और वैचारिकी की दुिया के संवादी कार्यक्रम में आगामी ती, चार और पांच नवंबर को साथ मिल कर बैठेंगे और अपे समय के महत्वपूर्ण प्रश्नों पर कुछ सार्थक बातचीत करेंगे। संवादी के मंच में अपने समय के प्रबुद्ध साहित्यकारों और संस्कृतिकर्मियों को संवाद का एक सार्थक मंच उपलब्ध कराने का प्रयास किया है। जहां एक साथ बैठ कर सामयिक मुद्दों पर एक प्रभावी बातचीत की जा सके।
जागरण संवादी में कई बुद्धिजीवी, लेखक और कलाकार मिल बैठकर अपे दौर की चुौतियों और चिंताओं पर दिल खोलकर बातें करेंगे। इस बात में कोई दो राय हीं हो सकती कि जागरण संवादी के पिछले चार वर्षो के सफर में समाज को रचात्मक और वैचारिक रूप से थोड़ा और समृद्ध किया है। आगे बढ़े, देश और इसकी सांस्कृतिक विरासत में कुछ और पन्ने जोड़ने के लिए जरूरी सकारात्मक ऊर्जा अर्जित करे में सहायता की है।
कहते हैं कि एक लेखक या विचारक के साथ एक घंटा बिताा, उसके विचार सुा कई सुंदर किताबों को एक साथ पढ़े के समा है। संवादी के मंच पर ती दिों में 75 से भी अधिक वक्ताओं को सुा जा सकेगा। जो हमारे समय के जरूरी प्रश्नों पर एक दूसरे के साथ अपे विचार साझा करेंगे। आप उसे प्रश् पूछ सकेंगे, अपी चिंताएं जाहिर कर सकेंगे व देश-दुिया के तत्काली सांस्कृतिक मुद्दों के बारे में जाकारी हासिल कर सकेंगे। अभिव्यक्ति के इस उत्सव में शामिल होंगे 75 वक्ता, 25 सत्र और चार प्रस्तुतियां। यह उत्सव है हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का, यह जश् है हमारी अकूत साहित्यिक विरासत का, यह त्योहार है हमारी युवा पीढ़ी की संभावाओं का।
भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है अभिव्यक्ति की आजादी। जागरण संवादी उसी अभिव्यक्ति की आजादी का जश् है। यहां कलाओं के विविध रस हैं, तो साहित्य के उर्वर, रचात्मक स्वर भी। यहां अभिय के सभी रंग हैं, तो विचार की अेक धाराएं भी हैं। यहां ई वाली हिंदी से जुड़ी संभावाएं हैं, तो हिंदी को एक समृद्ध विरासत सौंप चुके अुभवी स्वर भी। यह कला और संस्कृति के इंद्रधुषी रंगो से समाज को सराबोर करे की एक अनूठी पहल है, जहां आे वाला हर दर्शक सतरंगी हो कर लौटेगा।
लेखिकाः रश्मि भारद्वाज कवियित्री