डबल सीएमओ हत्याकांड पर सीबीआइ की क्लोजर रिपोर्ट खारिज
-डबल सीएमओ हत्याकांड में जांच एजेंसी को लगा धक्का- सीबीआइ को निर्धारित समय
लखनऊ। डिप्टी सीएमओ डॉ. योगेन्द्र सिंह सचान हत्याकांड की विवेचना के बाद अब शहर के दोहरे सीएमओ हत्याकांड में तत्कालीन सीएमओ डॉ. एके शुक्ला को क्लीनचिट देने के मामले में सीबीआइ को मुंह की खानी पड़ी। विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीबीआइ) नीलकांत मणि त्रिपाठी ने दोनों ही मामलों में सीबीआइ द्वारा दाखिल अंतिम रिपोर्ट को निरस्त करते हुए पुलिस अधीक्षक सीबीआइ को निर्देश दिया है कि इस प्रकरण में समय के अंदर अग्रिम विवेचना कराना सुनिश्चित करें।
सीबीआइ ने पूरक विवेचना में डॉ. बीपी सिंह एवं विनोद कुमार आर्य हत्याकांड में तत्कालीन सीएमओ डॉ. एके शुक्ला के विरुद्ध साक्ष्य न पाते हुए उन्हें क्लीनचिट देकर दोनों मामलों में अदालत में अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी थी। इसमें डॉ. बीपी सिंह हत्या कांड के वादी एवं मृतक के भाई आइपी सिंह ने अर्जी देकर अंतिम रिपोर्ट पर अनापत्ति प्रस्तुत की थी। डॉ. विनोद कुमार आर्य हत्याकांड की वादिनी डॉ. शशि कुमारी ने हालांकि अब तक अंतिम रिपोर्ट पर कोई अर्जी नहीं दी है।
अदालत ने मामले की विवेचना से संबंधित समस्त प्रपत्रों का अवलोकन करने के बाद अपने विस्तृत आदेश में कहा है कि दोनों सीएमओ की हत्या करने के पीछे हेतुक, उद्देश्य एवं षड्यंत्र स्पष्ट है। 'यहां तक कि जेल में डिप्टी सीएमओ डॉ. योगेन्द्र सिंह सचान की मृत्यु के पूर्व डॉ. सचान द्वारा डॉ. एके शुक्ला को संबोधित पत्र, जिसकी विश्वसनीयता विशेषज्ञों तथा कई गवाहों द्वारा पुष्टि की गई है, उसमें उल्लिखित कथन कि 'डॉ. शुक्ला यदि आपने मेरी मदद नहीं की तो न्यायालय में अगली पेशी पर मैं यह मीडिया को बता दूंगा कि आप वीके आर्य तथा डॉ. बीपी सिंह की हत्या में शामिल थे।' विस्तृत आदेश में कहा गया है कि डॉ. एके शुक्ला जनपद लखनऊ में जून 2007 से मई 2010 तक सीएमओ के पद पर कार्यरत थे। इसी बीच सीएमओ पद को बांटे जाने से वह काफी दु:खी थे क्योंकि एनआरएचएम से संबंधित धन पर उनका नियंत्रण समाप्त हो गया था। इसी के चलते 18 अक्टूबर को शासनादेश द्वारा एनआरएचएम से संबंधित प्रबंधन सीएमओ परिवार कल्याण को प्राप्त कराया गया था। यह आदेश आने के मात्र आठ दिन बाद ही 27 अक्टूबर 2010 को डॉ. वीके आर्या की हत्या कर दी गई।
विवेचना के दौरान सुबूतों में आया है कि डॉ. एके शुक्ला एनआरएचएम से संबंधित धन के प्रबंधन व आवंटन में कमीशन लेते थे एवं पद के बांटे जाने के कारण वह मानसिक रूप से काफी डिस्टर्ब हो गए थे। डॉ. एके शुक्ला द्वारा कमीशन लिया जाता था, इस तथ्य को कई ठेकेदारों ने भी अपने बयानों में स्वीकार किया है। इसके अलावा डॉ. एके शुक्ला द्वारा अगस्त-सितंबर 2010 में प्रदेश के परिवार कल्याण मंत्री से भी मिलने का प्रयास किया गया कि सीएमओ का एक पद कर दिया जाए। साक्ष्य में यह भी आया है कि डॉ.एके शुक्ल, डॉ. बीपी सिंह की कार्यप्रणाली से काफी दु:खी थे क्योंकि डॉ. बीपी सिंह सीएमओ परिवार कल्याण का पद समाप्त नहीं होने देना चाहते थे।
अदालत ने कहा है कि साक्ष्य में यह भी आया है कि डॉ. एके शुक्ला, डॉ. योगेन्द्र सिंह सचान के काफी घनिष्ठ थे तथा डॉ. सचान वर्ष 2007 से ही डॉ. शुक्ला के अधीन डिप्टी सीएमओ के रूप में कार्यरत थे एवं उनके द्वारा किए गए भ्रष्ट क्रियाकलापों के सहयोगी थे। कहा गया कि एसटीएफ द्वारा भी डॉ. शुक्ला एवं डॉ. सचान के मध्य हुए फोन वार्ता को रिकॉर्ड किया। जिससे यह तथ्य स्पष्ट हुआ कि डॉ. शुक्ला, डॉ. सचान के माध्यम से कमीशन खाते थे। दोनों के बीच मधुर संबंध होने की पुष्टि कार्यालय के अधिकारियों ने भी किया है।
डॉ. विनोद कुमार आर्या की हत्या के बाद एसटीएफ ने डॉ. एके शुक्ला के मोबाइल को सर्विलांस पर लगाया। जिससे यह तथ्य प्रकाश में आया कि डॉ. शुक्ला के अभियुक्त राम कृष्ण वर्मा के साथ भी संबंध थे। सीडीआर के गहन परीक्षण से भी यह तथ्य प्रकाश में आया है कि डॉ. वीके आर्या की हत्या के 15 दिन पूर्व से ही डॉ. शुक्ला एवं राम कृष्ण वर्मा के बीच बातचीत हो रही थी। डॉ. आर्या की हत्या के बाद डॉ. सचान ने राम कृष्ण वर्मा से बातचीत की तथा डॉ. एके शुक्ला के आवास पर मिलने को कहा। जेल में रहते हुए डॉ. सचान ने डॉ. शुक्ला को पत्र लिखकर कहा था कि यदि वह उनकी मदद नहीं करेंगे तो मजबूर होकर पत्रकारों को बता देंगे कि डॉ. बीपी सिंह एवं डॉ. आर्या की हत्या डॉ. एके शुक्ला ने ही कराई है।
अदालत ने कहा है कि मनोवैज्ञानिक परीक्षण में डॉ. एके शुक्ला ने डॉ. बीपी सिंह एवं डॉ. विनोद आर्य की हत्या में शामिल होने से इन्कार किया है। किंतु विशेषज्ञों ने उनके जवाब को भ्रमित करने वाला बताया है। सीबीआइ ने अपनी विवेचना में इस तथ्य को स्वीकार किया है कि डॉ. शुक्ला का दोनों पूर्व सीएमओ की हत्या के पीछे उनका प्रबल हेतुक था किंतु ऐसा साक्ष्य उपलब्ध न हो सका। जिससे डॉ. शुक्ला के विरुद्ध अभियोजन संचालित किया जा सके।
अदालत ने स्पष्ट कहा है कि डॉ. बीपी सिंह एवं डॉ. विनोद कुमार आर्य की हत्या कराने के लिए प्रबल हेतुक (कारण) मौजूद था तथा दौरान विवेचना कई तरह के परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी एकत्रित किए गए परंतु अभियोजन संचलित न किया जा सका। यह अपराध राज्य के विरुद्ध है जिसके कारण मामले की अग्रिम विवेचना कराया जाना आवश्यक है।
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