इंसेफ्लाइटिस के आधे से ज्यादा मरीजों में कारण ‘अज्ञात’, गुत्थी सुलझाने में छूट रहा डॉक्टरों का पसीना
उत्तर प्रदेश में इंसेफ्लाइटिस के कारणों को जानने में लगी डॉक्टरों की टीम कारणों का पता नहीं लगा पा रही है।
लखनऊ, जेएनएन। राज्य में इंसेफ्लाइटिस के कहर पर अंकुश बेशक लगा। इलाज की व्यवस्था में भी सुधार हुआ है। सीएचसी स्तर तक पीडियाटिक इंटेंसिव केयर यूनिटें (पीआइसीयू) बनीं मगर, बीमारी की सटीक जांच हालात को पीछे ढकेल रही है। स्थिति यह है कि आधे से अधिक मरीजों में इंसेफ्लाइटिस के कारण खोजे नहीं जा सके हैं। लिहाजा, रिपोर्ट में ‘अज्ञात’ का जिक्र कर कॉलम पूरा किया जा रहा है।
दरअसल, केंद्र सरकार ने पहले यूपी के 20 जनपद इंसेफ्लाइटिस से प्रभावित घोषित किए। वहीं, राज्य सरकार के संचारी रोग विभाग में वर्ष 2017 में 38 जनपद व वर्ष 2018 में आठ और जनपद को इंसेफ्लाइटिस के दायरे में लिया। ऐसे में इन जनपदों में इलाज की व्यवस्थाओं में सुधार किया गया। एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एईएस) व जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) के गंभीर मरीजों को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कराने के लिए सीएचसी में पीकू खोले गए। यहां के बाल रोग विशेषज्ञों को केजीएमयू, पीजीआइ व डफरिन अस्पताल में ट्रेनिंग दी गई। इसके सार्थक परिणाम भी हासिल हुए मगर, लैब में कई मरीजों में बीमारी के पुख्ता कारणों को तलाशने में डॉक्टर अब भी नाकाम हैं।
ऐसे कैसे होगा बीमारी का सफाया : इंसेफेलाइटिस की जांच केजीएमयू समेत राज्य की अन्य माइक्रोबायोलॉजी लैब में की गई। इनमें जनवरी से अब तक 1,795 एईएस के मरीजों के सैंपल आए। उनमें से 699 में इंसेफेलाइटिस के कारणों की पुष्टि हुई। शेष मरीजों में डॉक्टरों ने कारण अज्ञात लिखा है।
सबसे अधिक स्क्रबटाइफस
शनिवार तक कुल 1795 एईएस के मरीजों की रिपोर्ट बनी। इन मरीजों में 285 में स्क्रबटाइफस बैक्टीरिया मिला। 199 में जापानी इंसेफेलाइटिस, 39 में चिकनगुनिया, 65 में डेंगू, 17 में टायफाइड का बैक्टीरिया मिला। इसके अलावा तीन मरीजों में हर्पीस, एक में लेप्टोस्पायरा, तीन मरीजों में मीजल्स व 87 मरीजों में एक से अधिक कारण बीमारी के मिले। शेष मरीजों में बीमारी का कारण अज्ञात लिखा गया।