'कैट फिश' लाएगी उत्तर प्रदेश में नीली क्रांति
मछली पालन (जल कृषि) पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ रोजगार बढ़ाने में भी मददगार है।
लखनऊ [गिरीश पांडेय]। प्रदेश में 'नीली क्रांति' लाने की तैयारी हो चुकी है। इसका जरिया बनेगी कैट फिश। कम रकबे में अधिक बच्चों के पालने की क्षमता और कम समय में अधिक बढ़वार के कारण इससे मछली उत्पादन पांच गुना तक बढ़ सकता है। 'नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्ड' हैदराबाद ने इस प्रजाति के बीज उत्पादन की मंजूरी दे दी है। पायलट प्रोजक्ट के तहत पहली हैचरी लखनऊ के अजरुनगंज में लगेगी।
मत्स्य पालन से जुड़े और इसके विशेषज्ञ डॉ. संजय श्रीवास्तव के अनुसार, एक एकड़ में कैट फिश के 30 से 32 हजार तक बच्चे पाले जा सकते हैं। यह रोहू की तुलना में दोगुने से अधिक है। कम समय में इसकी बढ़वार अधिक होती है। एक कांटे के नाते इसे खाना भी आसान है। वायुमंडल में सांस लेने की खूबी के नाते बाजार में जीवित अवस्था में उपलब्धता और कम दाम के कारण बाजार में इसकी भरपूर मांग है।
बच्चों की अनुपलब्धता सबसे बड़ा संकट: मांग के बावजूद उत्तर भारत में सरकारी क्षेत्र में इसकी कोई हैचरी नहीं है। पालने वाले अमूमन बच्चों को पश्चिमी बंगाल से लाते हैं। बंगाल में भी यह बांग्लादेश और म्यामार से तस्करी के जरिये आती है। निजी क्षेत्र की इक्का-दुक्का हैचरियां बाजार की मांग को पूरा नहीं कर पातीं। सरकारी क्षेत्र में हैचरी खुलने से मांग की क्रमश: भरपाई संभव है।
खनिज और विटामिन का खजाना है मछली: मछली सिर्फ सुपाच्य ही नहीं खनिज और विटामिन्स का भंडार है। इसमें 13-22 फीसद तक प्रोटीन के अलावा फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, लोहा, सल्फर, तांबा, जस्ता, मैग्नीज, क्लोरिन और आयोडीन आदि खनिज मिलते हैं। थायोमिन, बी-12, बी-6, एफ, डी, के, राइवोफ्लैविन, नियासिन, बायोटिन और थायोमिन आदि की उपलब्धता के नाते मछली कुपोषण के खिलाफ प्रभावी हथियार साबित हो सकती है।
रोजगार बढ़ाने में मददगार: मछली पालन (जल कृषि) पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ रोजगार बढ़ाने में भी मददगार है। राष्ट्रीय कृषि आयोग के अनुसार एक टन मछली के उत्पादन में दो से तीन लोगों को रोजगार मिलता है। चार हेक्टेयर में बेहतर प्रबंधन के जरिये मछली पालन से सालाना दो-तीन टन मछली का उत्पादन संभव है। इस तरह से इतने रकबे में ही चार-छह लोगों को रोजगार मिल सकता है। चूंकि यह काम पूर्णकालिक नहीं होता। लिहाजा बाकी समय में खेतीबाड़ी के अन्य काम भी किए जा सकते हैं।
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बाजार कोई समस्या नहीं: मछली के लिए बाजार कोई समस्या नहीं है। मौजूदा समय में उप्र में मछली की सालाना मांग 18 लाख टन की तुलना में उत्पादन सिर्फ छह लाख टन है। देश में प्रति व्यक्ति मछली की औसत खपत 3.5 किलो है जबकि उप्र में सिर्फ 2.15 किलो। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइएमए) की संस्तुति के अनुसार हर साल एक व्यक्ति को करीब 15 किग्रा मछली खानी चाहिए। खान-पान की आदत में बदलाव, 'रेड मीट' की मनाही के कारण भविष्य में यह मांग और बढ़ेगी।
क्या कहते हैं अधिकारी: मत्स्य पालन के प्रमुख सचिव डा. सुधीर एम. बोबडे ने बताया, अनुकूल जलवायु और भरपूर संख्या में जलस्रोतों की उपलब्धता के नाते प्रदेश में मछली पालन की भरपूर संभावना है। आबादी के नाते मांग भरपूर है।
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