ईटिंग डिसआर्डर के मामले बढ़े, जानिए लक्षण और कारण से लेकर इलाज के बारे में सबकुछ
Eating Disorder डा. राम मनोहर लोहिया संस्थान के प्रोफेसर डाक्टर दिनकर कुलश्रेष्ठ का कहना है कि पिछले दो माह में उन्होंने करीब 60 ईटिंग डिसआर्डर से पीड ...और पढ़ें

लखनऊ, [आशुतोष दुबे]। अस्पतालों और मानसिक रोग क्लीनिक में ईटिंग डिसआर्डर (मानसिक विकार) मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी देखी जा रही है। ऐसी मनोस्थिति में व्यक्ति या तो कम खाता है या फिर ज्यादा खाने लगता है। डा. राम मनोहर लोहिया संस्थान के प्रोफेसर डाक्टर दिनकर कुलश्रेष्ठ का कहना है कि पिछले दो माह में उन्होंने करीब 60 ईटिंग डिसआर्डर से पीड़ित मरीजों का इलाज किया है। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहता है। इस लिए सही समय पर सही उपचार कराना जरूरी है।

केस एकः गोमती नगर निवासी 22 वर्षीय अभिषेक मनोचिकित्सक के पास पहुंचे। उन्होंने बताया कि वह कुछ भी खाते हैं तो उन्हें लगता है कि वह मोटे हो जाएंगे। यह समस्या इतनी बढ़ गई है कि अब उनके दैनिक कार्य प्रभावित होने लगे हैं और कमजोरी बढ़ गई है। पिछले 15 दिनों से उनका इलाज चल रहा है।
केस दोः फैजाबाद रोड निवासी 29 वर्षीय महिला मनोविज्ञानी के पास पहुंची। वह हर समय जरूरत से ज्यादा खाना खा लेती हैं। उन्हें लगता है कि उनका पेट ही नहीं भरा। जरूरत से ज्यादा खाने की आदत ने महिला को परेशान कर दिया है अब उनका पाचन गड़बड़ा गया है।
कई तरह का होता है ईटिंग डिसआर्डरः प्रोफेसर डाक्टर दिनकर कुलश्रेष्ठ ने बताया कि ईटिंग डिसआर्डर कई तरह के होते हैं। इनमें दो प्रमुख पहला "एनोरेक्सिया नर्वाेसा" में व्यक्ति खुद को भूखा रखने लगता है। भूख लगने पर भी कुछ नहीं खाता है। यही स्थिति मानसिक समस्या का कारण बन जाती है। व्यक्ति को भ्रम होता है कि वह मोटा हो जाएगा। दूसरा "बुलिमिया नर्वोसा" इसमें व्यक्ति जरूरत से ज्यादा खाने लगते हैं इसके बाद उल्टी करने लगते हैं जिससे उसकी दिनचर्या प्रभावित होने लगती है।
क्या करेंः मनोचिकित्सक बताते हैं कि ऐसे समय पर साइकोथेरेपी की जरूरत पड़ती है। दवाइयों के अलावा काउंसलिंग की जाती है। पौष्टिक भोजन पर जोर देना चाहिए। नियमित व्यायाम आवश्यक है, अगर समस्या दिनचर्या को ही प्रभावित करने लगे तो काउंसलिंग करा लेनी चाहिए।

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