केजीएमयू में मुफ्त मिलने वाली दवा भी खरीदनी पड़ रही कैंसर रोगियों को
केजीएमयू में दिखावा बना असाध्य रोग कार्ड भटक रहे मरीज। कुलपति के विभाग में भी मेडिकल स्टोर से लिखी जा रहीं दवा।
लखनऊ, जेएनएन। केजीएमयू में दवाओं का संकट है। यहां मुफ्त मिलने वाली दवाएं भी मरीजों को खरीदनी पड़ रही है। खासकर, कैंसर मरीजों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। स्थिति यह है खुद कुलपति के विभाग रेडियोथेरेपी में भी मरीजों को मेडिकल स्टोर से महंगी दवाएं लिखी जा रही हैं।
केजीएमयू में रोजाना आठ हजार मरीजों की ओपीडी होती है। यहां दवाओं का बंदोबस्त नहीं है। ऐसे में वार्डों और ओपीडी में डॉक्टरों द्वारा लिखी जा रही अधिकतर दवाएं मरीजों को मेडिकल स्टोर से खरीदनी पड़ रही हैं। वहीं सबसे अधिक दवाओं का संकट रेडियोथेरेपी विभाग में है। इस विभाग में कैंसर की कीमोथेरेपी मेडिसिन और सर्पोटिव मेडिसिन का अभाव है।
असाध्य रोग कार्ड, 80 हजार खर्च
गोंडा निवासी गीता देवी (36) को कैंसर है। चार माह से उनका इलाज रेडियोथेरेपी विभाग में चल रहा है। पति गंगा प्रसाद मजदूरी करते हैं। असाध्य रोग कार्ड भी बना है, मगर उन्हें दवाएं मुफ्त नहीं मिल रही हैं। यहां मुफ्त मिलने वाली दवाएं वह मेडिकल स्टोर से खरीदने को मजबूर हैं। गंगा प्रसाद के मुताबिक अब तक 80 हजार रुपये खर्च हो चुका है।
अधूरी दवा, हस्ताक्षर पूरे पर
प्रयागराज निवासी छवि गुप्ता (51) को ब्रेस्ट कैंसर है। इनका भी असाध्य रोग कार्ड बना है। इन्हें वार्ड से आधी दवा ही मिली। पति राजेंद्र के मुताबिक, महंगी दवाएं मेडिकल स्टोर से ही खरीदनी पड़ी। करीब 30 हजार की दवा दुकान से ली। वहीं रेडियोथेरेपी वार्ड में स्टाफ द्वारा सभी दवाओं की प्राप्ति पर हस्ताक्षर करवाने का भी आरोप लगाया।
बाहर से खरीदी दो लाख की दवा
बाराबंकी निवासी कलावती (60) का भी रेडियोथेरेपी में कैंसर का इलाज चल रहा है। नवंबर से अब तक दो लाख रुपये दवा पर खर्च हो चुका है। पुत्र सूरज के मुताबिक, 34 हजार रुपये नीचे का आय प्रमाण पत्र था। कई चक्कर काटने पर भी असाध्य रोग कार्ड नहीं बना। इलाज के वक्त प्राइवेट नौकरी भी छूट गई।
जो दवाएं हैं, वह भी लिख रहे बाहर से
कैंसर की कुछ दवाएं एचआरएफ और अमृत फार्मेसी में हैं, मगर यहां के डॉक्टरों को अंदर की दवाएं रास नहीं आ रही हैं। वह बाहर से महंगी दवा मरीजों को लिख रहे हैं। डॉक्टेसिल 80 एमजी, डॉक्टेसिल 20 एमजी, इपीरियूबिसिन, जेमिसाइटाबिन, जेफीटिबिन, पासलीटेक्सल 100, जोलेड्रोनिक एसिड, एमटीएक्स, विकरिटाइन जैसी सामान्य दवाएं भी कैंसर के मरीजों को बाहर से लेनी पड़ रही है।
वार्ड में लिखी जा रहीं धड़ल्ले से पर्ची
कैंसर रोगियों के लिए शताब्दी में 60 बेड का पुरुष और महिला वार्ड है। वहीं पुरानी बिल्डिंग में 16 बेड का डे केयर वार्ड है। यह हमेशा फुल ही रहते हैं। इनमें मरीजों को महंगे इंजेक्शन व दवाएं धड़ल्ले से मेडिकल स्टोर से लिखी जा रही हैं। वार्ड के मरीजों को इंजेक्शन एड्रीमाइसीन, ब्लियोमाइसीन, सिसप्लेटिन 50 एमजी, साइक्लोफास्पेमाइड 500, साइक्लोफास्पेमाइड 200 एमजी, सिसप्लेटिन 10 एमजी, कारबोप्लेटिन, बइमाटिनिब, कैप्सीटेबिन, डकारबेजिन, इटोपोसाइड, ऑक्सिलिप्लेटिन, पासलीटेक्सल 260 एमजी, जीसीएसएफ 300 एमजी इंजेक्शन बाहर से लिखे जा रहे हैं। ऐसे ही कैंसर मरीज को दी जाने वाली दर्द निवारक दवा मॉर्फिन व टेबलेट इमाटिनिब वार्ड में मरीजों को धड़ल्ले से लिखी जा रही हैं।
केजीएमयू केे प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने कहा कि असाध्य रोग के कार्ड वाले मरीजों को मुफ्त दवा उपलब्ध कराने का प्रावधान है। हो सकता है कि कुछ दवाएं न हों, इसलिए बाहर से मरीजों को लिखी गई हों। स्टोर में कैंसर की सभी दवा उपलब्ध कराने का निर्देश दूंगा। साथ ही डॉक्टरों को बाहर की दवा लिखने पर रोक है।