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कैग ने उप्र सरकार की बजट तैयारी और प्रबंधन पर उठाये सवाल

भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने वर्ष 2016-17 के उप्र सरकार के वित्त पर अपनी रिपोर्ट में इस पर अंगुली उठायी है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Thu, 30 Aug 2018 10:11 AM (IST)Updated: Thu, 30 Aug 2018 10:11 AM (IST)
कैग ने उप्र सरकार की बजट तैयारी और प्रबंधन पर उठाये सवाल
कैग ने उप्र सरकार की बजट तैयारी और प्रबंधन पर उठाये सवाल

लखनऊ (जेएनएन)। उप्र सरकार का बजट जमीनी हकीकत से दूर है। यही वजह है कि बजट अनुमान और असल में प्राप्त में होने वाले राजस्व/खर्चों में अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने वर्ष 2016-17 के उप्र सरकार के वित्त पर अपनी रिपोर्ट में इस पर अंगुली उठायी है। यह रिपोर्ट बुधवार को विधानमंडल में पेश की गई।

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रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2015-16 की तुलना में 2016-17 में राजस्व प्राप्तियों में 29799 करोड़ रुपये (13 प्रतिशत) की वृद्धि हुई जो बजट अनुमान से 24680 करोड़ रुपये कम है। राज्य में करों की असल प्राप्तियां बजट अनुमानों के सापेक्ष लगातार कम रहीं। वहीं राजस्व व्यय में 2015-16 के सापेक्ष 23856 करोड़ रुपये (11 प्रतिशत) का इजाफा हुआ। यह बजट अनुमान से 16763 करोड़ रुपये कम है। वहीं विकास और निर्माण कार्यों पर होने वाले पूंजीगत व्यय में 2015-16 के सापेक्ष 5366 करोड़ रुपये (आठ प्रतिशत) की बढ़ोतरी हुई। यह बजट अनुमान से 2089 करोड़ रुपये कम रही।

सीएजी रिपोर्ट में राज्य सरकार से सिफारिश की गई है कि वित्त विभाग बजट तैयार करने की प्रक्रिया को और तर्कसंगत बनाए जिससे कि बजट अनुमान और असलियत के बीच लगातार बढ़ते अंतर को कम किया जा सके।

कर संग्रह की लागत दोगुनी

रिपोर्ट में सरकार का ध्यान कर संग्रह की अधिक लागत की ओर भी आकर्षित किया गया है। राज्य के स्वयं के कर राजस्व में बिक्री, व्यापार आदि पर कर की 45 फीसद हिस्सेदारी है। सीएजी ने पाया है कि उप्र में इन करों के संग्रह की लागत राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी है। यह बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों से भी ज्यादा है। सरकार को सलाह दी गई है कि वित्त और बिक्री कर विभाग इसकी समीक्षा करें कि बिक्री, व्यापार आदि पर कर की संग्रह लागत राष्ट्रीय औसत से दोगुनी क्यों हैं। कर संग्रह की लागत में कमी लाने का मशविरा भी दिया गया है।

बजट से ज्यादा खर्च

उप्र बजट मैनुअल के मुताबिक विधानमंडल द्वारा स्वीकृत बजट से अधिक खर्च वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आता है। बावजूद इसके बजट मैनुअल के इस प्रावधान का लगातार उल्लंघन किया जाता रहा है। ऑडिट में पाया गया है कि 2016-17 में 6917.6 करोड़ रुपये का अधिक खर्च हुआ। लोक निर्माण विभाग ने तीन अनुदानों के सापेक्ष 2122.53 करोड़ रुपये का अधिक व्यय किया। ऋण के भुगतान पर होने वाले खर्च का सही आकलन करने में भी वित्त विभाग असफल रहा जिसकी वजह से 4794.78 करोड़ रुपये का अधिक खर्च हुआ। सीएजी ने वित्त विभाग को सुझाव दिया है कि वह राज्य विधायिका से स्वीकृत आवंटन से ज्यादा खर्च न होने दे।

आखिरी दिन ताबड़तोड़ वित्तीय स्वीकृतियां

वित्तीय वर्ष के आखिरी दिन ताबड़तोड़ वित्तीय स्वीकृतियां जारी करने की प्रवृत्ति पर भी सीएजी ने आपत्ति दर्ज करायी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य सरकार ने 30 मार्च, 2017 को स्वच्छ भारत मिशन के तहत 80.82 करोड़ रुपये और ग्राम पंचायत को सहायता अनुदान के तहत 2972.99 करोड़ रुपये के लिए कुल 3053.81 करोड़ के स्वीकृति आदेश जारी किये गए। सीएजी ने शासन को यह सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाने के लिए कहा है कि बजट में आवंटित धनराशि साल भर अनुपयोगी न रहे और वित्तीय वर्ष के अंत में व्यय का अतिरेक नियंत्रित हो।


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