कैबिनेट बैठकः अब विश्वविद्यालयों में भी पढ़ाएंगे रिटायर शिक्षक, मानदेय बढ़ा
राज्य विश्वविद्यालयों से रिटायर हो चुके 70 वर्ष तक की उम्र के शिक्षकों को मानदेय पर नियुक्त किया जाएगा।
लखनऊ (जेएनएन)। राज्य विश्वविद्यालयों से रिटायर हो चुके 70 वर्ष तक की उम्र के शिक्षकों को मानदेय पर नियुक्त किया जाएगा। कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालयों में रिक्त शैक्षणिक पदों को मानदेय के आधार पर सेवा निवृत्त शिक्षकों से भरे जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। साथ ही महाविद्यालयों में अध्यापनरत सेवानिवृत्त शिक्षकों का निर्धारित मानदेय बढ़ाने का भी फैसला किया है। अशासकीय सहायताप्राप्त महाविद्यालयों में रिटायर्ड शिक्षकों को मानदेय पर रखने की व्यवस्था पहले से लागू है। कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई। प्रमुख सचिव सूचना अवनीश अवस्थी ने बताया कि उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालयों में रिक्त शैक्षणिक पदों पर मानदेय के आधार पर सेवानिवृत्त शिक्षकों से अध्यापन कार्य लिए जाने का प्रस्ताव है। साथ ही सहायता प्राप्त अशासकीय स्नातक एवं स्नातकोत्तर महाविद्यालयों में शिक्षकों के रिक्त पदों के सापेक्ष मानदेय के आधार पर सेवानिवृत्त शिक्षकों से अध्यापन कार्य के लिए मानदेय बढ़ाया जाएगा। अब तक 25 नवंबर, 2013 के शासनादेश द्वारा निर्धारित मानदेय दिया जाता रहा है।
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यह मिलेगा मानदेय
- असिस्टेंट प्रोफेसर-अधिकतम 25000 रुपये (500 रुपये प्रति व्याख्यान की दर से)
- एसोसिएट प्रोफेसर-अधिकतम 30000 रुपये, (600 रुपये प्रति व्याख्यान की दर से)
- प्रोफेसर-अधिकतम 35000 रुपये, (700 रुपये प्रति व्याख्यान की दर से)
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फैसले से दूर होगी शिक्षकों की कमी
इस फैसले से राज्य विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के लिए शिक्षकों की कमी दूर होगी और इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आएगा। प्रदेश के 15 राज्य विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के कुल सृजित पदों में से लगभग 45 फीसद पद खाली हैं। असिस्टेंट प्रोफेसर के 1179 सृजित पदों में से 444, एसोसिएट प्रोफेसर के 447 में से 224 और प्रोफेसर के 252 में से 175 पद खाली हैं। इतनी अधिक संख्या में शिक्षकों के पद खाली होने से शिक्षण और शोध कार्य प्रभावित हो रहे हैं। शिक्षकों की कमी के कारण विश्वविद्यालयों को नैक मूल्यांकन में अपेक्षित उच्च स्तरीय ग्रेड नहीं प्राप्त हो रहा है। इसकी वजह से विश्वविद्यालयों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से समुचित अनुदान नहीं मिल पा रहा है। इससे विश्वविद्यालयों में एकेडमिक और अवस्थापना सुविधाएंं उपलब्ध कराने में कठिनाई आ रही है।